परिवर्तन नैसर्गिक प्रक्रिया है। जिन्हें परिवर्तन स्वीकार्य नहीं, वह या तो लुप्त हो जाते हैं या फिर पीछे छूट जाते हैं। तकनीक के इस अग्रिम दौर में हमें परिवर्तन की स्वीकार्यता और अनिवार्यता को वृहद दृष्टिकोण से समझना होगा। शिक्षा और शिक्षण का क्षेत्र तेजी से परिवर्तित हो रहा है। हमें उसकी आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को पहचानना होगा। परिवर्तन को न समझ पाने से क्या परिणाम हो सकते हैं, इसका उदाहरण है कोडक कम्पनी।
एक दौर था 20 वीं शताब्दी में कोडक कंपनी का फोटोग्राफी के बाजार पर आधिपत्य था। कोडक ने परिवर्तन की नब्ज़ नहीं समझी और फोटोग्राफी के बाजार में पीछे छूटती चली गई। शायद बहुत कम लोगों को इस बात का भान होगा कि 1975 में कोडक ने ही डिजिटल कैमरा ईजाद किया था, लेकिन यह कंपनी परंपरागत फोटोग्राफी के कारोबार के सम्मोहन से बाहर नहीं निकल पाई।
परिणाम स्वरूप बाजार के परिवर्तनों को पहचानने और उनका पूर्वानुमान लगाने में कहीं ना कहीं चूक रही और अपने खुद के ही आविष्कार को अनदेखा कर कोडक कंपनी को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। यह अकेली कोडक की कहानी नहीं है, बल्कि दुनिया की कई बड़ी नामचीन कंपनियों को ऐसी ही अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ा। चाहे फिर वह नोकिया, याहू, जेरॉक्स, ब्लैकबेरी, हिंदुस्तान मोटर्स, फियट, हिताची, तोशीबा, मोटरोला या आईबीएम जैसी दिग्गज कंपनियां ही क्यों ना हों।
हालांकि इनमें से कई कंपनियां खुद को बचाने और संभालने में कामयाब हो गई। दरअसल बाजार में हो रहे तेजी से परिवर्तन, ग्राहकों की बदलती पसंद और तकनीकी बदलावों को न समझ पाना भी एक बड़ी चुनौती है। वैश्विक स्तर पर बड़ी पहचान रखने वाली यह कंपनियां सीधे तौर पर परिवर्तन की अस्वीकार्यता के जीवंत उदाहरण है।
वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस क्रांतिकारी परिवर्तन का संवाहक बन रहा है। यह अपने आप में एक अद्भुत खोज है। मनुष्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से अपने कार्यों को सरल और स्वचालित बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित करने लगा है। पिछले कुछ समय में बहुत तेजी से प्रचलन में आया चैटजीपीटी कृत्रिम मेधा का अनुपम उदाहरण है।
इसके माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन आने लगे हैं। शिक्षा में चैटजीपीटी का समावेश कई अद्भुत परिवर्तन लाने में सक्षम है। हमें इस नूतन नवाचार की उपयोगिता और महत्व को समझना होगा। अन्यथा उपरोक्त कंपनियों के संदर्भ में दिए गए उदाहरणों की भांति शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों को भी अप्रिय परिणामों का सामना करना पड़ सकता है।
चैटजीपीटी को चैट जेनरेटिव प्री- ट्रेंड ट्रांसफार्मर भी कहा जाता है। यह ओपन एआई द्वारा विकसित किया गया है। 2022 में लॉन्च हुआ चैटजीपीटी एक बड़े भाषा मॉडल पर आधारित है। यह उपयोगकर्ताओं को उनकी इच्छा के अनुरूप शैली, विस्तार, भाषा और उसमें तथ्यात्मक शुद्धियों को जोड़कर मेधा का एक बेहतरीन नमूना प्रस्तुत करता है।
गूगल ब्राउज़र की ही तरह चैटजीपीटी शिक्षकों और छात्रों को विभिन्न विषयों पर ताजा तरीन और प्रतिपुष्ट जानकारियां प्रदान करता है।
इसके माध्यम से विद्यार्थी शिक्षक की अनुपस्थिति में भी अपने प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं। इसका उपयोग वास्तविक जीवन में संवाद कला के नैपुण्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। शिक्षा की दृष्टि से बात करें तो शिक्षक अपना खुद का चैटजीपीटी बना सकते हैं और इसको अपने कौशल के अनुसार विकसित कर सकते हैं। जो शिक्षक मूक व्याख्यान की तैयारी करते हैं और उनकी रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो जाते हैं, अब उनके लिए भी आसानी हो गई है। वह चैट जीपीटी वीडियो मेकर को आउटसोर्स कर सकते हैं।
चैटजीपीटी के माध्यम से रचनात्मकता का विकास स्वाभाविक तौर पर होता है, क्योंकि चैटजीपीटी के पास व्यापक ज्ञान, तथ्य और सुदृढ़ भाषा है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों की दूसरों पर निर्भरता काफी कम होती है। छात्र चैटजीपीटी का प्रयोग ब्रेनस्टॉर्मिंग टूल के रूप में भी कर सकते हैं। इसके माध्यम से शिक्षक की भी बहुत सी समस्याओं का समाधान होता है। वह अपने पढ़ने के तौर तरीकों और तथ्यात्मक अवधारणा को और अधिक सशक्त बना सकते हैं।
इसके माध्यम से रिपोर्ट्स बनाने और उनको प्रतिपुष्ट करने में भी सहायता मिलती है। चैटजीपीटी के माध्यम से प्रस्तुतीकरण को प्रभावी बनाया जा सकता है। यहां तक कि असाइनमेंट पूरी की जा सकती हैं। सीधे तौर पर कहें तो यह शिक्षण कौशल को अधिक प्रभावी बनाने का बड़ा मूल मंत्र है। हाल ही में एक चैटजीपीटी के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान एलोन मस्क ने भी कहा है, जिन लोगों को सीखने में या दोस्त बनाने में कठिनाई महसूस होती है उनके लिए एआई और चैट जीपीटी एक मित्र की भांति महत्वपूर्ण है।
दरअसल कोई भी नवाचार तभी तक फायदेमंद है, जब उसका सदुपयोग किया जाए। अन्यथा इसके दुष्प्रभाव भी परछाई की तरह साथ आते हैं। तकनीक की अपनी कुछ सीमाएं हैं और साथ ही उससे कुछ खतरे भी जुड़े हुए होते हैं। चैटजीपीटी को सही ढंग से प्रयोग में लाने के लिए प्रशिक्षण की भी आवश्यकता है। किंतु चैटजीपीटी के सामने रखे जाने वाले प्रश्न व्यवस्थित और स्पष्ट होने चाहिएं। अन्यथा प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त होने वाली सामग्री और उसका भाव, दोनों गड़बड़ा सकते हैं। चैटजीपीटी के पास कृत्रिम मेधा है और भाषाई कौशल भी है, लेकिन मनुष्य जैसा विवेक नहीं है, जो हास्य और व्यंग को समझ सके।
यदि नकारात्मक पहलू की बात करें तो चैटजीपीटी के आने से इसके प्रयोगकर्ताओं की मौलिकता भी खतरे में पढ़ सकती है। इससे व्यक्तिगत ज्ञान की क्षमताएं क्षीण हो सकती हैं। शैक्षणिक क्षेत्र में इसका अत्यधिक प्रयोग विद्यार्थियों को निर्भर बन सकता है। शिक्षकों को यह है सुनिश्चित करना होगा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चैटजीपीटी का सही सतर्क और नैतिक उपयोग किस तरह से संभव बनाया जा सकता है। सबसे पहले शिक्षकों को स्वयं इसमें दक्षता हासिल करनी होगी।
इसके लाभ और हानि का आकलन कर विद्यार्थियों को इसकी विशेषताएं हस्तांतरित करनी होगी। उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और चैटजीपीटी को प्रयोग करने के लिए एक आचार संहिता बताए जाने की आवश्यकता है। इसका कब और कैसे प्रयोग करना है, यह जानना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मनुष्य को चैटजीपीटी से दो कदम आगे कैसे रहना है ? इस दिशा में भी सोचने की आवश्यकता है। विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों को चैटजीपीटी को शिक्षा में समाहित करते हुए नीतियों का निर्धारण भी करना होगा।
विकास की अवधारणा में संतुलन के दृष्टिगत पश्चिमी मॉडल के साथ-साथ पूर्व के दर्शन को भी खोजने की आवश्यकता है। भारतीय ऋषियों के प्राचीन ज्ञान ने मानवता के लिए महान योगदान दिया है। भारतीय आध्यात्मिक एवं बौद्धिक ज्ञान को आधुनिक तकनीक के साथ सुमेलित करना होगा। यह समय की मांग भी है और आधुनिक पीढ़ी के लिए नितांत आवश्यक भी।
हाल ही में ब्रिटेन में आयोजित एआई सुरक्षा सम्मेलन में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने एलॉन मस्क की मेजबानी की और इस सम्मेलन में एआई की क्षमताओं और जोखिम के संतुलन पर व्यापक चर्चा हुई। एलॉन मस्क ने स्पष्ट कहा कि एआई की 80 प्रतिशत सटीकता बेहद महत्वपूर्ण है, बशर्ते हम उसके 20% प्रतिशत जोखिम के विषय में भी जागरूक हों।
हाल ही में बेस्ट कॉलेज के एक सर्वे में ग्रेजुएट और अंडर ग्रेजुएट के उत्तरदाताओं में से 51% ने कहा कि असाइनमेंट और परीक्षाओं में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग छल है। 20% इस पर असहमत थे। अपनी परीक्षाओं और असाइनमेंट को पूरा करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग करने वाले विद्यार्थियों में से 50 फीसदी ने कहा कि वह अपने काम का कुछ हिस्सा पूरा करने के लिए ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सहारा लेते हैं, जबकि बाकी का अधिकतर काम स्वयं पूरा करते हैं।
इसके विपरीत 30 प्रतिशत विद्यार्थियों ने स्वीकार किया कि वह अपना अधिकतर काम एआई के माध्यम से ही पूरा करते हैं। हैरत की बात है कि 17 प्रतिशत विद्यार्थी ऐसे पाए गए, जो असाइनमेंट का पूरा काम एआई के प्रयोग से निपटाते हैं और उसमें अपनी तरफ से बिल्कुल भी कोई संशोधन नहीं करते। सर्वे में शामिल 54 प्रतिशत विद्यार्थियों ने बताया कि उनके शिक्षकों ने आज तक उनके साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के महत्वपूर्ण टूल चैटजीपीटी के विषय में आज तक कोई चर्चा ही नहीं की, जबकि 25% ने बताया कि उनके शिक्षकों ने उनके साथ एआई के व्यवहारिक इस्तेमाल पर चर्चा की है।
शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में डिजिटल सुपर इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए
शिक्षकों को एआई के सुरक्षात्मक प्रयोग पर कुशलतापूर्वक विचार करना होगा। इसके बारे में विद्यार्थियो को पूर्णत: आगाह करना होगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल में सामाजिक सुरक्षा की वरीयता बनी रहे, इस पर सरकारों को भी निर्णायक भूमिका निभानी होगी। शैक्षणिक संस्थान, शिक्षक और विद्यार्थी
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्षमताओं को अवश्य अपनाएं, लेकिन मानव मस्तिष्क के करिश्मे को भुलाए बिना उन्हें इस जादुई तकनीक का दोहन करना होगा।