सत्संग महोत्सव का तीसरा दिन
इंदिरानगर सेक्टर 14 स्थित सिद्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर परिसर में चल रहे प्रभु श्रीराम चर्चा सत्संग महोत्सव के तृतीय दिवस प्रख्यात कथाव्यास आचार्य सन्तोष भाईश्री ने बताया कि हमारे देश भारत में जीवन के लक्ष्यों का निर्धारण श्रीरामचरितमानस से होता रहा है। प्रभु श्रीराम के चरित्र का चिंतन करने से जीवन का निर्माण होता है। जीवन जीने की दिशा प्राप्त होती है। प्रभु श्रीराम का चिंतन करने से हमारे विचारों का शोधन होता है।
विषम परिस्थितियो में प्रभु श्रीराम ने अपने आनन्द को विस्मृत होने नहीं दिया। संसार के लोग थोड़ी सी समस्या में अपने आनन्द को विचलित कर लेते हैं। प्रभु श्रीराम के जीवन में जो आनन्द अयोध्या में उनके साथ रहा, इसी आनन्द के दर्शन वनवास में चित्रकूट पंचवटी आदि स्थानों पर उनके जीवन चरित्र से होते हैं।
आचार्य भाईश्री ने कहा कि प्रभु श्रीराम के जीवन में गृहस्थ आश्रम का सुंदर दर्शन मिलता है। प्रभु श्रीराम अपने परिवार में रहकर पत्नी का, भाई का, परिजनों का और समाज का कैसे ध्यान रखना है, इसके सुंदर दृष्टांत प्राप्त होते हैं। हमें अपने जीवन में राम राज्य की स्थापना करने के लिए सर्वप्रथम अपने ह्रदय में प्रभु श्रीराम की स्थापना करनी होगी। प्रभु श्रीराम की स्थापना करने का तात्पर्य है समाज के सभी वर्गों से प्रेम और सभी वर्गों का विकास के मार्ग को प्रशस्त करना।
मनु और सतरूपा के मन में जब भगवान की भक्ति का भाव आया, तब परमात्मा ने उनको आश्वासन दिया कि मैं आपके घर में अवतरित होऊंगा। लेकिन उससे पहले मनु महाराज और माता शतरूपा ने हजारों वर्ष तपस्या करके अपने मन को मलरहित कर लिया, निर्मल बना लिया। प्रभु श्रीराम इस बात की चर्चा श्रीरामचरितमानस में करते हैं कि 'निर्मल जन मन सो मोहि पावा, मोहि कपट छल छिद्र न भावा'।
भगवान श्रीराम को पाने का अर्थ यही है कि निरंतर उनका स्मरण होता रहे एवं प्रभु श्रीराम के सद्गुण हमारे जीवन में स्थापित हो जाएं। उन्होंने कहा कि प्रभु के स्मरण मात्र से ही उनकी ऊर्जा, उनकी शक्तियां, हमारे शरीर में कार्य करने लगती हैं। संतो ने बताया है कि प्रभु के स्मरण से अजामिल, गणिका, रत्नाकर, अंगुलिमाल जैसे बहुत से ऐसे लोग जो कुमार्ग पर जा रहे थे, प्रभु श्रीराम का स्मरण करने से उनके जीवन की दिशा और दशा दोनों बदल गए।
आचार्य श्री ने कहा कि साधकों को पहले अपने विचारों को परिवर्तित करना होता है और एक बार विचार परिवर्तित हो गए तो कर्म अपने आप परिवर्तित हो जाते हैं। प्रभु श्रीराम की विचारधारा से जुड़ते ही व्यक्ति के कर्म परिवर्तित होने लगते हैं और उसका जीवन अधोगति से ऊर्ध्वगति की ओर चलने लगता है।