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मुस्लिम सियासत : दस बरस बाद मिला सम्बल

दस बरस बाद मिला सम्बल
दस बरस बाद मिला सम्बल

16वी लोकसभा का चुनाव मोदी के सियासी संगीत का वषीभूत था। 2024 की 18वी लोकसभा का चुनाव जातीयता के पराक्रम ने लड़ा। धु्रवीकरण की सियासत कमजोर पड़ी। 2014 में करीब 40 फीसदी मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा का कमल खिला था। उस दौर में मुस्लिम सियासत पर प्रश्न चिन्ह लग गये थे। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में पस्थितयों में आंशिक सुधार आया। 2024 की 18वीं लोकसभा के चुनाव में तो भाजपा की नींव हिल गयी।

इस साल हुए लोकसभा के चुनाव में इंडिया गठबबंधन तले सपा-कांग्रेस के दो शहजादों की जोड़ी ने यूपी में भाजपा की चूलें हिलाकर रख दी। 2014 में 72, 2019 में 62 सीट जीतने वाली भाजपा 2024 में 36 सीटो पर सिमट गयी। इंडिया गठबंधन ने जहां कई सीटो पर जोरदार वापसी की वही भाजपा के कई मजबूत किलो को ध्वस्त कर दिया। कांग्रेस ने अपने गढ अमेठी में वापसी की।

कांग्रेस के एक प्यादे किशोरी लाल शर्मा ने भाजपा प्रत्याशी एवं केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को मात दी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अधिकतर लोकसभा सीटे मुस्लिम बाहुल्य है। 16वीं लोकसभा के चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य सीटो पर भाजपा ने जीत दर्ज की थी। 2019 के चुनाव में करीब दस सीटो का उसे नुकसान उठाना पड़ा था।

2022 के विधान सभा चुनाव में जाट मुस्लिम गठजोड़ पनपा। जिससे पष्चिमी उत्तर प्रदेष की अधिकतर मुस्लिम बहुल सीटो पर भाजपा को षिकस्त का सामना करना पड़ा था। इस कड़वे नतीजो से पीएम मोदी ने सबक लिया। घाटे की भरपाई करने की गरज से रालोद मुखिया जयंत चौधरी को 2024 के लोकसभा चुनाव में अपने साथ कर लिया। लेकिन इस जुड़ाव का कोई खास फायदा भाजपा को नही मिला।

अपितु रोद के दो प्रत्याषी संसद की ड्योढ़ी जरूर लांघने में सफल रहे। वेस्ट यूपी के सियासत की एक रवायत रही है कि जहां 30 से 50 फीसदी मुस्लिम आबादी या मतदाता है वहां हिन्दू मतदाताओं में जबरदस्त ध्रुवीकरण होता है। अब तक हुए ध्रुवीकरण का पूरा फायदा भाजपा को मिला है।

पश्चिमी यूपी में कभी मुस्लिम-दलित, और कभी मुस्लिम-जाट समीकरण सियासी सेहत को प्रभावित करते रहे है। 2013 में जाट मुस्लिम समीकरण ध्वस्त होने का फायदा 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिला।
पश्चिमी यूपी की बिजनौर ,नगीना, मुरादाबाद, रामपुर, और संभल में करीब ं 41 से 50 फीसदी मुस्लिम मतदाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन से भाजपा ये सीटे हार गयी थी।

इसी प्रकार सहारनपुर कैराना, मुजफ्फर नगर, अमरोहा, मेरठ आवला और बरेली लोकसभा सीटो पर 31 से 41 फीसदी मुस्लिम मतदाता है। इन सीटो मेें भाजपा सहारनपुर अमरोहा में पराजित हुई थी। लेकिन कैराना, मेरठ, मुजफ्फर नगर आवला और बरेली लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की थी। 2014 में मुजफ्फरनगर सीट पर चौधरी अजीत सिंह की हार से पूरा जाटलैंड तिलमिला उठा था। इसी साल भाजपा मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर और बिजनौर सीट जीती थी। उस दौर में जाट पूरी तरह से भाजपा के साथ थे। 16वीं लोकसभा में यूपी से एक भी मुस्लिम संसद नहीं पहुंचा था।

भाजपा 2014 में मुस्लिम बहुल क्षेत्रो में 22 सीटे जीती थी। 2019 में यह आंकड़ा घटकर 15 सीटो पर आ गया। आठ सीटे विपक्ष के खाते में गयी थी। भारत में कुल 92 सीटे मुस्लिम बाहुल्य है। 2014 में एनडीए ने 41 सीटे हासिल की थी। यूपीए को कुल 18 सीटे मिली थी। 2019 में यूपीए के खाते में कुल 15 सीटे आयी। ये वो सीटे थी जहां मुस्लिम मतदाताओं की आबादी 20 फीसदी से अधिक थी।

 


जेपी गुप्ता


Published: 20-06-2024

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