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बिहार में गठबंधन की उलझती गुत्थी

विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक दलों के बीच लामबंदी होने लगी है. कोरोना काल में इस बार चुनाव भी बहुत अलग तरीके से होने वाले हैं. आम लोगों तक अपनी बातों के साथ पहुंचने में राजनीतिक दलों को अधिक समय भी लगने वाला

बिहार में गठबंधन की उलझती गुत्थी
बिहार में गठबंधन की उलझती गुत्थी
विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले राजनीतिक दलों के बीच लामबंदी होने लगी है. कोरोना काल में इस बार चुनाव भी बहुत अलग तरीके से होने वाले हैं. आम लोगों तक अपनी बातों के साथ पहुंचने में राजनीतिक दलों को अधिक समय भी लगने वाला है. इन बातों का आभास सभी राजनीतिक दलों को है. इस बारे में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. 26 जून को हुई बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी बैठक में चुनाव आयोग की टीम के सामने राजनीतिक दलों की यह बात खुल कर सामने आयी है. मौजूदा हालात में राज्य में कितने चरणों में चुनाव हो, इस पर भी अलग अलग राय है. भाजपा एक या अधिकतम दो चरणों में चुनाव चाहती है. विपक्षी दल इस पर एक राय नहीं हैं. पिछली बार राज्य में पांच चरणों में चुनाव हुए थे. विपक्षी दलों ने वर्चुअल रैली को लेकर भी रोष जताया है. उनका कहना है कि चुनाव आयोग को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिये जिससे संसाधन की कमी वाले दलों को भी बराबर का मौका मिले लेकिन बात चुनाव कब और कैसे हो इतनी भर नहीं है. ऐसे समय में जब एन डी ए गठबंधन में सब कुछ ठीक होने के संकेत मिल रहे थे, लोकजनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है. भाजपा पिछले कुछ दिनों से उनके बदलते तेवरों से परेशान है. वह नितीश कुमार पर लगातार सवाल उठा रहे हैं. इस बीच कांग्रेस ने यह कह कर बेचैनी बढ़ा दी कि वो चिराग को अपने गठबंधन में लेने को तैयार है. हालांकि भाजपा को यह लगता है कि चिराग मान जायेंगे. यह केवल ज्यादा सीटों को मांगने के लिये बनाया गया मनोवैज्ञानिक दवाब है. पर सूत्रों की मानें तो इस बार चुनाव बाद चिराग खुद के लिये डिप्टी सी एम का पद चाहते हैं. इस बारे में नितीश और भाजपा कोई ठोस वायदा करने से बच रहे हैं. इसके अलावा एन डी ए में सीटों के बंटवारे को लेकर अभी कुछ तय नहीं हुआ है. नितीश कुमार जीतनराम माझी को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं. अगर वो आ गये तो मामला उलझ सकता है. एन डी ए से मुकाबले के लिये महागठबंधन मैदान में उतरे उससे पहले बहुत सारे नये समीकरण बनने लगे हैं. कांग्रेस ने संकेत कर दिया है कि इस बार आर जे डी के साथ गठबंधन तभी होगा जब उसे पर्याप्त सीटें दी जायेंगी. पार्टी नेताओं के साथ बात करते हुए राहुल गांधी ने पिछले हफ्ते यह कहा था कि वे इस बार चुनाव प्रचार में ज्यादा समय देने वाले हैं. इससे भी राजनीति के नये समीकरण बनने के संकेत गये. अब तक कांग्रेस बिहार में उतनी ताकत नहीं लगाती रही है. वैसे कांग्रेस के अंदर ही गठबंधन को लेकर दो धड़े हैं. इनमें से एक का कहना है कि आर जे डी के रहने से फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा जिसकी वजह बिहार का सामाजिक समीकरण है. इस खेमे का कहना है कि आर जे डी के साथ रहने से उसका सवर्ण और गैर यादव पिछड़े और अति पिछड़े अलग हो जाते हैं. कांग्रेस के इस खेमे का दावा है कि अगर आर जे डी से अलग होकर वे कोई नया विकल्प खड़ा करते हैं तो उन्हें बाकी वोटों में सेंध लगाने का मौका मिल सकता है. इसके लिये वो कांग्रेस के पारम्परिक वोट बैंक सवर्ण, दलित, मुसलमान पर ज्यादा भरोसा करना चाहते हैं. अगर वो मजबूत होते दिखे तो मुस्लिम स्वाभाविक रूप से साथ आ जायेंगे जो राज्य में 17 प्रतिशत के करीब हैं. वहीँ राष्ट्रीय जनता दल में भी सब कुछ ठीक नहीं है. पार्टी को एहसास हुआ है कि अब वह राज्य में मुसलमान और यादवों के वोट के भरोसे चुनाव नहीं लड़ सकती है. इसके बाद दूसरे समुदायों को तोड़ने के लिये अलग अलग तरीके से कोशिश हुई. तेजस्वी यादव आर जे डी के शासन काल में हुई गलतियों पर माफी मांग रहे हैं. यह अपने आप में पहला मौका है जब तेजस्वी यादव उसक वक्त की घटनाओं का जिक्र करके लोगों से माफ करने को कह रहे हैं. दरअसल पहजे लालू यादव और बाद मे उनके जेल जाने के बाद उनकी पत्नी राबड़ी देवी के लगभग डेढ़ दशक के कार्यकाल बिहार में कानून व्यवस्था का ढांचा चरमरा गया था. उनके उपर जाति विशेष के ही काम करने का आरोप लगा था. इन्हीं आरोपों के चलते नितीश कुमार 2005 में पहली बार सत्ता में आये और आर जे डी का जनाधार घटता चला गया. यादव और मुसलमान को मिला कर पार्टी के 28 प्रतिशत वोट हुआ करते थे. आर जे डी ने कई बार कोशिश की कि इसके अलावा दूसरी जातियों का भी वोट मिले तो सत्ता में उसकी वापसी संभव हो सकती है लेकिन इसके लिये आक्रामक रूप से दूसरी जातियों को मनाने की कोशिश नहीं की गयी. माफी की राजनीति हाल में राजनीति का ट्रेंड रही है लेकिन इसकी सफलता तय नहीं मानी जा सकती. अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 2015 में दिल्ली सरकार छोड़ने के फैसले पर माफी मांगते हुए वोट मांगे थे. बाद में कहा गया था कि केजरीवाल की माफी काम कर गयी. इसी फार्मूले पर वर्ष 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी ने यू पी ए 2 की गलतियों को स्वीकार किया था लेकिन इसका कोई लाभ उन्हें नहीं मिला था.

Published: 13-07-2020

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