स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने प्रथम सोमवार की शुभकामनायें दी
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि हिंदू कैलेंडर के चार सबसे पवित्र महीनों में चतुर मास का पहला और सबसे शुभ, पवित्र, श्रेष्ठ एवं विशिष्ट महिना है ‘श्रावण’। श्रावण माह में व्रत, शिवाभिषेक, शाकाहारी भोजन के माध्यम से उत्तम स्वास्थ्य, आध्यात्मिक विकास, सद्भाव, आनंद और भगवान शिव की दिव्यता, सकारात्मकता और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये पूरे माह साधना करते हैं।
श्रावण माह भगवान शिव को समर्पित है। भगवान शिव तो ‘संहारक’ है, सृजन कर्ता और ‘नव निर्माण कर्ता’ भी है। ‘शिव’ अर्थात कल्याणकारी, सर्वसिद्धिदायक, सर्वश्रेयस्कर ‘कल्याणस्वरूप’ और ‘कल्याणप्रदाता’ है। जो हमेशा योगमुद्रा में विराजमान रहते है और हमें जीवन में योगस्थ, जीवंत और जागृत रहने की शिक्षा देते है।
सोमवार को परमार्थ निकेतन कांवड मेला शिविर में कांवडियों और शिव भक्तों को योगाचार्यों ने योग और ध्यान कराया। कांवडियों को स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ योग, ध्यान, स्वच्छता के प्रति जागरूकता, हाथ धोने के सात स्टेप आदि का अभ्यास कराया जा रहा है।
पुराणों में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष के विनाशकारी प्रभावों से इस धरा को सुरक्षित रखने के लिये भगवान शिव में उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण किया और पूरी पृथ्वी को विषाक्त होने से; प्रदूषित होने से बचा लिया। भगवान शिव ने विष शमन करने के लिये अपने सिर पर अर्धचंद्राकार चंद्रमा को धारण किया तथा सभी देवताओं ने माँ गंगा का पवित्र जल उनके मस्तक पर डाला ताकि उनका शरीर शीतल रहे तथा विष की उष्णता कम हो जाये।
चूंकि ये घटना श्रावण मास के दौरान हुई थीं, इसलिए श्रावण में शिवजी को माँ गंगा का पवित्र जल अर्पित कर शिवाभिषेक किया जाता है, कांवड यात्रा इसी का प्रतीक है। शिवाभिषेक से तात्पर्य दिव्यता को आत्मसात कर आत्मा को प्रकाशित करना है। प्रतीकात्मक रूप से शिवलिंग पर पवित्र जल अर्पित करने का उद्देश्य है कि हमारे अन्दर की और वातावरण की नकारात्मकता दूर हो तथा सम्पूर्ण ब्रह्मण्ड में सकारात्मकता का समावेश हो।
श्रावण माह प्रकृति और पर्यावरण की समृद्धि, नैसर्गिक सौन्द्रर्य के संवर्धन और संतुलित जीवन का संदेश देता है।