बंगाल में मीडिया कर्मियों पर हमला
जनरल डायर के वर्तमान अवतारों के समक्ष पत्रकारिता जब नग्न होकर कैबरे डांस करने लगती है तो उसके साथ वही होता है जो बंगाल में जीटीवी की नौजवान रिपोर्टर और उसके साथी कैमरामैन के साथ हुआ है।
बंगाल चुनाव के द्वितीय चरण के दौरान 1अप्रैल को मेदिनीपुर जिले के केशपुर इलाके में जीटीवी की नौजवान महिला रिपोर्टर, उसके साथी फोटोग्राफर और ड्राइवर पर तृणमूल कांग्रेस के हथियार बंद गुंडों द्वारा बहुत भयानक जानलेवा हमला किया गया क्योंकि उस खूनी हमले का पूरा वीडियो उपलब्ध है. इसलिए उस हमले की खबर पर किसी भी प्रकार की शंका या सवाल की संभावना भी शून्य है लेकिन उस हमले की खबर पर 2 अप्रैल की रात 9 बजे जीटीवी के एडीटर इन चीफ और सीईओ सुधीर चौधरी को जब शोक गीत गाते हुए देखा तो 50 साल पहले 11 नवंबर 1970 को रिलीज हुई सुपरहिट फिल्म "जॉनी मेरा नाम" का वह कैबरे डांस याद आ गया जिसने नग्नता और अश्लीलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। अब आपको बताता हुं कि सुधीर चौधरी का शोक गीत देखने सुनने के पश्चात मुझे वह कैबरे डांस क्यों याद आया। इसे ध्यान से पढ़िये।
पता नहीं आप मित्रों में से कितनों को 8 अक्टूबर और 4 नवंबर की तारीख़ याद है लेकिन मुझे दोनों तारीखें याद हैं। 8 अक्टूबर को रात 9 बजे इसी जीटीवी का यही सुधीर चौधरी निर्लज्जता के सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए मुंबई पुलिस के अत्यधिक कुख्यात तत्कालीन कमिश्नर परमबीर सिंह की प्रशंसा का चालीसा उसके चाकर चाटुकार की भांति पढ़ रहा था। उसकी आरती उतार रहा था। उसे देश का सबसे बहादुर और ईमानदार पुलिस अधिकारी घोषित कर रहा था। उस रात सुधीर चौधरी की इस करतूत पर परमबीर सिंह उसी तरह आनंदित होकर मुस्कुरा रहा था, जिस तरह "जॉनी मेरा नाम" फ़िल्म में अभिनेत्री पद्मा खन्ना का अश्लील कैबरे देख कर फ़िल्म का खलनायक प्रेमनाथ आनंदित होकर मुस्कुरा रहा था।
उल्लेखनीय है कि सुधीर चौधरी यह सब इसलिए कर रहा था क्योंकि उस दिन परमबीर सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के रिपब्लिक चैनल के एडीटर इन चीफ अरनब गोस्वामी के खिलाफ अपने झूठ फरेब का पुलिंदा परोसा था और अरनब गोस्वामी के खिलाफ जमकर जहर उगला था। हालांकि परमबीर के उस सफ़ेद झूठ की धज्जियां कुछ ही दिनों में न्यायालय में उड़ गयी थीं।
उपरोक्त के अतिरिक्त इन दिनों हत्या, वसूली, अपहरण, आतंकवाद सरीखे जघन्य अपराध के लिए NIA द्वारा UAPA के तहत गिरफ्तार किया जा चुका सचिन वाजे 4 नवंबर की सुबह इसी परमबीर सिंह के आदेश पर अरनब गोस्वामी के घर में अपने हथियारबंद साथियों के साथ किसी आतंकवादी की तरह घुसा था। अरनब की पत्नी और बच्चे पर उसने हमला किया था। सरासर सफेद झूठ सरीखे एक आरोप में अरनब को गिरफ्तार कर के जेल में ठूंस दिया था। उस दिन 4 नवंबर की रात को भी इसी जीटीवी का यही सुधीर चौधरी मुंबई पुलिस के गुंडे सचिन वाजे और उसके धूर्त आका परमबीर सिंह के उस घृणित कारनामे की आलोचना करने के बजाय उन दोनों की घिनौनी करतूतों के पक्ष और समर्थन में खुशी से बावला होकर झूम रहा था। अरनब को कोस रहा था। परमबीर सिंह की प्रशंसा में चालीसा गा रहा था। हालांकि परमबीर और सचिन वाजे की करतूतों की न्यायालय में धज्जियां उड़ने में 3-4 हफ्ते का समय लगा था। लेकिन पूरा देश पहले दिन से ही यह सच जानता था कि अरनब के खिलाफ परमबीर सिंह और सचिन वाजे की जोड़ी राक्षसी आचरण क्यों कर रही है ? लेकिन सुधीर चौधरी यह सच क्यों नहीं जानता था ?
तृणमूल के गुंडों द्वारा जीटीवी की रिपोर्टर पर किये गए जानलेवा हमले के खिलाफ रोते गाते समय सुधीर चौधरी पता नहीं क्यों यह भूल गया कि जब किसी डायर के अवतार के सामने आईना लेकर खड़ा होने के बजाय पत्रकारिता "जॉनी मेरा नाम" फ़िल्म वाली कैबरे डांसर की तरह कैबरे करने लगती है तो डायर के वर्तमान अवतारों और उनके दरबारों में पत्रकारिता की पहचान लोकतंत्र के चौथे खम्भे के रूप में नहीं बल्कि बहुत गंदे गलीज घिनौने धंधे के रूप में होने लगती है। इसका परिणाम वही होता है जो बंगाल में जीटीवी की नौजवान रिपोर्टर और उसके साथी कैमरामैन के साथ हुआ है।
एक लेख में पूरी बात कह पाना क्योंकि संभव ही नहीं है। अतः वर्तमान डायरों के दरबार में कैबरे करने वाली पत्रकारिता की शेष कहानी अगली पोस्ट में।