मुश्किल होगी हिमाचल में राजा से जंग
रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : देश का सीमावर्ती राज्य हिमाचल प्रदेश अगले पांच सालों के लिए अपनी खेवनहार सरकार के चुनाव में व्यस्त है. परंपरा तो ये है कि इस पर्वतीय राज्य की जनता हर पांच साल में सत्ता को ताश के पत्तों की तरह फेंट दिया करती है. इस हिसाब से इस बार राजपूत प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में बारी विपक्ष में बैठी भाजपा की है मगर हवा कुछ ऐसी भी है कि बूढा शेर राजा वीरभद्र सिंह कांग्रेस की सरकार को लगातार दूसरी बार गद्दी पर बिठा कर एक कीर्तिमान बना सकते हैं. यहाँ एक बात साफ़ है कि सीधी लड़ाई कांग्रेस और भाजपा के बीच है, कोई तीसरा चौथा या पांचवा प्लेयर नहीं है. मीडिया4सिटीजन के अपने सूत्रों के हवाले से राजधानी शिमला, हमीरपुर, धरमशाला और पालनपुर की नब्ज तो ये बताती है कि कांग्रेस के इस किले को ढहाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा. बिन्दुवार कांग्रेस की यहाँ मजबूती के कारणों पर विचार करें तो स्पष्ट हो जायेगा कि उसके लीडर वीरभद्र सिंह ने मतदाता के सामने जयललिता और मुलायम, अखिलेश की तरह किसान को ब्याज मुक्त ऋण और युवाओं को लैपटॉप के फ्री सोप्स का चारा डाल दिया है. दूसरे वीरभद्र पर भ्रष्टाचार के आरोप तो लगे हैं पर हिमाचली अवाम इसे गंभीरता लेगी इसमें संदेह है क्योंकि वो पहले से ही साधनसम्पन्न राजा हैं. तीसरे कांग्रेस को कमजोर करने के इरादे से भाजपा ने जिन कांग्रेसी दिग्गज सुखराम शर्मा को बगावत का रास्ता सुझाया वो खुद संचार घोटाले की कालिख का दाग माथे पर लिए घूम रहे हैं. चौथा भाजपा की पूर्वज जनसंघ का पौधा हिमाचल में रोपने वाले भाजपा के वयोवृद्ध दिग्गज ब्राह्मण नेता शांता कुमार की उपेक्षा कांग्रेस के लिए विजय गीत लिख सकती है. पांचवां कारण इसका पंजाब का पडोसी होना है. पंजाब ऐसा राज्य है जहां भाजपा के अश्वमेघ के घोड़े को कांग्रेसी कैप्टन अमरिंदर सिंह ने थाम लिया है. हालांकि पंजाब का जिम्मा शिरोमणि अकाली दल पर था भाजपा पर नहीं. दिल्ली से बीस साल पहले बाहर किये जाने के बाद बड़ी संख्या में पंजाबी व्यापारी समुदाय हिमाचल के बद्दी. पालनपुर क्षेत्र में या फिर उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर में टैक्स हॉलिडे का लाभ उठाने के लिए अपना व्यवसाय लेकर चले गए थे. ये व्यापारी नोटबंदी फिर जी एस टी के बाद से तमतमाए हुए हैं. भाजपा की नयी कर प्रणाली छोटे दुकानदारों और व्यापारियों को रास नहीं आ रही है. ऐसे में पंजाब में कांग्रेस की बहाली वीरभद्र राज के लिए संजीवनी साबित हो सकती है. वो भी ऐसे समय जब कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में अपनी केंचुल बदल रही है वीरभद्र जैसे बुजुर्ग पर ही भरोसा करना हिमाचल के बुजुर्ग कांग्रेस्सियों और मतदाताओं के लिए राहत की बात ही कही जाएगी. इसके विपरीत भाजपा ने हिमाचल को हासिल करने के लिए शुरू में जो पत्ते चले वो उसके पार्टी विद डिफरेंस के फार्मूले को ही कटघरे में खड़े कर गए. वो पंडित सुखराम शर्मा या उनका परिवार भाजपा के लिए कैसे पवित्र हो गया जिसकी मुखालफत में कभी भाजपा ने चिल्ला चिल्ला कर गला सुखा दिया था. खेल बिगड़ता दिखा तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने पडोसी राज्य उत्तराखंड में केदारनाथ की शरण में जाकर पर्वतीय राज्यों में विकास की झलक दिखानी शुरू की. वीरभद्र के सामने कौन का सवाल भी लम्बे समय तक अनुत्तरित रहा. पहले सोचा गया होगा कि महाराष्ट्र या यू पी तरह चेहरा तय किये बिना यहाँ भी काम चल जायेगा. मोदी नाम केवलम का नारा काफी है. अंततः पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को मैदान में उतारना ही पड़ा. भाजपा के थिंक टैंक को शायद ये महसूस हुआ हो कि अगर बिना कोई चेहरा दिये हिमाचल में शिकस्त मिली तो ये २०१९ में मोदी के खाते में दर्ज हो सकती है. इसलिए अब जुआ धूमल के कन्धों पर है. कांग्रेस के राजपूत राजा वीरभद्र के मुकाबले में पंजाबी राजपूत धूमल को उतारना भाजपा की एक सोची समझी रणनीति कही जा सकती है. रही बात राज्य के ब्राह्मण मतदाताओं की तो सुखराम के मंत्री बेटे को तो भाजपा ने मैदान में उतारा ही है. अपने ताज़ा दौरे में प्रधानमंत्री मोदी ने कांगड़ा के शेर कहे जाने वाले भाजपा हिमाचल के शीर्ष पुरुष शांता कुमार की तनावग्रस्त मनःस्थिति को सहलाने की कोशिश भी की है. शांता कुमार को भाजपा की यंग ब्रिगेड का आलोचक माना जा रहा था. हिमाचल प्रदेश भाजपा के लिए इसलिए भी अहम् है कि यह एक सीमावर्ती राज्य है जो जम्मू कश्मीर की आंच से तो झुलसता ही है चीन से भी सटा हुआ है. धरमशाला में दलाई लामा की मौजूदगी चीन को वैसे ही भड़काए रखती है. इसलिए इस संवेदनशील राज्य में प्रधानमंत्री मोदी ने धरमशाला में वीर महापुरुष वजीर राम सिंह पठानिया को याद करते हुए सैनिकों के लिए अब तक एन दी ए सरकार द्वारा लागू किये गए वन रैंक, वन पेंशन की याद दिलाई. साथ ही जनता को आगाह किया कि हिमाचल पांच दानवों-खनन, वन, ड्रग, टेंडर और ट्रांसफर माफिया की गिरफ्त में है. मोदी ने एक दशक से ज्यादा समय संघ के प्रचारक के रूप में हिमाचल में बिताया है. हिमाचली जनता और हिमाचल के मिजाज से वो भली भांति परिचित हैं. अब ये तो वहां का मतदाता ही बताएगा कि वो मोदी की बात पर २०१४ के बाद एक बार फिर यकीन करेगा या फिर पंजाब का अनुसरण करते हुए हिमाचल में भी कांग्रेस के बुजुर्ग किलेदार राजा वीरभद्र पर भरोसा कायम रखेगा. बहरहाल मुकाबला कांटे का होगा और नौबत फोटो फिनिश की भी आ सकती है.