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नये सियासी हम सफर की खोज में जुटी मायावती : हर एक जोड़ में गांठ फिर भी गठजोड़ की तलाश

भरोसे लायक नहीं रहा मायावती का सियायी सफर, यूपी की सियासत में बसपा प्रमुख मायावती ने हमेशा समीकरण और गठजोड़ की सियासत को तवज्जो दिया है।

हर एक जोड़ में गांठ फिर भी गठजोड़ की तलाश
हर एक जोड़ में गांठ फिर भी गठजोड़ की तलाश

यूपी की सियासत में बसपा प्रमुख मायावती ने हमेशा समीकरण और गठजोड़ की सियासत को तवज्जो दिया है। उनकी गठजोड़ की सियासत अल्पायु रही है। जितने भी गठबंधन मायावती ने किए उन सभी में अविश्वास की गांठ और झलक देखी गयी। आज जब लोकसभा चुनाव दस्तक दे रहा है ऐसी दशा में मायावती को गठजोड़ की याद सताने लगी है। माना जाता है कि इस बार मायावती दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने के लिए किसी नये सियासी हम सफर की तलाश कर रही है।

साल 2012 से बसपा की सियासी साख को गहरा झटका लगा है। उस झटके से अभी तक बसपा उबर नही पायी है। लोकसभा चुनाव 2019 में समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ करके बसपा ने 10 सीटो पर जीत दर्ज की थी। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा का खाता तक नहीं खुला था। 2019 के चुनावी नतीजे आने के महज 12 दिन बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने सपा से गठजोड़ को तोड़ दिया था।

हकीकत तो यह है कि मायावती की सियासत का तरीका हमेशा गठजोड़ पर केन्द्रित रहा है। समीकरणों को साधने में माहिर मायावती 4 बार यूपी की सीएम बनी। 2007 के विधान सभा चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में भी वे सफल रही। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हे मनमाफिक मुकाम हासिल नहीं हुआ। 2012 के विधान सभा चुनाव में भी उन्हे शिकस्त का सामना करना पड़ना। यहीं से उनके सियासी ग्राफ में गिरावट का सिलसिला चल पड़ा।

बसपा मुखिया मायावती के सियासी चरित्र में स्थायित्व का अभाव रहा है। उन्होने अब तक जितने भी गठजोड़ किए वो विशुद्ध रूप से मौका-परस्ती से लबरेज रहे। साल 2007 को छोड़कर उनका कार्यकाल बहुत छोटा रहा है। तीन मर्तवा उनके सीएम बनने के पीछे सियासी मजबूरियां रही हैं। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण मुद्दे से भाजपा ताकतवर हुई। भाजपा के प्रभाव को काबू में करने के लिए कांसीराम और मुलायम सिंह यादव करीब आये। 1993 में यूपी में उप चुनाव हुए। इस उप चुनाव में सपा ने 256 सीट पर चुनाव लड़कर 109 और बसपा ने 164 सीट पर चुनाव लड़कर 67 सीटो पर जीत दर्ज की थी।

सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव सीएम बने। उस समय मायावती बसपा की महासचिव हुआ करती थी। एक जून 1995 को मुलायम को पता चला कि मायावती सरकार से समर्थन वापस लेने वाली है। इस मसले पर मायावती दो जून को स्टेट गेस्ट हाउस लखनऊ में अपने विधायको के साथ बैठक कर रही थी। इसी बीच कथित सपाइयो द्वारा उन पर हमला कर दिया गया। इसी दिवस मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया। तीन जून 1995 को भाजपा के समर्थन से मायावती पहली बार सूबे की सीएम बनी। 18 अक्टूवर 1995 को भाजपा ने मायावती सरकार से समर्थन वापस ले लिया। उनका पहला कार्यकाज चार महीने का रहा।

1996 में बसपा और कांग्रेस के बीच गठजोड़ हुआ। बसपा 300 सीटो पर चुनाव लड़ी। उसे 67 सीटे मिली। 1997 में समीकरण बदले। मायावती ने कांग्रेस से गठजोड़ तोड़ दिया। भाजपा से दोस्ती कर 6-6 महीने सीएम बनने का गठजोड़ हुआ। 21 मार्च 1997 को मायावती दूसरी बार यूपी की सीएम बनी। छह महीने का अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद 21 सितम्बर 1997 को उन्होने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। एक महीना भी नही गुजरा मायावती ने कल्याण सिंह पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाकर 10 अक्टूवर 1997 को कल्याण सरकार से समर्थन वापस ले लिया। सियासी कौशल के धनी कल्याण सिंह ने कांग्रेस, बसपा और जनता दल को तोड़कर अपनी सरकार बचा ली।

तीसरी मर्तबा भी मायाचती भाजपा के ही समर्थन से 3 मई 2002 को मुख्यमंत्री बनी। 29 अगस्त 2003 तक सीएम रही। 2007 में हुए चुनाव में बसपा पूर्ण बहुमत हासिल कर मायावती ने चौथी बार सरकार बनायी। 2017 में हुए यूपी के विधान सभा चुनाव के बाद 2018 में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के लिए उपचुनाव हुए। बसपा ने सपा को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया। सीएम योगी की प्रतिष्ठापूर्ण गोरखपुर सहित दोनों सीटो पर सपा ने जीत दर्ज की। बसपा का यह अपरोक्ष समर्थन 2019 जोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के बीच गठजोड़ का कारण बना। 2014 लोकसभा चुनाव में जीरो पर रहने वाली बसपा ने इस चुनाव में दस सीटो पर जीत दर्ज की। सपा को मात्र पांच सीटे मिली थी। 1999 में मायावती केंद्र की अटल सरकार और 2008 में केन्द्र की यूपीए सरकार से भी समर्थन वापस लेने का काम कर चुकी है।

 


Published: 04-06-2023

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