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कविता : स्वयंभू हैं सभी पद्मश्री तले !

स्वयंभू हैं सभी पद्मश्री तले !
स्वयंभू हैं सभी पद्मश्री तले !

छा रहा है भैय्ये! अँधेरा घुप्प!!
भाषा के सवाल पर है क्यों चुप्प।
शुतुरमुर्ग बन बैठें सब ठौर-
कुछ न हो तो बहस से ही करें भोर।।

हर तरफ शेरे बहस है ये मुद्दुआ,
बोली बनेगी सरकारी डायरी ।
यह हकीकत है यूकलिप्टस की तरह
काम काज करेगी अब शायरी।।

खामोश बैठे हैं सब होठ सिले,
न कहीं शिकायत न कहीं शिकवे गिले।
सवाल भाषा का भाषा विद जाने--
स्वयंभू हैं सभी पद्म श्री तले।।

पकड़ के ऊँगली पहुंचे पे चढ़ेगी,
बोली बेल सी भाषा पर चढ़ेगी ।
सरपरस्ती उनके गहने गढ़ेगी---
बहरहाल बजेगी जो भी मढे गी।।

छटपटा के रेत में बैठेंगे गर,
रेत है तलुए सब जलेंगे यारो ।
खायेंगे कब तलक हिंदी का कौर,
उठेगी दूकान लूटेंगे सब यारों ।।


Published: 14-09-2023

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