नितीश किसके लिए तुरूप का पत्ता
विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : बिहार के विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है. क्यास लगाए जा रहे हैं कि चुनाव परिणाम आने के बाद नए गठबंधन जन्म ले सकते हैं ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि बिहार के मुख्यमंत्री नितीष कुमार किसके लिए तुरुप का पत्ता साबित होंगे. क्या नितीश कुमार चुनाव के बाद एनडीए का साथ छोड़ भी सकते हैं ? यह अभी भविष्य के गर्भ में है. पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक योजना की शुरुआत करते हुए उत्पादन और निर्यात को बढ़ावा देते हुए योजना का डिजीटल प्रारंभ किया तब मोदी ने अपना सम्बोधन भोजपुरी में शरू किया जो उन्होंने भोजपुरी में बिहार के लोगों का अभिवादन करते हुए कहा 'रउआ सबे के परिणाम बा' कुछ ही मिनटों में प्रधानमंत्री ने नितीश बाबू की सफलताएं गिनाई और वे उनकी तारीफ करते दिखे. बिहार क चुनाव को ध्यान में रखते हुए मोदी का सम्बोधन दर्शा रहा था कि वे खुद को बिहार के लोगों के साथ नितीश को भी साधने की कोशिश कर रहे हैं.पांच साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव का नजारा बिल्कुल अलग था. तब प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन ने नितीश के जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के महागठबंधन के खिलाफ एक चुनाव अभियान चलाया था पर वह विफल रहा. भाजपा ने कुल 243 विधानसभा सीटों में से 157 सीटों पर चुनाव लड़ा था उसे 93 लाख से अधिक मत मिले थें जो दूसरी किसी भी पार्टी से अधिक थे लेकिन उसके 53 प्रत्याशी ही जीत सके. अन्य तीन धटकों ने एनडीए के खाते में सिर्फ 6 सीटे जोड़ी थी तब से बहुत कुछ बदल चुका हैं. अगस्त 2017 के बाद से नितीश फिर एनडीए के पाले में लौट आये और उसी पार्टी की मदद से अपने चौथे कार्यकाल की उम्मीद कर रहें हैं जिसने 2015 में उन्हें कड़ी चुनौती दी थी लेकिन उन्हें हराने में कामयाब नहीं हो पाई थी. आखिरी बार भाजपा और जेडीयू ने मिलकर बिहार विधानसभा चुनाव 2010 मे लड़ा था और 206 सीटे जीतकर सरकार बनाई थी. विधानसभा का वर्तमान कार्यकाल 29 नवम्बर को समाप्त हो रहा है और बिहार के दल और गठबंधन चुनावी समर के लिए कमर कस चुके हैं. भाजपा और जेडीयू ने सीट बटवारे को लेकर चुप्पी साध रखी है. नड्डा ने जरूर दोहराया है कि एनडीए नितीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा. बिहार के पिछले चुनावों के आकड़े देखें तो भाजपा और जेडीयू एक साथ लड़े तो अजय ताकत बन जाते हैं. यह व्यापक रूप से बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की सोच की पुष्टि करता है कि जब भी राज्य के तीन मुख्य दलों में से दो गठबंधन करते हैं तो उन्हें हराना मुश्किल होता है. जेडीयू के एक नेता का कहना है कि फरवरी 2005 में त्रिशंकु विधानसभा आने से बिहार के मतदाता विधानसभा के लिए नितीश कुमार और लोकसभा के लिए मोदी के पक्ष में निर्णायक जनादेश दे रहे हैं. 2009 में जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने चुनाव जीता तो मोदी का उभार राष्ट्रीय राजनीति में नहीं था लेकिन उस दौरान भी जेडीयू और भाजपा ने राष्ट्रीय जनता दल, लोजपा गंठबंधन की तुलना में 13 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ 40 में से 32 सीटें जीत लीं. एनडीए ने 2010 के विधानसभा चुनाव में वोट शेयर में बढ़त बनाए रखी. यूपीए के 25.58 मतों के मुकाबले एनडीए को 39.07 फिसद मत मिले. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और जेडीयू ने लोजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और एनडीए को महागठबंधन से 23 प्रतिशत अधिक वोट मिले. एनडीए की प्राथमिकता धटक दलों के बीच सौहार्दपूर्ण बंटवारे की होगी. दोनों पार्टियां बराबर की दमदार हैं. सीटों के साझेदारी की बातचीत अब आगे बढ़ रहीं है. राज्य के कुछ भाजपा नेताओं को लगता है कि उनकी पार्टी को 2010 की तुलना में ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए जैसा कि जेडीयू के एक नेता का कहना हैं कि विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री चुनने के लिए होता हैं नितीश की पार्टी को लगता हैं कि यही उसके तुरूप का पत्ता हैं. एनडीए के लिए फायदे की बात यह है कि राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाला विपक्ष अस्तव्यस्त है. राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव चारा धोटाला मामलों मे अपनी सजा के बाद रांची न्याययिक हिरासत में हैं. तेजस्वी यादव जो पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं उनका जलवा पिता के मुकाबले कहीं नहीं टिकता. विपक्षी गठबंधन ने ना केवल माझी की पार्टी को खो दिया. उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा और मुकेश साहनी की वीआईपी जैसे सहयोगी दलों की मांग से भी परेशानी महसूस कर रहा है. राष्ट्रीय जनता दल के लिए चुनौती लालू के परिवार के खिलाफ लगे व्यापक भ्रष्ट्राचार के कई आरोपों के साथ अतीत के बहुत से दाग धोने की है. 2017 में नितीश ने लालू और तेजस्वी के खिलाफ भ्रष्टाचार के नये आरोप लगने के बाद राष्ट्रीय जनता दल से नाता तोड़ दिया और महागठबंधन की सरकार गिर गई थी. तेजस्वी राष्ट्रीय जनता दल की उसी छवि को बदलने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं जो पार्टी की लालू और राबड़ी देवी की के नेत्त्व वाली सरकार के दौरान बनी थी. एनडीए ब्रान्ड नितीश और बिहार में नितीश के नेतृत्व में 15 साल की प्रगति को प्रोजेक्ट कर रहा है और उसकी तुलना राष्ट्रीय जनता दल के 15 साल के कुशासन से कर रहा है. तेजस्वी को अपनी पार्टी के अन्दर कलह से भी निपटना है. उनके बड़े भाई तेजप्रताप यादव ने महुआ सीट की जगह समस्तीपुर जिले की हसनपुर सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया है. बताया जाता है कि तेजप्रताप ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि जेडीयू उनकी पत्नी ऐष्वर्या को उनके खिलाफ महुआ सीट से उतार सकता है. 13 सितम्बर को राष्ट्रीय जनता दल के दिग्गज नेता रधुवंश प्रसाद सिंह के देहान्त से सवर्णों के बीच पैठ बनाने की पार्टी की कोशिश को धक्का इसलिए पहुँचेगा क्योंकि 10 सितम्बर को उन्होने लालू की पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. जहाँ राष्ट्रीय जनता दल मतदाताओं को तेजस्वी के नए बिहार के आर्कषण में बांधना चाहता है तो जेडीयू और भाजपा बिहार के लोगों को लालू के अतीत की याद दिलाने के लिए कोई कसर नही रखने वाले हैं. वर्तमान और अतीत के इन्हीं दृष्यों के बीच झूलते हुए बिहार को अपने भविष्य का फैसला करना है.