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कांग्रेस को उलझा सकते है गुजरात के तीन लड़के
विकल्प शर्मा : अहमदाबाद : गुजरात की जंग लगातार रोचक होती जा रही हैं. काँग्रेस में गुजरात के सुरमा अहमद पटेल ने जाल कुछ ऐसा बिछाया कि राहुल लगातार उसमें फसते ही चले जा रहे है. पिछले तीन चुनावों की गल्तियां और उस समय उभरे काँगेस के असंतोष ने राहुल के स
कांग्रेस को उलझा सकते है गुजरात के तीन लड़के
विकल्प शर्मा : अहमदाबाद : गुजरात की जंग लगातार रोचक होती जा रही हैं. काँग्रेस में गुजरात के सुरमा अहमद पटेल ने जाल कुछ ऐसा बिछाया कि राहुल लगातार उसमें फसते ही चले जा रहे है. पिछले तीन चुनावों की गल्तियां और उस समय उभरे काँगेस के असंतोष ने राहुल के सामने नया संकट खड़ा कर दिया है. दूसरी तरफ गुजरात के तीन लड़के अल्पेश, जिग्नेश और हार्दिक ने कम परेशानिया नही खड़ी की हैं. कहने को राहुल को यह बड़ा साथ दिख रहा है लेकिन आने वाले दिनों में कांग्रेस के लिए कई बड़े पेंच फसायेंगे। गुजरात विधानसभा के पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस टिकट वितरण इतनी खमियां से भरा था कि वह उन लोगों को भी अपने साथ नही रख पाई जिन्हें टिकट नही दिया था, 2007 और 2012 के दोनों चुनावों में जिन लोगों को टिकट नही मिले, उन्होने इसका जवाब पार्टी मुख्यालय पर हंगामे और हिंसा से दिया था, भीतरी जानकारों का अनुमान है कि पिछले चुनावां में टिकट बंटवारे में की गई गलतियों का खमियाजा कांग्रेस को कम से कम 40 सीटों से चुकाना पड़ा था. राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत और उनके दो सहायकों-भरत सिंह सोलंकी और शक्ति सिंह गोहिल-के रहते इस बार टिकट बंटवारें में ज्यादा पारदर्शिता की उम्मीद की जा रही है. मगर पार्टी के साथ बंधे हुए पूर्व कांग्रेस नेता शंकर सिंह बाघेला की अगुआई में हुए विरोध में उसने अपने 13 विधायक भाजपा के हाथों गंवा दिय थे. ऐसे में उसे अपने 44 मौजूदा विधायकों को टिकट देने ही होंगे. गुजरात कांग्रेस के महासचिव निशीथ व्यास स्वीकार करते है कि ‘‘एहतियात बरतना होगा कि टिकट से वंचित नाराज लोग नकारात्मक प्रतिक्रिया न करें’’. अगर यह सच भी हो तो कहना जितना आसान है उतना करना नही, क्योकि जैसा कि कांग्रेस के एक नेता मानते है कि ‘‘इस चुनाव मे ग्रामीण इलाकों की लगभग हरेक सीट के लिए 15 से 20 दावेदार है’’. ठाकोर, पटेल ओर मेवाणी के साथ पेश आना भी आसान नही होगा, खासकर तब जब तीनों ही टिकटों के बंटवारें को लेकर कांग्रेज नेतृत्व के साथ सौदेबाजी कर रहे हैं. इनमें ठाकोर खास तौर पर अड़ियल बताए जाते हैं. भीतरी जानकारों का दावा है कि पटेल ने 15-20 टिकटों की मांग की है जहाँ मेवाणी सबसे ज्यादा नरम और सीधे हैं, वहीं यह तिकड़ी कुल मिलाकर कम से कम 40 सीटें अपने लिए चाहती है. कागजों पर तो पटेल, ठाकोर, और मेवाणी का कांग्रेस के खेमे मे होना लुभावना नज़र आता है. पर हकीकत में तीनों मे हितों में टकराव है, मिसाल के लिए, उतर और दक्षिण गुजरात में, और सौराष्ट्र के कुछ अहम जिलों में भी ठकोर और कांग्रेस का ओबीसी क्षत्रिय समुदाय में तगड़ा असर है. मगर गांवों में पटेलों का पारंपरिक तौर पर ओबीसी क्षत्रियों के साथ टकराव है. पहले ये दो समुदाय एक साथ आये भी हैं तो केवल तभी जब भाजपा ने उन्हें मना लिया था कि उनके हित हिन्दु एकजुटता के जरिए ही सबसे अच्छे तरीके से पूरे हो सकते है. उनकी एक दूसरे से होड़ करती मांगो की कांग्रेस कैसे संभालेगी ? ग्रामीण गुजरात के बड़े हिस्सों में तमाम ओबीसी जातियां न केवल ओबीसी क्षत्रियों बल्कि पटेलों के भी खिलाफ हैं, पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि जिन इलाकों में हार्दिक की मर्जी से चुने गये कांग्रेस के पटेल उम्मीदवारों तो तगड़ा समर्थन हासिल हैं, वही भाजपा पहले ही मतदाताओं को जाति के आधार पर बांटने का मंसूबा बना रही है. पार्टी के गुजरात प्रभारी गहलोत, जिनकी अगुआई ने कांग्रेस के वास्तविक उभार में बेहद अहम भूमिका अदा की है जोर देकर कहते है कि ‘‘जाति और सांप्रदायिक आधारों पर ध्रुवीकरण की भाजपा की कोशिशों कामयाब नही होगी क्योकि तमाम मुद्दों पर भाजपा के खिलाफ नाराजगी ने लोगों को आपस में एक जुट कर दिया है,’’ कांग्रेस में कई लोग दावा करते है कि सत्ता-विरोधी रुझान इस कदर मजबूत है कि वह जाति की दरारों को ढक सकता है, इसके बाद भी छोटे-बड़े 38 पटेल संगठन हार्दिक के खिलाफ सामने आए हैं और उसे सियासी महत्वाकांक्षा से ग्रस्त खुदगर्ज नेता करार देते हैं. इनका आरोप हे कि हार्दिक पटेल समाज को गुमराह कर रहे है तब जबकि भाजपा की राज्य सरकार ने उसकी ज्यादातर मांगे मान ली है। हार्दिक ती तरह ही ठाकोरों की बड़ी तादाद ने भी अल्पेश के समुदाय का नेता होन पर सवाल खड़े किए हैं. उनकी गुजरात ठाकोर सेना के पूर्व समर्थकों ने शिकायत की है कि अल्पेश ने कसम खाई थी कि वे सामाजिक कार्यकर्ता हैं और कभी सियासत में कदम नही रखेंगे. भाजपा उनकी विश्वासघात की भावना को तूल देने पर आमादा हैं. गुजरात भाजपा के प्रवक्ता भरत पाड्ंया जाहिरा तौर पर हार्दिक और अल्पेश के संदर्भ में कहते है, ‘‘विशाल समुदायों पर पकड़ बनाए रखना उतना आसान नही होता जितना सियासी पंड़ितों को लगता है." भाजपा के ओबीसी क्षत्रिय चेहरे नातुजी ठाकोर ज्यादा दोटूक है वे दावा करते है, ‘‘अल्पेश की राजनैतिक ताकत को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर आंका जा रहा है’’. कांग्रेस अगर ऊपर गिनाए गए मुद्दों में से कुछ का समाधान कर भी लेती है तब भी शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों की सौ सीटों पर भाजपा का दबदबा कैसे खत्म करेगी ? उसके लिए चिंता का विषय है पिछले चुनाव में भाजपा ने यह दबदबा साबित किया था जब अहमदाबाद वडोदरा, सूरत और राजकोट सरीखे शहरों में तकरीबन हर सीट उसने जीती थी, बावजूद इसके उसे ग्रामीण उत्तर और मध्य गुजरात में भारी नुक्सान उठाना पड़ा था. नगर निकायों के 2015 में हुए चुनावों में ,हार्दिक पटेल के उभरने के बाद भी भाजपा ने 31 जिला पंचायतों में से महज सात और 203 तालुका पंचायतों मे से 56 जीती थी, पर सातों नगर निगम जीतकर उसने शहरी इलाकों में अपना दबदबा बनाए रखा था. राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर उसका एक ट्रैक रिकॉर्ड रहा है. मिसाल के लिए नर्मदा बांध को इसकी पूरी ऊंचाई 139 मीटर तक बढ़ाने का प्रस्ताव मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले केंद्र में यूपीए की सरकार के मातहत एक दशक तक धूल खता रहा था. 2012 में गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी ने सौराष्ट्र के कोई 5,000 गांवों को सूखे सरीखें हालात से निजात दिलाने के लिए सरदार सरोवर बांध में जमा किए नर्मदा के अतिरिक्त पानी को 115 बांधो में ले जाने की एक परियोजना का ऐलान किया था. बतौर प्रधानमंत्री उन्होने इस पर आगे काम किया और 2016 में सौराष्ट्र नर्मदा अवतरण सिंचाई (सौनी) योजना के पहले चरण का उद्घाटन किया, भाजपा मानती है कि परियोजना ग्रामीण सौराष्ट्र में कांग्रेस का मुकाबला करने में मदद करेंगी. आखिर में, कांग्रेस सत्ता-विरोधी भावना का चाहे जितना ढ़िढ़ोरा पीटे, वह जानती हे कि मोदी ने अपने गृह राज्य में तकरीबन मिथकीय दर्जा हासिल कर लिया है. इसे कुछ लोग ‘गुजराती गौरव’कहते है उसका खासा हिस्सा नेता के तौर पर मोदी की छवि में निहित है. कांग्रेस के एक नेता ने माना कि तीन महीने में पार्टी ने जो बढ़त बनाई है वह मोदी की अपील के सामने ताश के पत्तों की तरह धराशायी हो जाएगी. इस बात का हमें सबसे ज्यादा डर है हिंदुत्व की प्रयोगशाला के तौर पर जाने जाने वाले सूबे में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को हिंदुत्व कार्ड खोलने में कोई झिझक नही है. इसकी एक बड़ी कोशिश पहले ही की जा चुकी है जब कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य और सोनिया गांधी के भरोसेमंद अहमद पटेल की भरूच के एक अस्पताल में (जिसमें पटेल ट्रस्टी रहे थे) काम कर चुके एक संदिग्ध आतंकी के जरिए आइएसआइएस से जोड़ने की कोशिश की गयी थी. शाह का दूसरा तुरुप का पत्ता डी0जी0 वजारा है जो गुजरात पुलिस के पूर्व डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल और आतंक-विरोधी दस्ते के प्रमुख थे, उन्होने कथित फर्जी मुठभेड़ो मे की गई हत्याओं मे आरोप में आठ साल जेल में बिताए हैं. उसने उन्हे कट्टर हिन्दुओं के बीच नायक बना दिया है. भाजपा मानती है कि वंजारा की लोकप्रियता कांग्रेस की जाति रणनीति की दमदार काट साबित हो सकती है. जब तक मोदी सर्वेसर्वा है तब तक शाह की रणनीति और बूथ प्रबंधन की वजह से कांग्रेस के लिए गुजरात में अपने सपने को साकार करना आसान नही है.
Published:
14-11-2017
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