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ध्रुवीकरण : भारी पड़ा जातीय पराक्रम

18वी लोकसभा का चुनाव बड़ा दिलचस्प रहा है। इस चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। चुनावी नतीजो के बीच एक आकृति उभरी। उस आकृति में जातीयता का पराक्रम और साम्प्रदायिकता के पराभव की झलक दिखायी पड़ी। दूसरे नजरिए से देखे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह की जोड़ी का दम्भ दर्पण को भी मतदाताओं ने तोड़ दिया।

 भारी पड़ा जातीय पराक्रम
भारी पड़ा जातीय पराक्रम

18वी लोकसभा का चुनाव बड़ा दिलचस्प रहा है। इस चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। चुनावी नतीजो के बीच एक आकृति उभरी। उस आकृति में जातीयता का पराक्रम और साम्प्रदायिकता के पराभव की झलक दिखायी पड़ी। दूसरे नजरिए से देखे तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमितशाह की जोड़ी का दम्भ दर्पण को भी मतदाताओं ने तोड़ दिया।

सबसे बड़ी विडम्बना तो यह रही है कि भाजपा ने अपनी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को ही सार्वजनिक रूप् से नकार दिया है। संघ को लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का बयान आज सियासी प्रयोगशाला में परीक्षण की विषय वस्तु बन चुकी है। संघ और भाजपा के बीच आज आंतरिक द्वंद छिड़ा हुआ है।

माना जाता है कि मोदी-शाह की जोड़ी पार्टी के मामलो में संघ की किसी प्रकार की भूमिका से गुरेज रखती है। नरेन्द्र मोदी 9 जून को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले चुके है। उन्होने पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू के कीर्तिमान की बराबरी कर ली। साथ ही गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री के तौर पर दो कार्यकाल पूरा कर तीसरी मर्तबा पीएम पद की शपथ लेने का नया कीर्तिमान गढ़ा है।

पीएम मोदी की सरकार अब गठबंधनों की बैशाखी के सहारे चलने वाली सरकार के तौर पर जानी जायेगी। मौजूदा सियासी पटल पर बिहार के सीएम नीतीष कुमार और तेलगू देशम पार्टी के मुखिया चन्द्रबाबू नायडू किंगमेकर बनकर उभरे है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले पं. जवाहर लाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी पं. अटल बिहारी बाजपेयी भी तीन बार पीएम पद की शपथ लिया। लेकिन श्री बाजपेयी केवल एक बार ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाये थे। अटल सरकार भी बैशाखियों के सहारे चलने वाली सरकार थी। इस बार भाजपा का संख्या बल अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार और 2004 से 2014 तक चली यूपीए सरकार से अधिक है।
दो एन पर टिकी रही निगाहें

दो एन नीतीष कुमार और नायडू पर सियासी दलों के साथ ही सभी की निगाहें टिकी हुई थी। अटकलों का बाजार गरम था। तरह तरह के कयासो का दौर चल रहा था। लेकिन बगैर किसी देरी के दोनो नेताओं ने मोदी को अपना समर्थन पत्र सौंपा अटकलों के बाजार का भाव गिर गया।
पार्टी में आंतरिक असमंजस

यूपी में लोकसभा के चुनावी नतीजो के बाद भाजपा के भीतर सब कुछ ठीक नही चल रहा है। उम्मीदों के विपरित मिले जनादेश  को लेकर पार्टी में आंतरिक तनाव है। पार्टी नेतृत्व चिंतन-मंथन के लिए मजबूर हुई है। इंडिया गठबंधन खास तौर पर कांग्रेस-सपा के दो लड़को की जुगलबंदी ने सियासी भगवा अखाड़े के अनुभवी पहलवानों को पटकनी दी है। षायद भाजपा के रणनीतिकारों ने इसकी कल्पना नही की होगी।

आखिर मोदी के बाद कौन
मोदी के पीएम बनने के बाद आज भी आखिर मोदी के बाद कौन का सवाल सियासी वायु मंडल में तैर रहा है। करीब 50 दिनों सलाखों के पीछे रहने के बाद अंतरिम जमानत पर बाहर आये दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस बहस को एक नई दिषा दे गये। उनके इस बयान ने भगवा खेमें में हलचल मचा दी। जबकि यह विषय तो पहले से ही दबी जुवान चर्चा में थी।
17 सितम्बर 2024 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 75 बरस के हो जायेंगे। इस आयु वर्ग के नेताओं को सक्रिय सियासत से अवकाष देने की व्यवस्था खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बनायी गयी है। मोदी की इस व्यवस्था का लालकृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोषी, यषवंत सिंहा और सुमित्रा महाजन सहित भाजपा के कई वरिष्ठ नेता षिकार हो चुके है। 75 वर्ष की आयु वर्ग की आड़ में कई बड़े नेताओं के टिकट भी काटे जा चुके है। मोदी के उत्तराधिकार पर संशय के बादल छाये हुए है। पीएम मोदी के साथ ही इसी साल राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी भी 75 साल की आयु वर्ग पूरी करने की दहलीज पर है।
कठिन होगी डगर

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का तीसरा कार्यकाल बहुत आसान रहने वाला नही है। सभी मुद्दों पर आम सहमति बनाना भी एक जटिलताओं से भरा होगा। हर विषय पर घटक दलों के साथ राय-मषविरा करना मजबूरी होगी। इस विषय को सिर्फ एनडीए के घटक दलों तक सीमित नही रखा जा सकता है। सहमति का दायरा बढ़ सकता है।

पीएम मोदी उम्मीद जाहिर कर चुके है कि 18वी लोकसभा में अधिक चर्चाओं का अवसर मिलेगा। 17वी लोकसभा में संसदीय प्राधिकार का क्षरण हुआ था। मोदी ने अपना पहला कार्यकाल 2014 में अच्छे दिनों के साथ और दूसरा कार्यकाल 2019 में सबका साथ,सबका विष्वास संकल्प के साथ षुरू किया था। लेकिन धार्मिक अल्पसंख्यको के मामले में।संकल्प अधूरा रहा। मोदी के दूसरे कार्यकाल में उनके सामने कोई संख्यातमक दिक्कत नही थी। उनका तीसरा कार्यकाल गैर भाजपा सहयोगी दलों पर निर्भर है। जो समझौतावादी हो सकता है। लोकतांत्रिक भावना की परीक्षा सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर निकल आम सहमति बनाने की होगी।

सांसदो के पाला बदल की आषंका
मौजूदा लोकसभा की तस्वीर ने अनेकों आशाओं को जन्म दिया हैं। संख्या बल जुटाने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यो का हनन तक किया जाता रहा है। 18वी लोकसभा में एक बार फिर ऐसी संभावनाओं को बल मिला है। जो एक स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यो के विपरित हो सकती है। एक स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रणाली किसी को इसकी इजाजत नही देती है।

भाजपा के अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन एनडीए ने बहुमत हासिल कर सरकार बना ली है। भाजपा की कोशिश होगी कि संसद में बहुमत हासिल करने के पहले कुछ नये साथियों की जमात अपने साथ जुड़ जाये। इसके लिए स्वाभाविक है सत्ता, धन और अन्य प्रकार के प्रलोभनों की थाली नव-निर्वाचित सांसदों के आगे परोसी जाये। इंडिया घटक दलों के सांसदो को भी प्रलोभन दिया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अधिक वक्त तक बैशाखियों के सहारे चलना उन्हे गंवारा नहीं होगा। मौजूदा समय में नरेन्द्र मोदी में साम,दाम,दंड और भेद चारो षक्तियां समाहित है। इंडिया गठबंधन के नेता वक्त का इंतजार कर रहे होंगे कि नायडू औ नीतीष से भाजपा की बिगाड़ हो और वे दोनों इंडिया के साथ आ जाये।


Published: 20-06-2024

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