परिवार व्यवस्था में शिक्षकों की भूमिका
डॉ पाठक ने कहा कि सभी धार्मिक परंपराओं में परिवारों की संस्थापक सभी परिवार में संबंध माता-पिता, पुत्र-पुत्री, पति-पत्नी और भाई-बहन के रूप में ही होते हैं। सभी संबंधों में मानवीयता के अर्थ में आचरण होना चाहिए इस आधार पर माननीय परिवार की संकल्पना को समझा जा सकता है। परिवार परिवार के रूप में ही समाज होता है, समाज में राष्ट्र के साथ विधि, -विधान-विधान पूर्वक एकत्व को प्राप्त करता है।
सभी राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्राकृतिक व्यवस्थाओं के साथ सहसंबंध में रहते हैं, उसी को समझने और इसके लिए शिक्षकों को तैयार करने की आवश्यकता है क्योंकि अखंड सार्वभौम व्यवस्था पूर्वक वसुधैव कुटुंबकम मानवीय परिवार को साकार करते हुए मानव के जीने को उत्सव पूर्वक बनाया जा सकता है उन्होंने कहा कि मानव जाति व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय रूप में अविभाज्य है। व्यक्ति परिवार के साथ, परिवार समाज के साथ, समाज राष्ट्र के साथ और राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय साथ अविभाज्य है, सह अस्तित्व में हैं, परस्पर संबंध में है ।
इसकी एकसूत्रता ही मानव जाति को उत्सव पूर्वक जीने के लिए प्रेरणा व स्त्रोत है। श्री अशोक ठाकुर में परिवारों के टूटने को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए कहां की सह अस्तित्व वादी दृष्टिकोण से परिवार के बीच में को रोका जा सकता है। हां यह समाज में भी सामाजिक समरसता को जन्म देगा। श्री सत्य प्रकाश भारत अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि परस्पर पूरक का और सहअस्तित्व के सिद्धांतों से ही सामाजिकता का विकास हो सकता है, यही सामाजिकता से अखंड सामाजिकता के रूप में माननीय समस्याओं का समाधान है ।
उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री श्री बालेश्वर त्यागी जी ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि वसुधैव कुटुंबकम वैश्विक समस्याओं के समाधान का रास्ता है हमारी परंपरा सर्वे भवंतू सुखिन: की रही है।