जम्मू-कश्मीर और तेलंगाना के पत्रकार सबसे ज्यादा प्रताड़ित
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 103 पत्रकारों को गत वर्ष में सरकारी एजेंसियों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा निशाना बनाया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, निशाना बनाए गए पत्रकारों में सबसे ज्यादा संख्या जम्मू-कश्मीर की है, दूसरे नंबर पर तेलंगाना है.
रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 91 पत्रकारों पर गैर सरकारी संगठनों (जिनमें राजनीतिक दल या नेता भी शामिल हैं) द्वारा निशाना बनाया गया. इनमें से करीब 41 पत्रकारों को जम्मू-कश्मीर, मणिपुर और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सशस्त्र समूहों द्वारा निशाना बनाया गया है.
पुलिस द्वारा गिरफ्तारी, नजरबंदी, अदालती मामलों या यहां तक कि जानलेवा हमले का शिकार बने पत्रकारों में सबसे ज्यादा, 48 जम्मू कश्मीर के हैं.
उसके बाद तेलंगाना में 40, ओडिशा 14, उत्तर प्रदेश 13, दिल्ली 12 और पश्चिम बंगाल में 11 पत्रकारों को किसी न किसी तरह से हिंसा या उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. इसी तरह दिल्ली में 12, पश्चिम बंगाल 11, मध्य प्रदेश और मणिपुर में 6-6, असम और महाराष्ट्र में 5-5, बिहार, कर्नाटक और पंजाब में 4-4,
छत्तीसगढ़, झारखंड और मेघालय में 3-3, अरुणाचल प्रदेश और तमिलनाडु में 2-2 और आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पुडुचेरी, राजस्थान, त्रिपुरा और उत्तराखंड में कम से कम एक पत्रकार को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा.
गौरतलब है कि पिछले साल करीब 70 पत्रकारों को गिरफ्तार या हिरासत में लिया गया. तेलंगाना में के.चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली सरकार में 40 से अधिक पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया. उत्तर प्रदेश में छह, जम्मू-कश्मीर में चार और मध्य प्रदेश में तीन पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई.
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल भारत में 14 पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. चार पत्रकारों को पुलिस और प्रवर्तन निदेशालय द्वारा तलब किया गया था और 15 पर अधिकारियों द्वारा या तो हमला किया गया या धमकी दी गई या परेशान किया गया. पत्रकारों के साथ मारपीट की सर्वाधिक चार घटनाएं ओडिशा में हुईं.
गत वर्ष तीन पत्रकारों- आकाश हुसैन, सना इरशाद मट्टू और राणा अय्यूब को पिछले साल इमीग्रेशन अधिकारियों ने विदेश जाने से रोक दिया था. पत्रकारों पर दर्ज मुकदमों में राजद्रोह के आरोप, मानहानि, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने, आईटी अधिनियम और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम इत्यादि के मामले शामिल हैं.
इसके अलावा गत वर्ष सात पत्रकारों की हत्या हुई. ऐसे ही एक पत्रकार सुभाष कुमार महतो को खनन माफिया ने सिर्फ इसीलिए मार डाला क्योंकि वह उनकी धमकियों के बावजूद रिपोर्टिंग कर रहे थे.