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चाह गई चिंता मिटी मनुआ बेपरवाह : जाको कछु ना चाहिए वो शाहन के शाह

18वीं पुण्यतिथि" 8 जुलाई 2025 पर चंद्रशेखर जी की स्मृति में विशेष

जाको कछु ना चाहिए वो शाहन के शाह
जाको कछु ना चाहिए वो शाहन के शाह

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्रद्धेय द्वारिका प्रसाद जी का चंद्रशेखर के बारे में यह कथन तथा चंद्रशेखर जी का बार-बार यह कहना -"खुल खेलो संसार में बांध सके न कोय, घाट जकाती क्या करे जो सिर बोझ न होय"!! उनके चरित्र को पूर्ण रूप से परिभाषित करने के लिए काफी है ! वह एक विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे, जो आज भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं है, पर उनके विचार और व्यक्तित्व की छाप हम पर हमेशा निरंतर पड़ती रहेगी !!

वह किसी भी परिस्थिति में अपने वैचारिक समझ से समझौता न करने वाले राजनेता थे, जिनको तात्कालिकता प्रभावित नहीं कर पाती थी ! उनकी प्रतिभा के अनेक आयाम है और सब के सब आम से अलग और निराले हैं ! शायद यही कारण है कि सुप्रसिद्ध लेखक एवं "पत्रकार" उपसभापति राज्यसभा हरिवंश जी ने चंद्रशेखर जी पर रचित अपनी पुस्तक को "चंद्रशेखर द लास्ट आइकन ऑफ आईडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स" यानी चंद्रशेखर आदर्शवादी राजनीति के अंतिम प्रतीक नामक शीर्षक से सुशोभित करना पड़ा तथा विदेशी लेखक रोड्रिक मैथ्यू ने चंद्रशेखर 'सिक्स मंथ डेब्ट सेव्ड इंडिया" यानी चंद्रशेखर के 6 महीने जिसने भारत को बचाया, नामक पुस्तक लिखकर प्रधानमंत्री के हैसियत से तात्कालिक विषम परिस्थितियों में विकट समस्याओं के समाधान हेतु चंद्रशेखर जी द्वारा लिए गए नीतिगत महत्वपूर्ण फैसलों और उनके दूरगामी परिणामों की विवेचना को लिपिबद्ध कर विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर दिया !

उनका जीवन उन निश्चित धारणाओं से नियंत्रित होता था, जो निश्चित ही नानक, बुद्ध, गांधी, आचार्य नरेंद्र देव, लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी के जीवन तथा कथनों से प्रेरित था ! इसी प्रेरणा ने उनको बड़ी से बड़ी प्रभावी राजनैतिक हस्तियों के समक्ष अपनी राय को स्पष्ट रूप से रखने की शक्ति प्रदान की ! उन्होंने राजनीति के अनेक मोड़ पर डॉक्टर लोहिया जी तथा यहां तक लोकनायक जयप्रकाश जी के समक्ष भी अपनी भिन्न राय को विनम्रतापूर्वक रखने का प्रयास किया और इसी मान्य धारणा ने आपातकाल की घोषणा पर उनको इंदिरा गांधी के विरोध में कंटकाकीर्ण मार्ग अपनाने को विवश कर दिया ! उनकी दृष्टि अति गहरी और दूरगामी थी !

स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश पर तथा वहां हुए नरसंहार के बाद अपने साथियों के बीच गपशप में उन्होंने गंभीरता से टिप्पणी करते हुए कहा, जो कोई भी सिख धर्म के इतिहास को जानता या समझता था तथा उसको क्या अनोखा बनाता है यह वह अवश्य जानता होगा कि यह एक ऐसी घटना थी जिस को अनुत्तरित नहीं छोड़ा जाएगा ! भारत की एक महान महिला नेत्री को उसकी कीमत चुकानी पड़ी, भारत दागदार हुआ ! जब राजीव गांधी ने गलत सलाहकारों की सलाह मानते हुए श्रीलंका में अपने आधे अधूरे मिशन की शुरुआत कर दी ! भारतीय सेना की तैनाती हुई और खूनी संघर्ष हुआ !

चंद्रशेखर जी की टिप्पणी थी कि "ऐसा तब होता है जब लोग इतिहास को नहीं पढ़ते हैं और इतिहास गढ़ने निकल पड़ते हैं "! एक और दुखद घटना घटी और भारत ने राजीव गांधी जैसे ऐसे नेता को खो दिया जो आज की पीढ़ी पर भारी पड़ सकता था ! आज की समस्याओं और उनके समाधान को हम बुजुर्गों से बेहतर ढंग से समझ सकते थे| विश्व स्तर के एक महान आध्यात्मिक एवं धार्मिक हैसियत के धर्माधिकारी से अपनी निजी वार्तालाप में उन्होंने कहा कि मान्यवर मैं यह नहीं जानता कि धर्म में राजनीति का हस्तक्षेप, धर्म का कितना नुकसान करता है, यह आप अच्छी तरह से समझ सकते हैं पर मैं यह भली भांति जानता हूं कि राजनीति में धर्म का प्रवेश देश के लिए और समाज के लिए अत्यंत घातक है !

चंद्रशेखर जी बतरस का आनंद बखूबी लेते थे ,उन्होंने ऐसी एक मित्र मंडली की बैठक में कहा कि मैं ऐसे जमाने में राजनीति में आया था, तब माना जाता था कि पढ़ा लिखा राजनेता अच्छा होता है ! आज देखता हूं तो लगता है राजनीति करने वालों को पढ़ने लिखने से क्या मतलब ! तब जिसको देखो क्रांति की बात करता था, क्रांति करने राजनीति में आया था और अब ? आगे की बात हमारे जैसे कार्यकर्ताओं को समझने के लिए छोड़ दिया ! चंद्रशेखर जी एक ऐसे सपूत थे जिनका राजनीतिक पिंड ऐसे जमाने में और ऐसे महान हस्तियों के सानिध्य में निर्मित हुआ कि राजनीति को क्रांति और समाज रचना से विरत न कर सके ! सत्ता साधने के लिए वे राजनीति में नहीं आए थे , राजनीति में थे इसलिए उनकी सत्ता से मुठभेड़ लगातार और अनिवार्य रूप से होती रही और आज भी हो रही है!

वह गांधी जी और जयप्रकाश जी को स्वीकार करते थे, लोक शक्ति को परिवर्तन की अंतिम निर्णायक शक्ति की मान्यता देते थे, पर लोक शक्ति का राजनीतिक सत्ता से टकराव की अपरिहार्यता को स्वीकार नहीं करते थे| राजनीति की अवधारणा और परिवर्तनकारी शक्तियों पर विश्वास करते थे, इसीलिए वह लोक शक्ति को साधने में राजनीति का त्याग न कर सके और मेरे जैसे क्रांति के प्रति अतिउत्साही लोग जब कभी ऐसा आग्रह करने की हिमाकत कर देते थे, तो मुस्कुरा कर हल्के से कह देते थे कि न मै गांधी बन सकता हूं और न ही मै जयप्रकाश बन सकता हूं और न ही मै गांधी या जयप्रकाश बनना चाहता हूं क्योंकि मैं अपनी क्षमता जानता हूं !!

राजनीति को कभी ऐसे नहीं पकड़े कि सत्ता के हत्थे पर पकड़ बनाए रखने के लिए कोई भी समझौता कर ले ! उनको अपने कार्यकर्ताओं की निष्ठा एवं वैचारिक प्रतिबद्धता की पूरी परख थी, तथा उनके मान सम्मान एवं स्वाभिमान का पूरा ध्यान रखते थे ! मैंने उनसे सीख ली कि जुनून के बिना राजनीति निरर्थक है, करुणा के बिना नीति व्यर्थ है और अपने से कम सुविधा प्राप्त लोगों के प्रति दयालुता और कृपा भाव शिष्टाचार का सिर्फ उदाहरण नहीं होना चाहिए बल्कि यह स्वाभाविक होना चाहिए !
किसी सरोकार के बिना परोपकार ही लोकतंत्र का सार है ! चंद्रशेखर जी एक संस्कारिक व्यक्ति थे और सभ्य बनने की प्रेरणा उनके कृतित्व और व्यक्तित्व से हमेशा प्रवाहित होती रहती थी और भविष्य में प्रवाहित होती रहेगी !!
सूर्य कुमार
"गांधीनिष्ठ समाजवादी"
"ट्रस्टी भारत यात्रा ट्रस्ट"
" निकटम सहयोगी चंद्रशेखर जी"


Published: 08-07-2025

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