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खुल गई गांठें गठबंधन की
विकल्प शर्मा : पटना : रामविलास पासवान के निधन के बाद एनडीए में घटक दलों की दृष्टि से केवल रामदास अठावले एक मात्र प्रतिनिधि रह जायेंगे. दूसरी तरफ भाजपा ने शिवसेना और अकाली दल के बाहर चले जाने से वाई एस आर कांग्रेस के मुखिया जगनमोहन रेड्डी से दोस्ती बढ
खुल गई गांठें गठबंधन की
विकल्प शर्मा : पटना : रामविलास पासवान के निधन के बाद एनडीए में घटक दलों की दृष्टि से केवल रामदास अठावले एक मात्र प्रतिनिधि रह जायेंगे. दूसरी तरफ भाजपा ने शिवसेना और अकाली दल के बाहर चले जाने से वाई एस आर कांग्रेस के मुखिया जगनमोहन रेड्डी से दोस्ती बढानी शुरू कर दी है. लेकिन भाजपा के पितृ सगठन आरएसएस ने पर्दे के पीछे से अपनी रणनीति को जामा पहनाते हुए यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब अकेले ही चलना उसकी सेहत के लिए बेहतर होगा. साथ ही संघ की ये कोशिश भी हैं कि भाजपा नंबर गेम में सबसे उपर दिखाई दे. इसके लिए नितिन गडकरी भी की वो बात याद रखनी होगी कि चप्पे-चप्पे पर भाजपा और सौ प्रतिशत भाजपा. भले ही इसके लिए अपने धटक दलों से षडयंत्र, धोखा, साजिश करना पड़े. जैसा कि बिहार में नीतीश कुमार के साथ किया जा रहा है. शुरू से ही भाजपा यह कहती आ रही है कि बिहार का चुनाव वह नीतीश कुमार के नेतृत्व में लडेंगी लेकिन शुरू से ही भाजपा उन्हें निपटाने का काम भी कर रही है. यहाँ तक कि भाजपा ने बिहार में मुख्यमंत्री के चेहरे तक को सामने लाने की तैयारी कर ली है. पुराने दिग्गजों को किनारे करते हुए यादव चेहरे के रूप मे गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय का नाम चर्चा में है. जहां यह नीतीश कुमार के साथ धोखा होगा वहीं भाजपा के अंदर खाने भी संधर्ष शुरू हो चुका है. सुशील कुमार मोदी, नंदकिशोर यादव. प्रेम कुमार, अश्विनी चौबे और गिरिराज सिंह भी अपने को मुख्यमंत्री का चेहरा मान रहें थे. लेकिन उन्हें मात तब खानी पड़ी जब अमित शाह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र के लोगों से वादा किया था कि नित्यानंद राय को आने वाले समय में बड़ी भूमिका में देखा जा सकता है. सरकार बनने के बाद पहले उन्हें केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री बनाया गया और अब मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी है. भाजपा ने चिराग पासवान को शिखंडी की भूमिका में उतारकर नितीश कुमार का शिकार करने की अचूक योजना बनाई है. रामविलास जाते-जाते इस योजना पर बड़ा जुआ खेल गए और ये सब मोदी, शाह और पासवान की बड़ी रणनीति का हिस्सा है. इसी के चलते बिहार में शह और मात का खेल शुरू हो गया. भाजपा अधिकारिक तौर पर तो नितीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार मानकर उतरी है लेकिन उसमें न सिर्फ चिराग को नीतीश पर हमला करने से नहीं रोका बल्कि वह लोजपा अध्यक्ष के साथ दिल्ली में अलग से बातचीत भी करती है. उस बातचीत में क्या हुआ यह तो खुलकर सामने नहीं आया लेकिन इससे कयासों का दौर शुरू हो गया ओर विपक्ष को मजबूत लड़ाई का मौका मिल गया. जरा इस अजीब विरोधाभास पर विचार कीजिए कि पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि नीतीश जैसे सहयोगी के साथ हर चीज मुमकिन है और अब भाजपा का पक्का साथ निभाने के साथ चिराग ने बिहार के लोगों से अपील की है कि अपना वोट जेडीयू को देकर बर्बाद न करें. अकेले चुनाव लड़ने के फैसले के ऐलान में चिराग ने कहा कि जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारेंगे भाजपा के खिलाफ नहीं. लगता है कि यह भाजपा को मदद करने की एक सोची समझी रणनीति है. भाजपा दो नावों की सवारी करके हासिल क्या करना चाहती है. क्या भाजपा चिराग को बिहार में जेडीयू के खिलाफ लड़ने देगी और सरकार में हिस्स भी बनाए रखेगी. अगर ऐसा होता है तो उससे बिहार के वोटरों में क्या संदेश जाएगा. जेडीयू के नेता कहते है कि भाजपा के लिए दोनों हाथ में लडडू जैसी स्थिति नहीं है जो किसी बाहरी नेता को लग रहा होगा. अतिमहत्वाकांक्षी नेता को शह देना और विजयी गठजोड़ को जोखिम में डालना बुद्धिमानी नहीं है. भाजपा को यह याद रखना चाहिए कि महामारी के बाद बिहार में पहला चुनाव हो रहा है. इसलिए पिछले कुछ महीनों में मोदी की नीतियों पर जनमत संग्रह जैसा भी होगा. हालांकि चिराग के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले का मकसद भी स्पष्ट है. उनकी पार्टी ने अपने बयान में कहा है कि केन्द्र की तरह लोजपा बिहार में भाजपा नीत सरकार चाहती है. चुनाव के बाद लोजपा के विधायक मिलकर प्रधानमंत्री मोदी का हाथ मजबूत करेंगे. चिराग की 2020 की रणनीति जाहिर है. अपने पिता के सियासी खेल का ही हिस्सा है. 2005 में रामविलास पासवान कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में थे लेकिन उन्होने बिहार का चुनाव अकेले लड़ा था. त्रिशंकु विधानसभा आने के बाद दो बार चुनाव हुए थे और उसका एकमात्र मकसद 15 साल के लालू शासन को खत्म करना था. लोजपा ने बहुत सीटे तो नहीं जीती पर वह वोट बाटने में कामयाब हो गयी जिससे एनडीए को सरकार बनाने का मौका मिल गया. उस वक्त नीतीश की जेडीयू ओर भाजपा ने फसल काटी थी. अब 2020 में लोजपा नीतीश की पार्टी पर निशाना साध रही है. चिराग खुलेआम भाजपा के मुख्यमंत्री की बात कर रहे हैं. इसलिए लोजपा को कुछ सीटों पर भाजपा समर्थक वोट हासिल करने की उम्मीद में है. चिराग की खुली चुनौती और भाजपा की मौन स्वीकृति से जनता दल (यू) खफा है और सीट बटवारे की धोषणा करने के लिए एनडीए की प्रैस कांफेंस में यह साफ दिखा. एक तरफ भाजपा ने नीतीश को संदेश दिया कि हम आपके साथ हैं और दूसरी और चिराग को हवा देती रही. इधर राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन के लिए बिल्ली के भाग से छींका टूटने जैसी साबित हुई है. हम (एस) और वीआईपी और उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी के निकल जाने के बाद संकटग्रस्त महागठबंधन को चिराग की बगावत ने एक मौका मुहैया करा दिया. कई सालों से राजद का जनाधार मुस्लिम 16.5 और यादव 14 फिसद रहा है जिसे राज्य में वाई समीकरण कहा जाता है और इस वोटर वर्ग ने चुनावी राजनैतिक और कानूनी झटकों के बावजूद लालू प्रसाद यादव की पार्टी का साथ कभी नहीं छोड़ा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन करने के बावजूद 15.7 प्रतिषत वोट हासिल करने में कामयाब रही. हालांकि यह बढ़िया जनाधार है पर यह तभी प्रभावी होता है जब मुकाबला त्रिकोणात्मक या इससे आगे बढ़कर हो अब चिराग ने त्रिकोणी मुकाबले की राह खोल दी है. इसके बावजूद यह कहा जा रहा है कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है. तो क्या नीतीश के अतिदलित, और महापिछड़े में चिराग सैंध लगाने की कुबत रखते हैं.
Published:
14-10-2020
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