Media4Citizen Logo
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल
www.media4citizen.com

आखिरी पन्ना : व्यंग्य के शक्तिपुंज थे परसाई

व्यंग्य के शक्तिपुंज थे परसाई
व्यंग्य के शक्तिपुंज थे परसाई

परसाई जी और शरद जोशी ! दोनों ही बड़े लेखक थे। दोनों के व्यंग्य मारक थे। लेकिन उनमें फर्क बस इतना था , हरिशंकर परसाई जी ने अपने लेखन के साथ कभी समझौता नही किया जबकि शरद जोशी को कदम कदम पर समझौते करने पड़े। जिंदगी में तमाम पापड़ बेलने पड़े। परिस्थितियों के चलते चाहे अनचाहे कई मोड़ पर उन्हें मन के खिलाफ जाना पड़ा। लेकिन परसाई जी तमाम दबावों के बावजूद न खुद झुके ना ही उनकी विचार धारा बदली।इसीलिए उनका व्यंग्य लेखन आज भी शास्वत है।आज भी वे व्यंग्यशिखर पर शक्ति पुंज की तरह स्थापित हैं।

जहाँ तक व्यंग्यत्रयी की बात है। वह कभी न बनती अगर वीन्द्रनाथ त्यागीका व्यंग् य मे"आधिकारिक- प्रवेश " न हुआ होता।

इस व्यंग्यत्रयी ने लतीफ घोंघी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, अजात शत्रु जैसे वरिष्ठ व्यंग्यलेखको को पार्श्व में डाल दिया।

इसी दौर में व्यंग्य के झंडाबरदारों ने बैठे ठाले व्यंग्य को विधा घोषित करने की कमर कस ली। जब मैने परसाई जी से इस बारे में राय जाननी चाही तो वे मुस्कराये ।बोले- "जहां वाद होता है वहीं विवाद होता है। दिल्ली के कुछ उत्साही नए लेखकों ने मेरा परामर्श मांगा था।मैंने उन्हें जवाब दे दिया।"
परसाई जी ने कहा-" व्यंग्य के विषय मे मैं काफी लिख चुका और बोल चुका हूँ।मेरी एक पुस्तक नेशनल बुक पब्लिशिंग हाउस से आ रही है ।मैंने उसमे व्यंग्य की विस्तार व्याख्या की है।

उन्होंने कहा व्यंग्य की व्याख्या बहुत कठिन है। बात को सीधे न कहकर तिरछे कहने के पचास तरीके है,विट, पन, ह्यूमर, कैरी केचर आदि। फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेन्ट में विद थर्ड क्लास टिकट को आप क्या कहेंगे।
व्यंग्य विधा नहीं।कारण यह है कि व्यंग्य का अपना स्ट्रक्चर नही है। कहानी,उपन्यास,नाटक,कविता का अपना स्ट्रक्चर है। बर्नाड शॉ व्यंग्यकार थे। उन्होंने नाटक को व्यंग्य विधा के रूप में स्वीकार किया। वे महान नाटककार माने जाते हैं।

"व्यंग्य को मै एक स्प्रिट मानता हूँ ।मान्य विधा में व्यंग्य आ सकता है।नाटक,कहानी,उपन्यास आदि में विधा है। व्यंग्य को इस व्यापकता में महसूस करता हूँ। मैने इन विधाओं मेव्यंग्य काप्रयोग किया है।"

जो प्रश्न आप मुझसे कहा रहे है ।यह प्रश्न आपको किसी विश्व विद्यालय के आचार्यों से करना चाहिए पर इस मामले में वे उत्तर नहीं दे पाएंगे , मै आपको एक नाम बताता हूँ।पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी से बात करें।वे ही संतोषप्रद उत्तर दे पाएंगे। मैने अपनी बात साफ कर दी है,व्यंग्य विधा नहीं मात्र 'स्प्रिट' है।"

परसाई जी से मैं एक बार नही कई बार मिला।पहली बार ठाकुर प्रसाद सिंह जी ने माखन लाल चतुर्वेदी और परसाई जी से भेंट कराई थी। वे मुझे लेकर परसाई जी पास जबलपुर में नेपियर टाउन में जब पहुंचे तो उनकी प्रश्न वाचक मुद्रा को देखकर उन्होंने परिचय दिया यह अनूप श्रीवास्तव हैं युवा पत्रकार और कवि भी हैं। परसाई जी मुस्कराए- स्वतंत्रभारत में काँव काँव वाले। पहली भेंट थी। मेरा संकोच देखकर उन्होंने मेज पर रखा स्वतंत्रभारत अखबार उठा कर कहा - आपके सम्पादक अशोक जी की मेलिंग लिस्ट में हूँ।

मै तो सबसे पहले काँव काँव पढ़ता हूँ फिर उस खबर को जिस पर टिप्पणी की जाती है। मजा आ जाता है। अशोक जी के विजन, दृष्टि मर्मज्ञता का जवाब नही ।सम्पादकीय का तो जवाब नही ! कभी कभी मर्माहत कर देते है। वे ठाकुर प्रसाद सिंह की ओर मुड़े-और कहो ठाकुर जी?और मैं उठकर बरामदे में तुलसी के चौरे के पास जा खड़ा हुआ।

अट्टहास शिखर सम्मान के लिये जब उनकी स्वीकृति के लिये गया तो उन्होंने शरद जोशी का नाम प्रस्तावित करते हुए अपनी चिड़िया बिठा दी। बोले-मेरी तबियत ठीक होने दीजिए मेरा भी मन है लखनऊ आने का ।अभी शरद जोशी से बात करिये। शरद जोशी जी ने मनोहर श्याम जोशी का नाम आगे कर दिया। अगले साल पुरुस्कार लेने के पहले हीशरद जोशी चले गए। वचन बद्ध होने के चलते शरद जोशी जी को घोषित अट्टहास शिखर सम्मान उनकी बेटी नेहा शरद को बुलाकर सौपना पड़ा। हम परसाई जी की प्रतीक्षा करते रह गए। शायद वे सम्मान,यश ,कीर्ति से बहुत ऊपर थे।

परसाई को समझने के लिएप्रसिद्ध विद्वान हजारी प्रसाद द्विवेदी,नामवर सिंहऔर ठाकुर प्रसाद सिंह की दृष्टि सँजोनी पड़ेगी। हजारी प्रसाद द्विवेदी कहा करते थे - व्यंग्य वहां है जहां कहने वाला अधरोष्ठो में हंस रहा हो और सुनने वाला तिलमिला रहा हो ऐसी क्षमता सिर्फ परसाई में है।
परसाई जी जो बातें बरसो पहले लिखी थी आज भी उतनी ही सच है जितनी वो तब थीं। परसाई को पढ़ते हुए महसूस होता है आज भी हम उन्ही मुद्दों पर घिरे है और लगातार उन्ही मुद्दों के दलदल में धँसते जा रहे है।

उन्होंने लिखा अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र पर चढ़ बैठता है तो गोरक्षा आंदोलन का नेता को जूते की दुकान खोल कर बैठने मे जरा भी हिचक नही लगती। यही नही,मानवता उनपर रम की किक की तरह चढ़ती है। ऐसों को ही मानवता के फिट आते है ।

व्यंग्य ज़हर उगलने का ज़रिया नहीं है। अपनी मान्यताओं को परे रखकर व्यंग्य लिखना बहुत कठिन है। इसीलिए राजनीति पर लिखे गए तंज़ में परसाई के व्यंग्य समाज को जितना हंसाते थे उतना ही नंगा भी करते थे।

परसाई की रचनाओं को पढ़कर महसूस होता है कि हमारा समाज, जिसे आज हम क्रूर और उन्मादी का विशेषण देते हैं वह शायद पैदा ही इन विशेषणों के साथ हुआ था. वरना 28-30 साल पहले लिखी गई ये पंक्तियां आज भी इतनी प्रासंगिक कैसे हो सकती हैं.

पढ़िए परसाई के लिखे ऐसे ही कुछ व्यंगों को-अगर चाहते हो कि कोई तुम्हें हमेशा याद रखे, तो उसके दिल में प्यार पैदा करने का झंझट न उठाओ. उसका कोई स्केंडल मुट्ठी में रखो. वह सपने में भी प्रेमिका के बाद तुम्हारा चेहरा देखेगा
सफेदी की आड़ में हम बूढ़े वह सब कर सकते हैं, जिसे करने की तुम जवानों की भी हिम्मत नहीं होती'

इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है.'

बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है 

अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं. बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते हैं, सभ्यता बरस रही है'

'जनता जब आर्थिक न्याय की मांग करती है, तब उसे किसी दूसरी चीज में उलझा देना चाहिए, नहीं तो वह खतरनाक हो जाती है. जनता कहती है हमारी मांग है महंगाई बंद हो, मुनाफाखोरी बंद हो, वेतन बढ़े, शोषण बंद हो, तब हम उससे कहते हैं कि नहीं, तुम्हारी बुनियादी मांग गोरक्षा है. बच्चा, आर्थिक क्रांति की तरफ बढ़ती जनता को हम रास्ते में ही गाय के खूंटे से बांध देते हैं. यह आंदोलन जनता को उलझाए रखने के लिए है'

'स्वतंत्रता-दिवस भी तो भरी बरसात में होता है. अंग्रेज बहुत चालाक हैं. भरी बरसात में स्वतंत्र करके चले गए. उस कपटी प्रेमी की तरह भागे, जो प्रेमिका का छाता भी ले जाए. वह बेचारी भीगती बस-स्टैंड जाती है, तो उसे प्रेमी की नहीं, छाता-चोर की याद सताती है।

'गंगा स्नान ही नहीं, साधारण स्नान के बारे में भी बड़ा अंधविश्वास है । जैसे यही, की रोज़ नहाना चाहिए - गर्मी हो या ठंड । क्यों नहाना चाहिए ? गर्मी में नहाना तो माफ़ किया जा सकता है, पर ठंड में रोज़ नहाना बिल्कुल प्रकृतिविरुद्ध है । जिन्हें ईश्वर पर विश्वास है, वे यह क्यों नहीं सोचते की यदि शीतऋतु भी रोज़ नहाने की होती, तो वह इतनी ठंड क्यूँ पैदा करता ?

शीतऋतु उसने नहाने के लिए बनाई ही नहीं है, लेकिन आप 'सी-सी' करते जा रहे और रोज़ नहा रहे हैं । और मुझे यह आजतक समझ में नही आया की नहाने और खाने का क्या संबंध है? कोई दोस्त इतवार को सुबह आ जाता है और दोपहर तक बैठता है, मैं उससे भोजन के लिए कहता हूँ, तो कह देता है - अभी तो नहाया नहीं है । कितनी लचर दलील है ! नहाया नहीं है, तो खाना क्यों नहीं खाएँगे? नहाते शरीर से हैं पर खाते तो सिर्फ़ मुँह से हैं !

रोज़ नहाने के पक्ष में तरह तरह के तर्क दिए जाते हैं ; जैसे यह की स्फूर्ति आती है, दिमाग़ साफ होता है, काम में मन लगता है, आदि । यह सब झूठ है । रोज़ नहाने वाले कई मूर्ख मैने भी देखे हैं और आलसी ऐसे की आज नहाकार सोए, तो कल नहाने के वक़्त उठेंगे । प्रतिभा का तो नहाने से उल्टा संबंध है । जो अधिक नहाएगा, उसकी प्रतिभा धुलती जाएगी

मैने ऐसे लोग देखे हैं जो केवल इस कारण आकड़े फिरते हैं की वे रोज़ दो बार नहाते हैं । इसे वो बड़ी उपलब्धि मानते हैं और इससे जीवन की सार्थकता का अनुभव करते हैं । बड़े गर्व से कहते हैं - 'भैया, कोई भी मौसम हो, हम तो दो बार नहाते हैं । और ठंडे पानी से ।' स्नान के अनुभव को वे बड़े महत्व से सुनाते हैं - 'बस, पहला लोटा ऊडेलो, तभी ज़रा ठंड लगती है ।

इसके बाद ठंड लगती ही नहीं । गर्मी लगती है । फिर दिन भर बड़ा अच्छा लगता है ।' मैं नहीं जानता, अपने शरीर की सारी उष्णता ठंडे पानी से लड़ने के लिए रोज़ बाहर निकालना कहाँ तक अच्छा है । इस उष्णता से कोई उपयोगी काम किया जा सकता

पिछले महीने जब कड़ी ठण्ड पड़ थी कितने ही ऐसे तरुण थे, जो अपनी शक्ति का उपयोग ठंडे पानी से नहाने में कर रहे थे । इतिहास कभी तुम्हे माफ़ नहीं करेगा । आगामी पीढ़ियाँ तुम्हारे नाम को रोएंगी ।"


Published: 10-08-2023

Media4Citizen Logo     www.media4citizen.com
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल