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किसानों के दोस्त नहीं दुश्मन है वो लोग जो कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं

सतीश मिश्र : लखनऊ : वर्ष 2003 से वर्ष 2018 के बीच की 15 वर्ष की समयावधि में देश में हुए गेंहू के कुल उत्पादन के मात्र 36.4% और चावल के मात्र 43.6% हिस्से की सरकारी खरीद हुई थी. अर्थात्‌ इतने गेंहू चावल को MSP पर खरीदा गया था. इसमें वो संख्या भी शामि

किसानों के दोस्त नहीं दुश्मन है वो लोग जो कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं
किसानों के दोस्त नहीं दुश्मन है वो लोग जो कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं
सतीश मिश्र : लखनऊ : वर्ष 2003 से वर्ष 2018 के बीच की 15 वर्ष की समयावधि में देश में हुए गेंहू के कुल उत्पादन के मात्र 36.4% और चावल के मात्र 43.6% हिस्से की सरकारी खरीद हुई थी. अर्थात्‌ इतने गेंहू चावल को MSP पर खरीदा गया था. इसमें वो संख्या भी शामिल है जिसे दलाल और बिचौलिए किसानों से औने पौने दाम पर खरीद कर सरकारी मंडी में MSP पर खुद बेचते थे. यह संख्या कितनी बड़ी है. इसे खेती करने वाला कोई भी किसान बहुत अच्छे से जानता समझता है. सच तो यह है कि देश में गेंहू चावल पैदा करने वाले केवल 15 से 20 प्रतिशत किसानों को ही MSP का लाभ मिल पाता है. जबकि कृषि बिल का विरोध कर रहे मुट्ठी भर कुछ बिचौलिए और दलाल इस बिल के विरोध में केवल दो ही दलील दे रहे हैं. वो इस बिल को MSP खत्म करने और कृषि को प्राइवेट कम्पनियों के हाथों में सौंप देने की सरकार की साजिश बता रहे हैं. हालांकि कृषि बिल में MSP खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है. सरकार भी इस बात को पूरी तरह नकार चुकी है. MSP की व्यवस्था जारी रखने की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री मोदी कर चुके हैं. अब बात मुद्दे की. पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 में देश में कुल 22.37 करोड़ टन गेंहू और चावल का उत्पादन हुआ था. इसमें गेंहू का उत्पादन 10.62 करोड़ टन और चावल का उत्पादन 11.75 करोड़ टन था. अब एक दूसरा आंकड़ा भी जानिए. पिछले वित्तीय वर्ष 2019-20 में ही देश में कुल 18.7 करोड़ टन दूध का उत्पादन हुआ था. यह मात्रा गेंहू से लगभग 75% अधिक और चावल से लगभग 59% अधिक है. ध्यान रहे कि उपरोक्त तीनों वस्तुओं का उत्पादन किसानों द्वारा ही किया जाता है. लेकिन इनमें से दूध का उत्पादन और खरीद बिक्री की प्रक्रिया पूरी तरह से निजी क्षेत्र के पास ही है. उसके मूल्य निर्धारण से लेकर बिक्री की व्यवस्था तक में किसी प्रकार का कोई सरकारी दखल नहीं है. अमूल जैसी निजी क्षेत्र की कम्पनी देश के दुग्ध उत्पादक किसानों के लिए वरदान सिद्ध हुई और अमूल की तर्ज पर पूरे देश में ऐसी छोटी बड़ी कम्पनियों का जाल बिछा हुआ है. दूरदराज के गांवों तक उन कम्पनियों की गाड़ियां दूध खरीदती हैं और पैसे देती हैं. क्या आपने आज तक अमूल या उस जैसी और कंपनियों के खिलाफ़ ऐसी कोई खबर कहीं देखी सुनी या पढ़ी जिसमें यह जिक्र हो कि अमूल के शोषण के कारण दुग्ध उत्पादक हुड़दंग बवाल या नंगई पर उतारू हो गए हों. ध्यान रहे कि कृषि बिल के लागू हो जाने के बाद किसानों के अनाज की खरीद प्रक्रिया भी लगभग इसी शैली में शुरू होगी. इसका असर दिखाई देने में लगभग दो वर्ष लगेंगे. बड़ी बड़ी कम्पनियों के बीच की प्रतिस्पर्द्धा किसानों को निश्चित रूप से उनकी उपज का बढ़िया मूल्य दिलाएगी. कृषि बिल लागू हो जाने के कारण देश का दूसरा सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि भण्डारण की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण हर वर्ष लाखों टन अनाज सड़ जाने की जो खबरें हम पिछले 74 सालों के दौरान पढ़ते रहे हैं. वो समस्या लगभग पूरी तरह खत्म हो जाएगी क्योंकि निजी कम्पनी अपने द्वारा खरीदे गए अनाज का एक दाना भी सड़ने नहीं देंगी, बिल्कुल उसी तरह जिस तरह अमूल और उस जैसी कम्पनियां अपने खरीदे गए दूध की एक बूंद भी बरबाद नहीं होने देती. इसीलिए इस पोस्ट की शुरुआत मैंने यह लिखते हुए की है कि किसानों के दोस्त नहीं दुश्मन है वो लोग जो कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं. आज पंजाब दिल्ली और हरियाणा में कृषि बिल के विरोध की आड़ में हुड़दंग बवाल और नंगई कर रहे लफंगों की भीड़ और बाइट दिखा दिखाकर उनका महिमामंडन कर रहा लुटियनिया मीडिया आपको, देश को और विशेषकर किसानों को उपरोक्त सच्चाई और तथ्य नहीं बता रहा है. इसलिए इस देश और उसके किसानों की भलाई के लिए यह जरूरी है कि सोशल मीडिया के माध्यम से उपरोक्त सच्चाई उन तक हम आप पहुंचाएं. क्या आप जानते हैं कि मई 2014, यानी नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले तक इस देश का किसान मर्सिडीज फॉर्च्यूनर सरीखी अपनी गाड़ियों में बैठकर दिल्ली के कृषि भवन आता था. देश का कृषि मंत्री अपने हाथ में लड्डूओं का डिब्बा और ठंडे पानी की बोतल लेकर कृषि भवन के गेट पर ही खड़ा रहता था. "कृषि भवन पहुंच कर अपनी कार की खिड़की का शीशा उतार कर किसान कार में बैठे बैठे ही आदेश देता था-इस बार गेंहू चावल गन्ने का MSP इतना बढ़ा दो. इतना सुनते ही कृषि मंत्री झुक कर किसान को सलाम कर के कहता था-जी हुजूर जैसा आपका हुक्म, आज और अभी से बढ़ाए दे रहा हूं. इसके बाद कृषि मंत्री.. "लीजिए लड्डू खाइए हुजूर" कहते हुए लड्डूओं का डिब्बा किसान के आगे बढ़ा देता था लेकिन जबसे नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बना है तब से यह सिस्टम खत्म हो गया है. देश का किसान बेचारा बहुत परेशान हो गया है.

Published: 28-11-2020

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