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सियासी पटल : विलुप्त हो रहा लोकतंत्र का मूल मंत्र

विलुप्त हो रहा लोकतंत्र का मूल मंत्र
विलुप्त हो रहा लोकतंत्र का मूल मंत्र

सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ अपने शासन काल के आठ बरस पूरे कर चूके हैँ l इस मोके पर सेवा, सुरक्षा और सुशासन जैसे आदर्शवादी नारों की बुनियाद पर प्रदेश के सभी जिला व तहसील मुख्यालयों पर तीन दिनी जलसा-ए -जश्न मनाया गया l इस जलसे के आयोजन का प्रायोजन कितना सफल रहा,इसका अनुमान लगा पाना तों बहुत आसान नहीं है l लेकिन इतना तय है कि सियासी पटल से लोकतंत्र का जो मूल मन्त्र था वह प्रायः विलुप्त सा हो गया है l 

सरकार द्वारा जलसे के लिए तीन बिंदु तय किये गये थे l जिसमे सेवा, सुरक्षा और सुशासन को शामिल किया गया था l ये तीनो बिंदु एक स्वस्थ लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था की प्राण वायु होती हैँ l 

आज हमारी लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था दिशा भ्रमित दिखायी देती हैँ l इसकी वजह जानने के लिए एक बार हम एथेन्स के दार्शनिक प्लेटो द्वारा लोकतंत्र के प्रति प्रतिपादित सिद्धांत मे झाकते है l आज से करीब 2500 साल पहले परिभाषित सिद्धांत आज के सियासी स्वरूप को रेखांकित करता हुआ दिखायी देता हैँ l प्लेटो ने अपनी पुस्तक द रिपब्लिक मे लिखा था कि जैसे जैसे अमीर और अमीर होता जायेगा, वह और अधिक दौलत बनाने पर विचार करेगा l मूल्यों और आदर्शो के विषय मे कम सोचेगा l ऐसी स्थिति मे अशिक्षित गरीबो की संख्या अमीरों की संख्या के मुकाबले बढ़ने लगेगी l लोकतंत्र अराजकता का एक सुखद रूप बन जायेगा l इस किताब मे प्लेटो सुकरात और उनके दोस्तों के बीच राजसत्ता पर चर्चा का जिक्र किया गया है l उन्होंने लिखा था आसिगार्की, एरिस्ट्रोक्रेसी से डेमोक्रेसी (लोगो का शासन )से निरंकुशता निकलेगी l प्लेटो का यह भी मानना था कि लोकतंत्र मे तानाशाहो, अत्याचारियों और जनौनमादियों के सत्ता मे आने का खतरा बना रहेगा l प्लेटो का मत था कि लोकतंत्र मे उचित, विवेक और बुद्धिमता पूर्ण फैसले करें, मूल्यों का राज्य हो न कि भावनाओं का l प्लेटो का मत था कि लोकतंत्र से तानाशाही स्थापित होती है l अर्थात लोकतंत्र की कोख से तानाशाह का जन्म होता है l 

आज देश और प्रदेश की सियासत दिशाहीन होती जा रही हैँ l आदर्श और मूल्यहीन सियासत हमारे लोकतंत्र का श्वेत आवरण बन चुका है l 

पूरे प्रदेश मे तीन दिन जलसे के जरिये सरकार की ऒर से विभिन्न जन कल्याणकारी योजनाओं तथा भाजपा विधायको द्वारा कराये गये विकास कार्यों और उपलब्धियों को जन समूह के बीच परोसा गया l इस आयोजन पर कितना धन खर्च हुआ इसका कोई अधिकारिक आकड़ा उपलब्ध नहीं है l ऐसे आयोजन क्या हमारी कमजोरी को प्रदर्शित तों नहीं करते है l केंद्र की मोदी और सूबे की योगी सरकार की उपलब्धियों योजनाओं का बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार करने की कोशिश इस आयोजन के सहारे की गयी l इन आयोजनों के जरिये सरकार और भाजपा को किस प्रकार कितना फायदा मिलेगा पुख्ता तौर पर कुछ कहा नहीं जा सकता l 

देश और राज्यों मे किसी भी दल की सरकारें हो,इन तीनो बिन्दुओ को आत्मसात करके वास्तविक रूप से व्यवहार मे लाने वाली सरकार को ऐसे आयोजन करने की कोई अवश्यकता महसूस नहीं होंगी l यदि सरकारे अपनी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारियो का ईमानदारी से निर्वहन करें l तो ऐसे आयोजन स्वतः गौण तथा औचित्यहीन हो जाते है l 

लोकतंत्र मे नैतिकता, संवैधानिकता, और लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता सरकार की सबसे बड़ी पूंजी होती है l जब यह पूंजी क्षीण होने लगती है तब शासक वर्ग मे भटकाव की स्थिति पैदा हो जाती है l नैतिकता और संवैधानिक बंधन मे बँधकर सरकारे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करती है ऐसी दशा मे सेवा, सुरक्षा और सुशासन का प्रकाश स्वतः दसो दिशाओ मे फ़ैल जाता है l यही वह व्यवस्था होती जो एक कल्याणकारी राज्य, सरकार की परिकालनाओ को साकार करती है l

एक तरीके से देखे तो सेवा, सुरक्षा और सुशासन राज्य की जिम्मेदारी और उसका पहला कर्तव्य होता है l हर प्रकार से राज्य की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने राज्य की जनता की हिफाजत करें l उसकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने का इंतजाम करें l राज्य की जनता के सम्मान और स्वाभिमान का बगैर किसी भेदभाव के सुरक्षा प्रदान करें l जब किसी शासक के हृदय मे दलगत, जातिगत और साम्प्रदायिक भावना बैठ जाती है तो लोकतंत्र की सारी मान्यताये, मूल्य परिभाषाये नैतिकताए सिर्फ एक कहानी बनकर रह जाती है l


Published: 10-04-2025

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