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प्रलेस का महाधिवेशन : परसाई प्रसंग की रपट

प्रलेस के राष्ट्रीय महाधिवेशन अन्य साहित्यिक अधिवेशनों से अलग दिख रहा था। सत्यरक्षा होटल में बसा हरिशंकर परसाई नगर में लेखक अपने खर्चे पर आए थे। होटल से लेकर आवागमन तक का खर्चा उन्होंने स्वयम उठाया था। जिन्हें जगह नही मिली उल्लास पूर्वक जमीन पर बिछी दरी पर पसरे हुए थे। समारोह में लेखकों के लिए स्वादिष्ट नाश्ते, भोजन की व्यवस्था थी। बिना रोक टोक, भोजन पर्ची के कतार में लेखक लगे थे।

परसाई प्रसंग  की रपट
परसाई प्रसंग की रपट
प्रलेस के राष्ट्रीय समारोह में जो लेखक आकर्षण के मुख्य केंद्र थे उनमें वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, वीरेन्द्र यादव, राकेश वेदा, फारूकी अफरीदी, अलका आग्रवाल सिगतिया, डॉ संजय श्रीवास्तव, रमेश सैनी, जयप्रकाश पांडे, और अट्टहास के परसाई अंक के चलते अनूप श्रीवास्तव प्रमुख थे।
 
एक दिलचस्प दृश्य उस समय दिखा जब वरिष्ठ साहित्यकार कुछ देर से नाश्ता करने पहुंचे तो उन्हें यह कहकर नाश्ता देने से मना कर दिया गया-सब खत्म हो चुका है, कृपया काउंटर पर जाइये, अब यहां कुछ नही मिलेगा इस स्थिति में आड़े आई बम्बई से पधारी अलका सिगतिया। उन्होंने नरेश जी से आगे बढ़कर पूछा-क्या दो पराठे खाना आप पसन्द करेंगे/नरेश सक्सेना ने पूछा -कुछ अचार भी है। हाँ। नरेश जी के लिए अलका ने कार से नाश्ते का डिब्बा मंगवाया। नाश्ता पाकर नरेश सक्सेना ने कहा- अलका ने मेरे शरीर मे जान डाल दी।
 
प्रलेस का तीन दिवसीय समारोह कई सत्रों में बंटा था। इन सबसे अलग सत्र भी हुए। संगठन सत्र में अगले अध्यक्ष, महा सचिव, राज्यो के पदाधिकारियों के चयन की खींचा तानी भी चली लेकिन गुपचुप। नरेश सक्सेना का भी राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्विरोध बनने का भी प्रस्ताव आया जिसे नरेंश जी ने मना कर दिया अन्ततः राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर पी लक्क्ष्मी नारायण और महा सचिव सुखदेव सिंह सिरसा चुने गए।
 
समारोह के अगले दिन शाम को कोकिला रेसॉर्ट में रमेश सैनी, जय प्रकाश पांडे, राजस्थान सरकार के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत के विशेषाधिकारी फारूक अफरीदी, विनोद भरद्वाज और व्यंग्यकार और पत्रकार अनूप श्रीवास्तव आदि के बीच विशद परिचर्चा भी हुई जिसमे साहित्य के बिंदुओं पर लंबी बात चीत हुई। सुबह की संगोष्ठी में बम्बई की अलका सिगतिया भी जुड़ीं।
 
संगोष्ठी का निष्कर्ष था साहित्य वह है जो बेचैनी पैदा करे अनूप जी ने प्रेम चंद का उल्लेख करते हुए कहा भाषा साधन है, साध्य नही। अब हमारी भाषा ने वह रूप प्राप्त कर लिया है। वह भाषा जिसके आरम्भ में बागों बहारऔर बैताल पचीसी की रचना ही सबसे बड़ी साहित्य सेवा थी। अब इस योग्य हो गई है कि उसमें शास्त्र और विज्ञान की भी विवेचना की जा सके। यह सम्मेलन इस सच्चाई की स्पष्ट स्वीकृति है। फारूक अफरीदी का कहना था कि हमारी साहित्यिक रुचि तेजी से बदल रही है। साहित्य केवल मन बदलाव की चीज नही है। जय प्रकाश पांडे का मानना था कि कुछ समालोचको ने साहित्य को लेखक का मनोवैज्ञानिक जीवन चरित्र कहा है। रमेश सैनी ने कहा साहित्य मशाल दिखाते हुई चलने वाली सचाई है।
 
कुल मिलाकर हर समारोह की तरह प्रलेस के समारोह में संगति के साथ् विसंगति भी दिखी-परसाई की स्मृति के ताम झाम के साथ समारोह पर परसाई जी के तीन दिन तक पोस्टर लगे रहे, स्टालों पर परसाई का साहित्य बिकता रहा लेकिन मंच पर परसाई पर कोई सत्र कब कहाँ चला, किसने उन पर कब कहाँ बोला इसकी जानकारी अन्ततः नही मिल सकी।

Published: 29-08-2023

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