आसाम में भगवे को चुनौती की भनक
विकल्प शर्मा : नयी दिल्ली : असम में विधानसभा चुनाव सात महीने दूर हैं लेकिन नए समीकरण अभी से बनने लगे हैं. इसकी वजह कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल का आपस में गठबंधन होना है. गद्दीनशीन भाजपा की राज्य इकाई के अन्दर अंसतोष की सुगबुगाहट साफ तौर पर देखी जा सकती हैं. असम कांगेस के कई नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि वे बदरुद्दीन सहित तमाम भाजपा विरोधी पार्टियों से चुनाव पूर्व गठबंधन के पक्ष में हैं. कांग्रेस के दिग्गज नेता और आसाम के पूर्व मंत्री तरूण गोगोई ने हाल ही में गोहाटी में कहा कि हम असम के लोगों के व्यापक हित में एआईयूडीएफ के साथ गठबंधन करने जा रहें हैं. दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन की बदौलत उन्हें आसाम की 126 में से 50 से ज्यादा विधानसभाओं पर बढ़त मिल जायेगी क्योंकि मुस्लिम वोटों का बटना रुक जायेगा. इस समुदाय की राज्य की आबादी में तादाद 35 प्रतिशत है. आसाम में 2006 से हालात भले ही बहुत बदल गये हैं. यह वह साल था जब राज्य के चुनाव की तैयारी कर रहे गोगोई से सवाल किया था कि यह बदरूददीन कौन है. बदरुद्दीन की पार्टी ने उस समय दस सीटें जीती और पाच साल बाद 18 सीटें जीतकर विधान सभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई थी. 2016 में उनकी सीटें घट कर 13 हो गई लेकिन गोगोई से अपना सियासी राग अजमल ने जारी रखा. कांग्रेस की अब इसी पार्टी के साथ औपचारिक दोस्ती होने जा रही है जो उसके पिछले रुख से एकदम उलट है. कुछ राजनैतिक पंडित उसमें पार्टी की हताशा और उम्मीद दोनों का मेल देख रहे हैं. कांग्रेस और बदरुद्दीन की पार्टी को किसी समझौते को अंजाम देने से पहले इन पहलुओं के अलावा कई भीतरी रुकावटें पार करनी होगी. वैसे तो गोगोई और आसाम कांग्रेस के अध्यक्ष रिपून वोहरा ने इस पार्टी के साथ गठबंधन को उत्साह दिखया हैं. पर पार्टी में उनके कई सहयोगी इसके पक्ष में नहीं हैं. गठबंधन से मतलब कई नेताओं का टिकट कटना होगा. दोनों पार्टियों को मिलकर सीटों का फार्मूला निकालना होगा जो आसान नहीं होगा. मगर कांग्रेस आलाकमान के मुकाबले चिंता की बड़ी वजह भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं के सामने है. पूर्वोत्तर में पार्टी के फैलाव में मुख्य वास्तुकार रहे आसाम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वशर्मा ने 25 अगस्त को ट्वीट किया कि वे अगला चुनाव नहीं लडेंगें. 2019 में उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था लेकिन मोदी ने उन्हें सरकार में बने रहने को कहा. भाजपा में शर्मा के पास एक और विद्रोह की गुंजाइश भले ही न हो पर जिस दिन भाजपा के केन्द्रीय महासचिव बी एल संतोष गौहाटी आए ठीक उसी दिन शर्मा ने चुनाव न लड़ने का ऐलान कर केन्द्रीय नेतृत्व को बड़ा झटका दिया है. वे सर्वानन्द सोनोवाल के मार्फत दूसरे नम्बर की भूमिका को तैयार नहीं है.