आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आत्मा और परमात्मा सर्वत्र है। दुनिया में जो भी विविधता है, उससे हमारा आत्मीय संबंध है। हमें स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि कुटुंब के लिए जीना है। पर्यावरण और प्रकृति हमारी माता है। इसका दोहन ठीक नहीं। देव संस्कृति विश्वविद्यालय में आयोजित व्याखानमाला में संघ प्रमुख भागवत ने वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा को विविध पहलुओं से उन्होंने समझाया।
उन्होंने कहा कि विविधता में एकता भारत की पहचान है। वसुधैव कुटुंबकम की परिकल्पना तभी साकार होगी, जब धर्म और जाति से ऊपर उठकर मनुष्य अपने को मनुष्य समझें। यही नहीं, जीव जंतु और पेड़ पौधों को भी जीव समझें। भारत का ज्ञान विश्व कल्याण के लिए है । धर्म वही है जिसे धारण किया जाए्।