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कृषकों को आगामी सप्ताह हेतु : मौसम आधारित कृषि परामर्श जारी

मौसम आधारित कृषि परामर्श जारी
मौसम आधारित कृषि परामर्श जारी

क्रॉप वेदर वॉच ग्रुप की वर्ष 2023-24 की बारहवीं बैठक डा. संजीव कुमार, उप महानिदेशक उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद की अध्यक्षता में दिनांक 14 सितम्बर, 2023 को उ.प्र. कृषि अनुसंधान परिषद में सम्पन्न हुई। प्रदेश में मौसम के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में किसानों को अगले सप्ताह कृषि प्रबन्धन के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये गये।

आगामी सप्ताह (14 से 20 सितम्बर, 2023) के दौरान मुख्यतया प्रदेश के दक्षिणी भागों (बुंदेलखण्ड एवं विन्ध्य क्षेत्र) एवं संलग्न मध्यवर्ती इलाकों में अनेक स्थानों पर मेघगर्जन एवं वज्रपात के साथ हल्की से मध्यम वर्षा होने की संभावना है, जबकि प्रदेश के उत्तरी तराई इलाकों में छिटपुट बारिश होने की सम्भावना है। दिनांक 15 सितम्बर, 2023 के दौरान बुंदेलखण्ड क्षेत्र में कहीं-कहीं भारी वर्षा होने की भी संभावना है।

द्वितीय सप्ताह (21 से 27 सितम्बर, 2023) के दौरान मुख्यतया प्रदेश के दक्षिणी एवं मध्यवर्ती भागों में कई स्थानों पर मेघगर्जन एवं वज्रपात के साथ सामान्य या सामान्य से अधिक वर्षा होने की संभावना है, जबकि प्रदेश के उत्तरी तराई इलाकों में सामान्य से कम वर्षा होने की सम्भावना है। बुंदेलखण्ड एवं विंध्य क्षेत्र में मध्यम से भारी वर्षा के पूर्वानुमान के दृष्टिगत खेतों से जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

मानसून ऋतु में वर्षा एवं वज्रपात (आकाशीय विद्युत) से बचाव हेतु दिन-प्रतिदिन के मौसम पूर्वानुमान का विशेष ध्यान रखा जाय तथा तदनुसार बचाव के उचित उपाय किये जाय। वातावरण मंे तापक्रम एवं नमी की अधिकता रहने से रोग एवं कीट का प्रकोप बढ़ने की स्थिति में कीट नियंत्रण हेतु पर्यावरण हितैषी उपायों यथा प्रकाश-प्रपंच, बर्ड पर्चर, फेरोमोन टैप, ट्राइकोग्रामा तथा रोग नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें। कीट एवं रोग नियंत्रण हेतु कीटनाशी रसायनों का प्रयोग अंतिम उपाय के रूप में करेें।

तेज हवा एवं वर्षा से गिरे गन्ने को उठाकर सीधा करें तथा उसकी यथाशीघ्र बंधाई कर दें जिससे कम से कम नुकसान हो। कृषकों/पशुपालकों के द्वारा पर पशु चिकित्सा उपलब्ध कराने हेतु विभाग के द्वारा मोबाइल वेटनरी यूनिट योजना का संचालन किया जा रहा है। इस योजना का लाभ लेने हेतु पशुपालक टोल फ्री हैल्पलाइन नं-1962 पर सम्पर्क कर योजना का लाभ ले सकते हैं।

धान में जीवाणु झुलसा एवं जीवाणुधारी झुलसा के लक्षण दिखने पर 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत टेट्रसाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कॉपर आकसीक्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू.पी. के साथ मिलाकर प्रति हेक्टेयर 500 से 750 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

पर्ण झुलसा (झोंका) रोग से बचाव हेतु प्रोपीकोनाजोल 500 मि.ली. अथवा हेक्साकोनाजोल 5.0 प्रतिशत ई.सी. 1 ली. की मात्रा 500 ली. पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। धान में मिथ्या कण्डुआ (फाल्स स्मट) रोग से बचाव हेतु बाली निकलते समय प्रोपीकोनाजोल 500 मिली. अथवा कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत डब्लू.पी. 500 ग्राम मात्रा 500 ली. पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।

धान की फसल में पत्ती लपेटक, तनाछेदक, हरा फुदका एवं हिस्पा कीट से बचाव के लिये कार्टाप हाईड्रोक्लोराइड (50 एस.पी.) की 150 से 200 ग्राम मात्रा 200 ली. प्रति एकड़ पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

गन्धी कीट के रोकथाम हेतु क्लोरोपाइरीफॉस 15 प्रतिशत धूल अथवा मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल 25 से 30 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें। वर्तमान मौसम भूरा धब्बा रोग के लिये अनुकूल है अतः प्रकोप होने पर मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत डब्लू.पी. की 2.0 किग्रा. मात्रा 500-750 ली. पानी में घोलकर छिड़काव करें।

यदि किन्हीं कारणों से अरहर की बुवाई नहीं की जा सकी है तो बहार एवं पी.डी.ए.-11 किस्मों की शुद्ध फसल के रूप में बुवाई की जा सकती है, परन्तु कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. एवं बीज की मात्रा 20 से 25 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से प्रयोग करें। अरहर में पत्ती लपेटक का प्रकोप दिखाई देने पर डाईमेथोएट 30 ई.सी. 1 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 200 मिली. प्रति हे. 500 से 600 लीटर पानी अथवा क्लोरपाइरीफॉस 0.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

उर्द/मूंग की पत्तियों पर सुनहरें चकत्ते पड़ गये हों या सम्पूर्ण पत्ती पीली पड़ गयी हो तो यह पीला चित्रवर्ण रोग (यलोमोजेक) है। यह रोग सफेद मक्खियों द्वारा फैलता है। ऐसे रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर जमीन में गाड़ दें। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए डाइमिथोएट 30 ई0सी0 01 लीटर या मिथाइल ओ-डिमेटान (25ई0सी0) 01 लीटर प्रति हे0 या इमिडाक्लोप्रिड 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से दो-तीन छिड़काव करें।

तोरिया की सम्पूर्ण उ.प्र. हेतु संस्तुत प्रजातियों टा-9, पी.टी.-303, भवानी मध्य उ.प्र. हेतु संस्तुत टाइप-36 तथा तराई क्षेत्र हेतु संस्तुत प्रजाति पी.टी.-30 आदि की बुवाई, खेत में उपयुक्त नमी की दशा में करें।

मूंगफली में जड़, सड़न एवं टिक्का रोग लगने का समय है अतः सतर्क रहंे। प्रकोप होने पर खड़ी फसल पर मैंकोजेब अथवा कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी. 225 ग्राम/हे. अथवा जिनेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 2.5 किग्रा. अथवा जीरम 27 प्रतिशत तरल के 3 लीटर अथवा जीरम 80 प्रतिशत के 2 किग्रा. के 2-3 छिड़काव 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अन्तर पर करें। लालसड़न रोग से प्रभावित गन्ने क्लम्प/मूढ़ को उखाड़कर नष्ट कर दें। को.शा. 13235, को.लख. 14201, को. 15023, को.शा.17231, को.शा.16233 आदि प्रदेश हेतु स्वीकृत गन्ना किस्मों की ही बुवाई करें।

बैंगन व मिर्च की तैयार बेहन की मेड़ों पर रोपाई करें। लतावर्गीय सब्जियों को कीट एवं रोगोे से बचाने की विशेष आवश्यकता है। फल मक्खी कीट की रोकथाम के लिये 10 मि0ली0 मैलाथियान एवं 10 मि.ली. मिथाईल यूजीनाल को 05 ली0 पानी में घोलकर 500 ग्राम गुड़ या शीरा को मिलाकर प्रति हे0, 15-20 जगह चौड़े मुॅंह की शीशी या बॉटल में खेत मंे रखें। आलू की अगेती किस्मों जैसे कुफरी चन्द्रमुखी, कुफरी ख्याति, कुफरी सिंदूरी, कुफरी कंचन तथा कुफरी अशोका की बुआई का उपयुक्त समय सितम्बर का दूसरा पखवाड़ा है।

केले में फल वाले पौधों में स्टेकिंग (सहारा) दें तथा केले की तलवार पुत्ती को छोड़ते हुये शेष पुत्तियों की कटाई करें तथा 50 से 60 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देकर मिट्टी में मिलायें। इस समय केले में बीटिल कीट का प्रकोप हो सकता है जिसके नियंत्रण हेतु कार्बाेफ्यूरॉन 3-4 ग्राम प्रति पौधे की दर से गोफे में तथा मिट्टी में मिलायें।

इसके साथ-साथ पर्ण चित्ती, सिगार एण्ड तथा एन्थ्रेकनोज रोगों का प्रकोप भी केले में हो सकता है जिसके नियंत्रण हेतु कॉपर आक्सीक्लोराइड (3 मिली0/ली0 पानी) का छिड़काव करें। नींबू में कैंकर रोग से बचाव हेतु कॉपर आक्सीक्लोराइड 2 से 3 ग्राम अथवा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 600 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

लम्पी स्किन रोग (एलएसडी) एक विषाणु जनित रोग है, जिसकी रोकथाम हेतु पशुपालन विभाग द्वारा टीकाकरण प्रोग्राम चलाया जा रहा है। सभी कृषक/पशु पालक अपने निकटतम पशु चिकित्सालय से सम्पर्क कर इसकी रोकथाम संबंधी उपाय एवं टीकाकरण की जानकारी ले सकते हैं। जहां खुरपका एवं मुंहपका बीमारी (एफ.एम.डी.) का प्रकोप है वहां टीकाकरण सभी पशुचिकित्सालयों में कराया जा रहा है।

यह सुविधा सभी पशुचिकित्सालयों पर निःशुल्क उपलब्ध है। बड़े पशुओं में गलाघोटू बीमारी की रोकथाम हेतु एच.एस. वैक्सीन से तथा लंगड़िया बुखार की रोकथाम हेतु बीक्यू वैक्सीन से टीकाकरण करायें।

मत्स्य तालाबों में यदि बाहरी दूषित जल आ गया है तो 250 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से चूने को तालाब में डालें। जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होने के कारण तालाबों से मत्स्य बीज बह गये हो उन तालाबों में पुनः मत्स्य बीज डालें। एरी मानसून व्यवसायिक फसल का कीटपालन 25 सितम्बर से प्रारंभ होने जा रहा है इस कीटपालन कक्ष/भवन का विशुद्धीकरण तीन चरणों में पूर्ण कर लिया जाय। वृक्षारोपण उपरांत जो पौधे मर गये हो उनके स्थान पर गैप फिलिंग करें।


Published: 15-09-2023

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