मानवीय संवेदना को समर्पित
बलरामपुर जिले की एक तहसील उतरौला है। इसी उतरौला तहसील की कोतवाली में संजय दुबे कोतवाल है। उन्होने पर्यावरण के साथ ही थानों के सौन्दर्यीकरण की दिशा में अनूठी पहल की है। उनका यह कोई पहला प्रयोग नही रहा है। इसके पहले भी संजय दूबे जिन थानों पर तैनात रहे है वहां भी उन्होने अपने ह्रदय की मनोभावनाओं की तस्वीर को तराशा। एक अनुभवी षिल्पी की भूमिका निभायी। थानों की सौन्दर्यता बढ़ाने में उन्होने आम जन से सहयोग लिया। सभी ने खुले मन से अपनी आर्थिक पोटली का मुंह खोल दिया। जिसकी जैसी सामर्थ्य रही उसने उस स्तर का सहयोंग दिया।
किसी ने मौरंग-बालू किसी ने सीमेंट किसी ने मजदूरी तो किसी ने अन्य सामग्रियां प्रदान की। तो किसी ने श्रमदान करके अपना योगदान किया। यह विषय यहीं खत्म नहीं होता है। श्री दुबे अब तक करीब 30 थानों, कोतवाली और पुलिस चौकियों का जीर्णोद्धार कराते हुए नया लुक देने का काम कर चुके है। अकेले देवी पाटन मंडल में ऐसे थानो, चौकियो की तादाद करीब 18 है। जिन्हे संजय दुबे ने सजाने संवारने में अग्रणी भूमिका निभायी है।
सरकारी स्तर पर यदि ऐसे कार्य कराये गये होते तो शायद इतनी भव्य तस्वीर नहीं उभर पाती। थानों के इस श्रंगार के पीछे खास वजह पूरा मनोयोग और त्याग के साथ ही समर्पण की भावना का समर्पित होना रहा है। जिसने इन थानों को नई ऊंचाइयां देने में बड़ी भूमिका निभायी।
संजय दुबे को इस लोक हितार्थ कार्य के लिए सम्मानजनक ऊंचे स्तर के प्रशंसा प्रशस्ति पत्रों के साथ ही थानों को आइएसओं प्रमाण पत्र भी मिल चुके है। उनके इन कार्यो ने जहां एक ओर जन सामान्य के बीच लोकप्रियता बढ़ायी, पुलिस के प्रति जनता में विश्वास पैदा किया। दूसरी तरफ खाकी के दामन पर लगे धब्बों को भी धोने में मददगार साबित हुए है। पुलिस के प्रति लोगों का नजरिया भी बदला। उन्होने जनता को सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि हर पुलिस वाला एक जैसा नहीं हो सकता है।
गोरखपुर बेलघाट के ब्रम्हचारी गांव में जन्मे संजय दुबे ने अपनी पुलिसिया पारी का आगाज 1992 में लखीमपुर जिले सें किया था। बाल्यकाल से ही निर्माण और पर्यावरण के साथ ही चित्रकारी में इनकी खास दिलचस्पी रही है। धीरे-धीरे इनका झुकाव गहरा होता गया। बचपन से उनके भीतर पल रही भावना बाहर आकर मूर्ति रूप प्राप्त करने लगी। निर्माण कार्यो के अलावा उन्होने थानों परिसरो को पर्यावरण से आच्छादित करने की दिषा में भी कार्य किए। वाटिकाऐ बनवायी। आगंतुको के बैठने के लिए बेहतर व्यवस्था की। परिसर की खाली जमीनो पर वृक्षारोपण कराना, क्यारियों में फूल-पौधे लगाने के साथ ही हरियाली लाने के लिए उन्होने हर संभव कोषिष की। जिससे सौन्दर्यता के साथ ही हमारा पर्यावरण भी महफूज रहे।
गोंडा जिले की इटियाथोक थाने में संजय दुबे ने अपनी तैनाती के दौरान कुछ अभिनव प्रयोग किए। जिसके तहत विधायक, पत्रकारो और अन्य जन प्रतिधियों के द्वारा उनके नाम से एक एक पेड़ लगवाया। उन्हे बताया कि हम पुलिस वाले कही और चले जायेंगे। आप लोग यही रहेंगे। इन पौधो की देखभल करना इससे आप सभी को संतुष्टि मिलेगी। उन्होने इस थाने का भी कायाकल्प कराया था। संजय दुबे के मुताबिक वे चार लक्ष्य को लेकर पुलिस सेवा में प्रवेश किया था।
उनका पहला लक्ष्य अपराध विहीन थाना, कोतवाली क्षेत्र, जनमानस की खुशियाली, धरती पर हरियाली और थानों का पुख्ता कायाकल्प करने का था। ईष्वर की कृपा से मेरे ये चारो उद्देष्य पूरे हो रहे है। जिन-जिन थानों पर उनकी तैनाती रही उन उन थानों को जन सहयोग से क्षेत्र में लाखो की तादाद में वृक्षारोपण कराया। संजय दूबे पर्यावरण प्रेमी होने के साथ ही अपराधियों के प्रति उनके तेवर कड़क रहे है। उनकी सेवा पुस्तिका उल्लेखनीय कार्यो से लबरेज हे।
- जेपी गुप्ता