एक कर्मठ कुर्मी अगुवा की दरकार
यूपी की सियासत में कुर्मी समाज की बड़ी भूमिका रही है। सियासी धरातल पर सपा भाजपा, कांग्रेस और बसपा के वैनर तले अनेक नामचीन राजनेता उभरे। यूपी के देवीपाटन मंडल का योगी सरकार में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। माना जाता है कि पदमसेन चौधरी को कुर्मी बिरादरी से सरकार में जिम्मेदारी मिल सकती है। बीते कुछ सालों से कुर्मी सियासत में काफी रिक्तता आयी है। इस बिरादरी का जाल देश के कई राज्यों में फैला हुआ है। यूपी के अलावा बिहार, ओडि़शा, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पष्चिम बंगाल, झारखंड, गोवा और कर्नाटक राज्यों में भी कुर्मी बिरादरी राजनीतिक रूप से काफी ताकतवर है। कई राज्यों में कुर्मी बिरादरी को ओबीसी का दर्जा प्राप्त है किन्तु गुजरात में इन्हे सामान्य श्रेणी में रखा गया है। पष्चिम बंगाल, ओडि़शा और झारखंड में कुर्मी को कुड़वी और कर्नाटक राज्य में इन्हे बोक्कालिंगा के नाम से जाना जाता है।
यूपी की सियासत में खास तौर से अवध क्षेत्र में इस बिरादरी में शून्यता आयी है। अवध क्षेत्र में रूद्रसेन चौधरी और विनय कटियार के बाद भाजपा नेतृत्व विहीन सी हो गयी है। कुर्मी समुदाय की पहचान एक जमींदार कृषक के रूप में मानी जाती है। केएम सिंह ने अपनी पुस्तक पीपुल्स आफ इंडिया सीरिज में कुर्मियों को एक प्रगतिशील किसान का दर्जा दिया है।
यूपी की सियासत में कुर्मी बिरादरी करीब 7 फीसदी है। जो यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी ओबीसी जातियों में ताकतवर है। यह समुदाय सूबे की करीब 50 विधान सभा सीटो और 8 से 10 लोकसभा सीटो पर निर्णयक भूमिका में है। इसी प्रकार करीब 25 जिलों क्रमश: महराजगंज, संतकबीर नगर, मिर्जापुर, कुशीनगर, बरेली, सोनभद्र, जालौन, उन्नाव, प्रतापगढ़, फतेहपुर, प्रयागराज, कौशम्बी, सीतापुर, प्रयागराज, श्रावस्ती, बहराइच, सिद्धाथर्थनगर, बलरामपुर, बाराबंकी, बस्ती, कानपुर अकबरपुर, बरेली, एटा, और लखीमपुर जिलों में असरदार है। 16 जिलों में इनकी तादाद करीब 12 फीसदी है। पूर्वाचंल से लेकर बुंदेलखंड, रूहेलखंड और अवध क्षेत्र में किसी भी सियासी दल के सियासी समीकरण को असंतुलित करने की ताकत रखती है।
कुर्मी समाज की कई उप जातियां हे। जो विभिन्न दलों का हिस्सा बनी हुई है। इनमें सैंथवार, पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी और वर्मा जैसे सरनेम का प्रयोग करते हैं। अवध और पष्चिमी यूपी में ये वर्मा, चौधरी, पटेल नाम से जाने जाते हैं। रूहेलखंड में इनकी पहचान वर्मा और गंगवार की है। कानपुर और बुंदेलखंड में पटेल, कटियार, निरंजन और सचान के नाम से प्रसिद्ध है। रूहेलखंड में भाजपा से संतोष गंगवार सपा से भगवत गंगवार , कानपुर- बुंदेलखंड में ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल, नरेश उत्तम पटेल कुर्मी बिरादरी का चेहरा रहे हैं तो कांग्रेस से राम पूजन पटेल अब राकेश सचान पार्टी में कुर्मियों के प्रमुख चेहरे हैं। जबकि सबसे अधिक कुर्मी आबादी अवध के जिलों में पायी जाती है। जहां 2022 विधान सभा चुनाव के पहले मुकुट बिहारी वर्मा को भाजपा कुर्मी नेता के रूप में प्रस्तुत कर रही थी। उनके रिटायरमेंट के बाद एक प्रभावशाली नेता का अभाव भाजपा को अखर रहा है। मौजूदा दौर में भाजपा ने इसकी भरपाई करने के लिए रूद्रसेन चैधरी के बेटे पूर्व सांसद पद्मसेन चैधरी को आगे कर रही है जिन्हे अभी हाल ही में हुए विधान परिषद के चुनाव में उन्हे एमएलसी बनाया गया है। माना जाता है कि सीएम योगी के मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हे वजीर बनाया जा सकता है।
जबकि जिले का पार्टी संगठन दो खेमो में बंटी हुई है। एक सवर्ण वर्ग पिछड़े वर्ग की सरकार में हिस्सेदारी देखने को तैयार नहीं है। दूसरा वर्ग पिछड़े वर्ग के इस संगठक को सरकार में देखने के लिए उत्सुक है। दूसरे वर्ग में सवर्ण तबके के जनप्रतिधि भी शामिल बताये जाते है। मौजूदा समय में पद्मसेन चैधरी एमएलसी के साथ ही यूपी भाजपा के प्रदेष उपाध्यक्ष भी हैं । श्री चौधरी को योगी कैबिनेट में वजीर बनने के बाद अवध के जिलों के साथ ही अन्य क्षेत्रों में भी भाजपा को फायदा मिलने की उम्मीद को खारिज नहीं किया जा सकता है।
अब तक की खास बात यह रही है कि कुर्मी बिरादरी किसी भी दल के साथ बंधकर नहीं रही है। पहले ये कांग्रेस के साथ थे। बाद में बसपा के साथ जुड़े। फिर सपा और भाजपा के बीच इनकी सियासी ताकत बंटती रही है। सपा सरकार में बेनी प्रसाद वर्मा और कल्याण सरकार में ओम प्रकाश सिंह तथा विनय कटियार प्रमुख कुर्मी चेहरा हुआ करते थे। भाजपा में स्वतंत्र देव सिंह इस समय प्रमुख कुर्मी चेहरा है। बसपा में कुर्मी चेहरों की किल्लत है।