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महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी : नव्य युद्ध नीति के पुरोधा

पांच सौ वर्ष पूर्व महाराणा प्रताप ने गौरिल्ला युद्ध, छापामार युद्ध और अटावी युद्ध कौशल का संयुक्त रुप से प्रदर्शन करते हुए सर्प व्यूह युद्ध शैली का सजृन किया. भारतीय परम्परा में शुक्र नीति, चाणक्य, महाभारत, रामायण एवं अन्य पुराणों में युद्ध नीति का विवरण मिलता है लेकिन महाराणा ने इसमें नवाचार प्रस्तुत किया जो बाद में यह युद्ध कौशल में मध्यकाल और उसके बाद भी देखने को मिलता है.

नव्य युद्ध नीति के पुरोधा
नव्य युद्ध नीति के पुरोधा

भारतीय इतिहास में मध्यकाल में आत्मसम्मान और राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के युद्ध एवं अन्य युद्धों में नव्य युद्ध नीतियों को प्रयोग कर मुगलों को संघर्ष में पीछे ढ़केलने में सफल हुए. पांच सौ वर्ष पूर्व महाराणा प्रताप ने गौरिल्ला युद्ध, छापामार युद्ध और अटावी युद्ध कौशल का संयुक्त रुप से प्रदर्शन करते हुए सर्प व्यूह युद्ध शैली का सजृन किया. भारतीय परम्परा में शुक्र नीति, चाणक्य, महाभारत, रामायण एवं अन्य पुराणों में युद्ध नीति का विवरण मिलता है लेकिन महाराणा ने इसमें नवाचार प्रस्तुत किया जो बाद में यह युद्ध कौशल में मध्यकाल और उसके बाद भी देखने को मिलता है.

उक्त विचार मुख्य वक्ता के रुप में बोलते हुए डाॅ. चन्द्रशेखर शर्मा प्रसिद्ध इतिहासकार एवं महाराणा प्रताप विषय पर सतत शोधकर्ता ने व्यक्त किये. उन्होेंने कहा कि महाराणा प्रताप का युद्ध कौशल नैतिक एवं आदर्श था उनको अनेक अवसर मिले जबकि वे अनैतिकता का प्रयोग कर युद्ध को आक्रमक बनाकर मुगलों से बदला ले सकते थे पर उन्होंने मुगलों के तरह से अनैतिकता का सहारा नहीं लिया. प्रो. शर्मा ने यह भी कहा कि अटावी युद्ध कौशल की प्रेरणा महाभारत एवं रामायण से ली गई और उसमें प्रताप ने नवाचारों का प्रयोग किया गया। डाॅ. शर्मा, महाराणा प्रताप की युद्ध रणनीति एवं व्यूह कौशल एक अभिनव दृष्टिकोण वेबीनार के बीज वक्ता के रुप में वक्तव्य दे रहे थे जिसका आयोजन डाॅ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू की वीर पुुत्र महारणा प्रताप शोध पीठ ने किया था. वेबीनार की अध्यक्षता करते हुए प्रो. सुरेन्द्र पाठक, सलाहकार, ब्राउस ने कहा कि मुगलों और अंग्रेजों की तुलना में भारतीय युद्ध कौशल परम्परा रुप से नीतिबद्ध और नैतिकता पर केंद्रित रहा है जिसमें राष्ट्रीयता, समाज कल्याण, स्वाभिमान, आत्मगौरव, न्याय आदि केंद्रीय बिन्दु रहे हैं. यही प्रेरणा महाराणा प्रताप के संघर्ष में देखने को मिलती है. प्रो. सुरेन्द्र पाठक ने वक्ता का परिचय दिया और वेबीनार का संचालन डाॅ. बिंदिया तातेड़, प्रभारी वीर पुुत्र महारणा प्रताप शोध पीठ, ब्राउस ने किया. कार्यक्रम में डीन, डाॅ. डी.के. वर्मा, डाॅ. मनीषा सक्सेना, रजिस्ट्रार अजय वर्मा, का सहयोग रहा. सौ से अधिक प्रतिभागियों ने इस वेबीनार में भाग लिया.


Published: 02-09-2021

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