के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर हुई परिचर्चा
बतौर मुख्य वक्ता लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. योगेन्द्र प्रताप सिंह ने आद्यगुरु शंकराचार्य के विलक्षण अवतरण तथा उनके अद्भुत मत पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से आईं वरिष्ठ साहित्यकार एवं दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष डॉ. इन्दिरा मोहन के सद्यप्रकाशित ग्रंथ
'श्रीशांकर भाष्य सार उपनिषद संजीवनी' का बड़ा सटीक विश्लेषण किया।
दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. रचना विमल दूबे के मुख्य समन्वयन एवं संचालन में सम्पन्न इस विशिष्ट संगोष्ठी में सभाध्यक्ष डॉ. इन्दिरा मोहन ने आद्यगुरु शंकराचार्य पर रचित अपने भाष्य ग्रंथ पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने शंकराचार्य परंपरा की चारों पीठों की पुनः प्रतिष्ठा के लिए कार्य करने का आह्वान सभी से किया।
भाग्योदय फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं संस्थापक आचार्य राम महेश मिश्र ने कुछ ऐसा करने की अपील देशवासियों से की कि राष्ट्र की नई पीढ़ी अपनी शंकराचार्य परंपरा को अच्छे से जाने। उन्होंने अनेक सन्तों द्वारा अपने नाम के साथ शंकराचार्य का नाम लगाने पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि इसे बिना कोई देर किए रोका जाना चाहिए। शंकराचार्य पीठों द्वारा भी हरसंभव प्रयास किए जाएं कि वे पीठें खासजन से लेकर आमजन तक अपनी पहुंच बना सकें।
डॉ. रचना विमल ने संस्कारों के तेजी से हो रहे क्षरण पर चिन्ता व्यक्त करते हुए बाल पीढ़ी को संस्कारों से दूर नहीं होने देने के लिए देशवासियों को प्रेरित किया।
इस अवसर पर पूर्व आईएएस अधिकारी उमाधर देवी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की प्रधान संपादक डॉ. अमिता दूबे, साहित्यकार राधेश्याम राधे, उपनिधि के संपादक सुबोध दूबे, प्रयाग आरोग्यं केन्द्र के अध्यक्ष योगाचार्य प्रशान्त शुक्ल, समाजसेवी देवमणि शुक्ल, पूर्व सेनाधिकारी मनोज पाण्डेय, पंकज द्विवेदी, लेखक अमित कुमार, वेद प्रकाश गुप्ता, लोकेश पाण्डेय सहित अनेक गन्यमान व्यक्ति मौजूद थे।