Media4Citizen Logo
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल
www.media4citizen.com

आमजन को कैसे मिले : सस्ता, सुलभ, त्वरित और निशुल्क न्याय

राजस्थान हाई कोर्ट के न्यायधीश बिरेंद्र कुमार ने करीब डेढ़ वर्ष से विचाराधीन शुल्क विधिक सहायता लेने के एक मामले में सुनवाई करते हुए सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अलवर न्यायधीश रेणुका सिंह हुड्डा की ओर से राष्ट्रीय विधिक सेवा अधिनियम 2010 की धारा 6 के विरुद्ध दर्ज एफआइआर को प्रारंभिक सिरे से खारिज करने के आदेश जारी कर दिए.

सस्ता, सुलभ, त्वरित और निशुल्क न्याय
सस्ता, सुलभ, त्वरित और निशुल्क न्याय

राजस्थान हाई कोर्ट के न्यायधीश बिरेंद्र कुमार ने करीब डेढ़ वर्ष से विचाराधीन शुल्क विधिक सहायता लेने के एक मामले में सुनवाई करते हुए सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अलवर न्यायधीश रेणुका सिंह हुड्डा की ओर से राष्ट्रीय विधिक सेवा अधिनियम 2010 की धारा 6 के विरुद्ध दर्ज एफआइआर को प्रारंभिक सिरे से खारिज करने के आदेश जारी कर दिए. साथ ही आदेशों में उन्होंने यह भी कहा कि इस एफ आई आर पर प्रारंभ से अब तक हुई कोई अन्य कार्रवाई भी यदि प्रक्रियाधीन है तो उसे भी नियम विरुद्ध होने के कारण सिरे से रद्द किया जाता है.

हाई कोर्ट में याचिका के माध्यम से प्रार्थी के अधिवक्ता सरदार गुरविंदर सिंह ने न्यायालय को बताया कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ( नालसा) के आदेश दिनांक 30 अगस्त 2018 की पालना में राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) द्वारा प्रकाशित सार्वजनिक सूचना की पालना में प्रार्थी द्वारा राष्ट्र एवं राज्य स्तरीय समाचार पत्रों में छपी सार्वजनिक सूचना शीर्षक “ अब सामान्य वर्ग को ₹3 लाख सालाना / ₹25 हज़ार मासिक आय वालों को भी मिलेगा राज्य सरकार से निशुल्क अधिवक्ता “ को अप्रैल 2019 में समाचार पत्रों में पढ़कर विधिक सहायता के लिए तत्तकालीन जिला एवं सत्र न्यायधीश न्यायालय में एक विचाराधीन मुकदमों में पैरवी के लिए प्रार्थी के पास लिक्विड मौके पर तुरन्त उपलब्ध न होने के कारण विधिक सहायता के लिए आवेदन किया.

प्रार्थी द्वारा पूर्व में नियुक्त अधिवक्ता ने जिला न्यायालय और प्रार्थी दोनों को अंधेरे में रखकर विपक्षी पार्टी से सांठगांठ कर प्रथम पंक्ति के 5 वारिसों को न्यायालय मे गलत तरीके बेइमानीपूर्वक, न्यायालय को अंधेरे में रखते हुए 2 ही बताया जा रहा था. उस गलत प्रक्रिया को रोकने के लिए प्रार्थी ने नियमानुसार समाचार पत्रों में प्रकाशित सार्वजनिक सूचना के आधार पर निशुल्क विधिक सहायता के लिए जिला एवं सत्र न्यायालय के आदेश की पालना में स्वहस्तलिखित प्रार्थना पत्र न्यायालय द्वारा मांगने पर तत्कालीन न्यायाधीश ने स्वीकार करते हुए सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के पास अग्रिम कार्रवाई हेतु भिजवाया. निशुल्क सहायता मिलने के बाद प्रार्थी के विचाराधीन सिविल परिवारिक बटवारे के मामले में 1/10 की जवाबी कार्रवाई में पांचों जीवित प्रथम श्रेणी के वारिसों को जायज मानते हुए अन्य तीन पक्षकारों को भी पैतृक संपत्ति में वास्तविक पक्षकार मानते हुए न्यायालय ने नोटिस जारी किए.

प्रार्थी द्वारा पूर्व में नियुक्त अधिवक्ता द्वारा 180 दिन तक कोई भी जवाब न्यायालय में पेश न करने, प्रार्थी और न्यायालय दोनों को गुमराह करने पर मामले को एक पक्षीय करवाने पर आमादा तत्कालीन अधिवक्ता के इस आचरण को तत्कालीन जिला एवं सेशन न्यायाधीश ने गंभीरतापूर्वक लेते हुए उनसे पूछा “ इस सम्पत्ति में प्रथम श्रेणी के वारिसान कितने है, आप 7 माह से जवाब क्यों नहीं पेश कर रहे हो “ क्योंकि वह पहले ही दो वारिसों पर विपक्षी पक्षकार के साथ मिलीभगत कर न्यायालय में मौखिक एवम् मूक सहमति दे चुका था. इसी कारण 180 दिनों तक जवाब पेश नहीं किया गया. इस पर न्यायालय द्वारा गंभीरता दिखाने पर पूर्व अधिवक्ता ने कहा कि “ मैं इस पागल का मुकदमा नहीं लड़ सकता ” तो प्रार्थी को तुरन्त मे दूसरा अधिवक्ता नियुक्त करने के लिए अपने पैसे वापस मांगे जो मुकदमा के शुरुआती दौर में वकालत नामे पर सहमति के दौरान दस्तावेजों सहित दिए थे. इस पर उसने कहा कि “ वकील कभी फीस वापस थोड़ी ही देता है “.

तत्कालीन जिला न्यायालय में न्यायधीश महोदय के सामने हुई इस वार्तालाप के बाद न्यायालय के मौखिक आदेश पर जिला एवं सेशन न्यायालय में निशुल्क अधिवक्ता के लिए आवेदन किया, जिसे सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में स्वीकृत कर निशुल्क अधिवक्ता उपलब्ध कराया. निशुल्क अधिवक्ता द्वारा पहली पेशी पर ही न्यायालय ने पांचों प्रथम श्रेणी के वारिसान को जायज मानते हुए अन्य तीन पक्षकारों को भी संपत्ति में हकदार माना. राज्य सरकार की ओर मिले निशुल्क पर विपक्षी अधिवक्ता द्वारा भरपूर विरोध करते हुए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में एक शिकायत दर्ज कराई इस शिकायत पर प्रार्थी की विधिक सहायता को बीच में ही रोक दी गई और राज्य सरकार के व्यय राशि को जमा कराने का नोटिस जारी कराया गया. एक ही कार्यालय से एक ही प्राधिकृत हस्ताक्षर अधिकारी द्वारा दो तरह के आदेश जारी करते हुए प्रार्थी ने नोटिस क्रमांक 158 दिनांक 12 जनवरी 2021 जरिए रजिस्टर्ड डाक मिलने के बाद उक्त राशि कार्यालय में नकद जमा करा दिए रसीद मांगने पर कार्यालय के कर्मचारियों ने बताया कि रजिस्टर्ड डाक से आपके घर पहुंच जाएगी जिसकी कार्यालय कर्मचारियों द्वारा रसीद 29 जनवरी 21 में हस्ताक्षर अधिकारी की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए कर्मचारियों द्वारा रसीद डाक से जब रसीद नहीं पहुंचने पर 30 जनवरी 2021 को प्रार्थी को रसीद दी गई.

सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के कर्मचारियों ने भी रसीद के लिए प्रार्थी से कई चक्कर यह कहते हुए लगवाए कि “ तेरी पत्रकारिता को तो अब ढंग से पुलिस ही ठीक करेगी, कितना बड़ा पत्रकार है, हमारे कार्यालय में आने की जरूरत नहीं है, यह कोर्ट है यहां की प्रक्रिया तुमको क्या मालूम …पुलिस से बात करो हमारे यहां मत आया करो “. जबकि इसी 12 जनवरी 2021 को ही इसी कार्यालय से एक ही मामले में की एक ही प्राधिकृत अधिकारी द्वारा प्रार्थी के खिलाफ एक अन्य आदेश क्रमांक 161 द्वारा तत्कालीन सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अलवर न्यायाधीश रेणुका सिंह हुड्डा द्वारा पुलिस अधीक्षक को एक लिखित आदेश जारी कर एफ आई आर दर्ज करने के आदेश जारी किया. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक ने न्यायधीश रेणुका सिंह हुड्डा के लिखित आदेश की पालना करते हुए एक एफ आई आर दर्ज कर ली. प्रार्थी द्वारा पुलिस अधीक्षक से मिलने पर बताया गया कि ” न्यायाधीश महोदय ने लिखित शिकायत दी है हम उनके सबोर्डिनेट सर्विस में हैं हमको उनके आदेशों की पालना करनी है हम उनको आदेश दे नहीं सकते …..। हमें तो सिर्फ वही करना है जो जुडिशरी आदेश देगी “. प्रार्थी ने सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के रेगुलेशन 2010 की धारा 6 के विरुद्ध इस मनमाने आदेश के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसे उच्च न्यायालय ने नियम विरुद्ध होने के कारण स्वीकार कर यह आदेश जारी कर समस्त प्रक्रिया को शुरूआत से ही रद्द मानते हुए 5 अगस्त 22 को खुले न्यायालय में यह आदेश जारी किए.


Published: 13-08-2022

Media4Citizen Logo     www.media4citizen.com
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल