Media4Citizen Logo
खबर आज भी, कल भी - आपका अपना न्यूज़ पोर्टल
www.media4citizen.com

व्यंग्य : कौओं पर भी बसन्त 

कौओं पर भी बसन्त  कौओं पर भी बसन्त 

यूँ तो हमारे लोकतांत्रिक देश की धर्म निरपेक्ष व्यवस्था में बसन्त सब  पर आता है ,चाहे वह जीव जंतु हो या पक्षी,शेर हो या गीदड़, सुअर हो या कुत्ता,कोयल हो या कौआ ।जब बसन्त में ठूठ हरिया सकती है तो कौओं के ही साथ नाइंसाफी क्यों ? कौए जिंदगी भर कोयलों के बच्चों को सेते रहते है,इस उम्मीद से शायद उन पर भी बसन्त मेहरबान हो जाये ।इसी लिप्सा में कौवे भी अपने लिए थोड़ा बहुत जुगाड़ कर लेते हैं। जंगल मे मंगल जुगाड़ से ही होता है ।
 
यह दीगर बात है कि जिनके बसन्त का रंग फीका चढ़ता है उनपर पतझड़ आते देर नहीं लगती और वे बीस जनप्रतिनिधियों की तरहभूतपूर्व बना दिये जाते हैं । बसन्त के अनखाने पर भूतपूर्व से अभूतपूर्व बनाने की अभूतपूर्व परंपरा हमारा राष्ट्रीय कृत्य है जिसे कुछ अज्ञानी कुकृत्य मान बैठे हैं ।
 
     
कहते हैं फागुन में बाबा देवर लगने लगते हैं लेकिन बाबा एक दम से देवर नहीं हो जाते ।उनके भी देवर होने की शुरुआत बसन्त की मेहरबानी से ही शुरू होती है।
 
बसन्त सठियाता भी है ।वह ज़माना गया जब बसन्त पतझड़ के कंधों पर चढ़ के आया करता था,लेकिन अब जिससे बसन्त मुंह फेर लेता है उसी पर बैठे बिठाए पतझड़ अनचाहे मेहमान की तरह सर पे सवार हो जाता और वह आप की तरह ढपली बजाने को मजबूर हो जाता है।
 
वह ज़माना गया जब बसन्त खेत खलियानों में,बाग बगीचों मे पेड़ों की फुनगियों तक फुदकता फिरता था। अब तो बसन्त स्थानीय निकायों-जिला परिषदों, महापालिकाओं,विधान सभा से लोकसभा तक,विधान परिषद से राज्यसभा तक पसरा पड़ा है ।  जो इस घेरे में पहुंच गया उसके लिए बारहों मास बसन्त ही बसन्त है। जब बसन्त मेहरबान होता है तोझाड़ झंखाड़ वाले विस्वामित्र को भी मेनका लिफ्ट देने लगती है और कौए भी अपने को हरियल तोता समझने लगते हैं ।
   
कुछ कौए बसन्त की पात्रता न रखते हुए भी निर्विरोध चयनित हो जाते हैं कौवों का बसन्त से लगता है पुराना राजनीतिक गठबंधन है यही वजह है क्या छोटे क्या बड़े मौका पाते ही सभी बसन्त की छाया पाने की जुगाड़ में लगे रहते हैं और बसन्त भी इन जुगाड़ू कौओं को थोड़ा बहुत हरियाता रहता है क्योंकि इन कौओं में संत न सही महंत तो होते ही हैं ।
 
हमारे देश मे जितने वैरायटी के बसन्त होते हैं उतने ही किस्म के कौए । कौओं के भाग्य में दूध भात ऐसे ही थोड़े आता है। वैसे वे अपनी बिरादरी में ही काँव काँव करते हैं पर दूर दृष्टि, कड़ी मेहनत और पक्का इरादा इन्हें बाज़ औऱ चील जैसी भूमिका अदा करने का मौका मुहैया करा देता है ।माँ सीता के पैर में चोंच मारने वाला जयंत नामधारी आखिर कौवा ही तो था ।
 
कौवे भी इस सत्य को जानते हैं कि हर चीज़ प्रत्यारोपित हो जाती है तो बसन्त क्यों नहीं ? तभी लोकतांत्रिक घटनाओं में बसन्त किसी के सर प्लास्टर की तरह बन्ध जाता है जो बाद में स्टिंग ऑपरेशन से दरारें पड़कर ऐसे बहुधा चिटक भी जाता है। ऐसे ही कौवों को मलाल रहता है कि बसन्त उन पर ठीक से नहीं चढा ।
बसन्ती बयार है तो पूरा देश उसके लिए जनपथ है जहां चारों मास बसन्त छाया रहता है ।बाकी जगहों पर तो बसन्त सुविधानुसार बारी बारी से दौरा करता  है।
 
चाहे नोटबन्दी हो या जी एस टी बसन्त सभी पर फुनिया रहा है । वह गरीब के पेट पर पट्टी बांधने के लिए  उतारू  है और अमीरों को  नाकों तले चना चबवाने के लिए भी तैयार रहता है। कोई भरोसा नहीं बसंत कब कहाँ पलटी मार दे।
 
चाहे राजनीति हो या धर्म अथवा साहित्य सभी उसके घेरे में हैं।जिसे राजयोग कहते हैं दरअसल वह बसन्तयोग है । मज़े की बात है कि तीनों बसन्त को गठियाना चाहते हैं जब कि बसन्त सभी को लँगड़ी लगाने में माहिर है । बसन्त की बैसाखी लगाये बिना कोई भी एक कदम नही बढ़ सकता ।बसन्त और बसन्ती का अद्भुत गठजोड़ है। दोनों ही सबको भरमाते रहते हैं । एक दूसरे पर छाए बसन्त को ये फूटी आंखों से देख नहीं सकते बल्कि मिलावटी बसन्त का आरोप लगाते रहते हैं ।
 
राजनीति में किसके पावों तले कब ज़मीन खिसक जाए और माननीय से भूतपूर्व हो जाये ।यह बसन्त और पतझड़ की गलबाहीं का ही नतीजा है । मंदिर के घण्टे घड़ियालों के बीच चरण वंदना के आदी को जाने कब जेल की सलाखें नसीब हो जाये यह भी सावनी पतझड़ का ही कमाल है। साहित्यकारों के बीच पुरुस्कारों की लाग डांट और जुगड़बन्दी किसी से छिपी नहीं है। आर्थिक क्षेत्र में तो रोना आम बात है
 
शायद इसी लिए सावन में अंधे को हरा ही हरा सूझता है।जिनकी जेबें भरी होती है उन्हें सभीके पेट भरे भरे दिखते हैं । जिसकी तकदीर में बसन्त की छाया भी नसीब में नहीं होती वह भी उसे प्रायोजित करने की जुगाड़ में रहता है । बस ऐसे कौवे को थोड़ा सयाना होना चाहिए फिर तो उसके पौ बारह होने में देर नही लगती |
 
वैसे अंतिम सच यही है कि अमीर आदमी के लिए तो बसन्त ही बसन्त है पर गरीब आदमी के लिए बसन्त के मुहाने पर भी अंत है ।
 

Published: 17-06-2023

लेटेस्ट


संबंधित ख़बरें