प्रबंधन अध्ययन संस्थान द्वारा व्याख्यान
कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. डी.डी. अरोड़ा, डॉ. राजन शर्मा, डॉ. सलोनी पी. दीवान, आदित्य झा और श्री प्रेम के साथ संस्थान के संकाय सदस्यों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन एवं मां सरस्वती की पूजा-अर्चना के साथ किया गया।
संस्थान के संस्थापक निदेशक एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. डी.डी. अरोड़ा ने श्रीमद्भगवदगीता से जीवन के सबक पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गीता के अनुसार इस संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है, इसमें हमेशा परिवर्तन होते रहते हैं। यदि गीता की इस बात को ठीक से समझें, तो इसका सार यह है कि यदि जीवन में दुःख है, तो वह हमेशा नहीं रहेगा। जीवन का यह कठिन समय भी सुख में ज़रूर बदलेगा, हमें बस हर परिस्थिति में अपना कर्तव्य करते रहना होगा।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता, गीताक्वेस्ट के संस्थापक, आदित्य झा ने संस्थान के छात्रों को श्रीमद्भगवदगीता के कालातीत ज्ञान को समझने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रेरित किया और बताया कि प्रौद्योगिकी, अन्तरक्रियाशीलता और विद्वतापूर्ण अंतर्दृष्टि के मिश्रण से हम ऐसा कर सकते हैं। गीता की गहन शिक्षाएँ पृष्ठभूमि या पाठ से परिचित न होने के बावजूद भी सभी के लिए सुलभ हैं, । उन्होंने मानव व्यक्तित्व के चार आयामों, अर्थात् शारीरिक भागफल, बुद्धिमत्ता भागफल, भावनात्मक भागफल और आध्यात्मिक भागफल का परिचय दिया और प्रत्येक मनुष्य के जीवन में उनके महत्व के बारे में बात की।
संस्थान के उप निदेशक डॉ. राजन शर्मा ने छात्रों को व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में आध्यात्मिकता की प्रासंगिकता के बारे में संबोधित किया।
इस कार्यक्रम में संस्थान के संकाय सदस्य डॉ. अनिल कुमार, डॉ. ममता भारद्वाज, डॉ. मीनाक्षी गोदारा, डॉ. पलक बजाज, डॉ. दिशा कक्कड़ और डॉ. संगीता धीर सहित लगभग सभी छात्र उपस्थित थे