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अमीर से लिया, गरीब को दिया

<div>रजनीकांत वशिष्ठ : सबसे अच्छा राजा वही होता है जो सूर्य की तरह सागर से जल ले और उन इलाकों में पहंुचाए जहां सूखा हो। देश के इस साल के बजट में भी अमीर से लेकर गरीब को देने की एक कोशिश तो दिखायी देती है। वैसे ऐसा नहीं है कि इससे पहले की सरकारों ने य

अमीर से लिया, गरीब को दिया
अमीर से लिया, गरीब को दिया
रजनीकांत वशिष्ठ : सबसे अच्छा राजा वही होता है जो सूर्य की तरह सागर से जल ले और उन इलाकों में पहंुचाए जहां सूखा हो। देश के इस साल के बजट में भी अमीर से लेकर गरीब को देने की एक कोशिश तो दिखायी देती है। वैसे ऐसा नहीं है कि इससे पहले की सरकारों ने ये काम नहीं किया था। पर राजीव गांधी भी ये मानते थे कि दिल्ली से भेजे गये एक रुपये में से पन्द्रह पैसा ही सही लाभार्थी तक पहुंच पाता है। मतलब ये कि हमारी जर्जर प्रशसनिक मशीनरी ने, भ्रष्ट नेताओं के साथ मिलकर बजट की जनकल्याणकारी योजनाओं को बेमानी बना रखा था। हां वर्तमान मोदी सरकार में लगे ताजा नोटबंदी, कैश लेस या लैस कैश और डिजिटल इकाॅनाॅमी के झटकों से अब लगने लगा है कि गरीब को पूरा रुपया पहुंचाया जा सकता है। 
 
आज के इस परिवेश में अगर देखा जाये तो यह एक आशावादी बजट है। आजादी के बाद पहली बार बजट फरवरी के आखिर के बजाय पहली ही तारीख को पेश हुआ और पहली बार रेल बजट अलग से पेश करने की परम्परा को तिलांजलि दे दी गयी। मकसद ये कि ताम झाम कम हो और काम ज्यादा। विभागों को बजट को 1 अप्रैल से सही से लागू करने के लिये पर्याप्त समय मिल जाये। विपक्ष की इस आशंका के बीच कि मोदी सरकार बजट से भाजपा पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में फायदा उठा ले जायेगी। बजट में ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया जो चुनाव आयोग की या विपक्ष की नजर से चुनावी रिश्वत माना जाये। भाजपा को चुनावी नजरिये से आगे जो कुछ देना है उसे तो अपने चुनावी घोषणापत्रों में पहले ही कह चुकी है। 
 
बजट से पहले कामकाजी सेक्टर से टैक्स लिमिट बढ़ाने की आशा की जा रही थी। सरकार ने नोटबंदी के दौरान बरते धैर्य का इनाम साल में ढाई से पांच लाख कमाने वाले काॅमन मैन को कर में पांच प्रतिशत की राहत के रूप में दे दिया। इससे देश के मध्यम और निम्न वर्ग को जरूर थोड़ी राहत मिली होगी। हां इससे ज्यादा कमाने वालों को ज्यादा टैक्स देना होगा। आय कर की दर आधी करने से सरकार ये आशा जरूर कर सकती है कि देश में कर जमा करने वालों की संख्या ज्यादा हो। दुनिया के किसी भी देश में शायद कर देने वालों का प्रतिशत इतना नीचा हो। सोच ये है कि कर की राशि कम होगी तो लोग स्वेच्छा से कर देने को प्रेरित होंगे।
 
हमारे बच्चों को बाहर न जाना पड़े इसके लिये देश को वल्र्ड लेबल का ढांचा अपने यहां खड़ा करना होगा। सड़क, स्कूल, अस्पताल, कारखाना, दफतर के लिये आधारभूत ढांचा चाहिये। सबसे निचली पायदान पर खड़े गरीब का भी पेट पालना जन कल्याणकारी राज्य का काम है। पर इस सबके लिये पैसे चाहिये। सरकार के पास पैसों का कोई पेड़ नहीं लगा है। न ही उसकी कोई खेती है या कारखाना। जनता से मिले कर के पैसों से ही देश को विकास के रास्ते पर ले जाया जा सकता है। अगर सरकार से उम्मीद रखनी है तो मौलिक अधिकारों के साथ साथ जनता को इस कर यज्ञ में भी अपना दायित्व निभाना होगा। टैक्स बचाना बुरी बात नहीं पर टैक्स चोरी की बुरी आदत से जनता को भी मुक्त होना ही होगा। सरकार ने महात्मा गांधी के इस कथन को नोटबंदी के पक्ष में दलील माना है कि सही उद्देश्य कभी असफल नही होता है। सरकार को जनकल्याणकारी कार्यों और विकास के लिये खजाने में पैसा चाहिये था। नोटबंदी ने काफी हद सरकार के हाथ खोले हैं। 
 
एनडीए सरकार ने अपने बजट का एजेंडा ट्रांसफारमिंग, एनरजाइजिंग क्लीन इंडिया रखा है। आम आदमी को कर राहत के बाद सरकार की निगाह खेती और किसानी पर थी। कृषि क्षेत्र देश की जान है। सो कृषि क्षेत्र और ग्रामीण रोजगार के क्षेत्र में सरकार ने अपने बजट में पूरी उदारता दिखायी है। आजादी के बाद पहली बार कृषि क्षेत्र के लिये बजट में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी की गयी है। जैसाकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संकल्प में कहा कि 2022 तक सरकार किसान की आय में दो गुनी वृद्धि देखना चाहती है। खजाने में नोटबंदी के बाद आयी रकम से आधारभूत ढांचे में सुधार के बाद सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य राजसहायता को कृषि क्षेत्र की ओर मोड़ना होगा। किसान को कर्ज के चंगुल से निकालना होगा। उसे खेती के श्रेष्ठ पारंपरिक या वैज्ञानिक तरीकों से लैस करना होगा। उसके लिये खाद, बीज, बिजली, पानी, बाजार का इंतजाम करना होगा।
बजट ने टच तो सभी को किया है। विपक्ष और गांवों में बसे भारत को यह आशंका थी कि ये सरकार मनरेगा को खत्म करना चाहती है। पर ऐसा नहीं हुआ बल्कि अरुण जेटली ने अपने पिटारे से मनरेगा के मद में रकम और बढ़ा कर दी है। यही नहीं मनरेगा को और प्रभावी और प्रासंगिक बनाने के वास्ते कुछ कदम सरकार ने जरूर उठाये हैं। ताकि इस रकम को सीधे लाभार्थी तक पहुंचाया जाये और गांवों में विकास दिखायी पड़े। खासकर महिलाओं, व्यापारियों, युवाओं के लिये भी वित्त मंत्री ने योजनाओं को दिल खोलकर हिस्सा दिया है। नये उद्यमियों के लिये टैक्स हाॅलीडे, वित्तीय और तकनीकी सहायता की व्यवस्था बजट में रखी गयी है। रोजगार सृजन की दिशा में विशेष काम करने का इरादा भी सरकार ने जाहिर किया है।
 
लब्बोलुवाब ये है कि मोदी सरकार ने बिना हंगामा किये एक संतुलित बजट सामने रखा है। अब चूंकि ये बजट फिलहाल सबसे बड़े मतदाताओं-आम आदमी और किसान की तकलीफों पर मरहम का फाहा रखने का काम करता नजर आता हैं। अगर नोटबंदी से घायल, हैरान, परेशान वोटर को राहत महसूस हुई होगी तो पांच राज्यों के चुनाव में जमीन पर उतर कर सामने आ जायेगी। 
 
 

Published: 02-02-2017

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