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यूपी में अखिलेश की वापसी

<p>&nbsp;रजनीकांत वशिष्ठ : यूपी में यादव वंश का राजकुमार अब राजकुमार नहीं रहा, खुद राजा हो गया है। अभी तक सा-सजय़े चार सालों में यूपी के सा-सजय़े चार मुख्यमंत्रियों में से आधे मुख्यमंत्री के विशेषण से दबे अखिलेश यादव अब अपने आप को पूरा मुख्यमंत्री कहला

यूपी में अखिलेश की वापसी
यूपी में अखिलेश की वापसी

 रजनीकांत वशिष्ठ : यूपी में यादव वंश का राजकुमार अब राजकुमार नहीं रहा, खुद राजा हो गया है। अभी तक सा-सजय़े चार सालों में यूपी के सा-सजय़े चार मुख्यमंत्रियों में से आधे मुख्यमंत्री के विशेषण से दबे अखिलेश यादव अब अपने आप को पूरा मुख्यमंत्री कहलाने के लिये चुनावी मैदान में उतर पड़े हैं। बकौल डिम्पल यादव, वो अभी तक ट्रेनी चीफ मिनिस्टर थे फिर भी अच्छा काम कर गये। अब ट्रेन्ड चीफ मिनिस्टर के तौर से और भी अच्छे से विकास करेंगे। 

 
मुलायम परिवार तीन महीने तीन महीने की पीड़ा से उबर चुका है। प्रदेश में समाजवादी विचारधारा के पर्याय और सुप्रीम ताकत मुलायम सिंह यादव चार दशकों से सियासत के अखाड़े में अपना पार्ट बखूबी अदा करते आये हैं। वो खुद 28 साल की उमर में सियासत में कदम रख चुके थे। समाजवादी पार्टी एक पी-सजय़ी से दूसरी पी-सजय़ी में कायांतरण की प्रतीक्षा में थी। मुलायम के पौरुख थकने लगे थे और उनके बेटे, भाई, भतीजे से लेकर पोते तक राजनीति में प्रवेश करने लगे हैं। इसलिये मुलायम की राजनीतिक विरासत पर दावे के लिये यादव वंश में वही सब कुछ हुआ जो पीछे हजार सालों से राजपरिवारों में होता आया है।
 
गौर फरमाइये चुनाव आयोग के फैसले के बाद के मुलायम सिंह यादव के उस बयान पर जिसमें उन्होंने कहा-ंउचयचलो अच्छा हुआ, साइकिल बच गयी।
 
इसका भावार्थ ये था कि उन्होंने जो राजनीतिक पूंजी संघर्षों से जमा की थी वो बेटे अखिलेश के हाथों में चली गयी। भाई
शिवपाल दंत-ंउचयनख विहीन हो गया और भाई रामगोपाल बेटे का खैरख्वाह बन गया। रही बात अगली पी-सजय़ी की तो उसे अखिलेश संभाल लेंगे। नेहरू से इंदिरा, इंदिरा से संजय और फिर राजीव और राजीव से सोनिया और अब सोनिया से राहुल के मामले में भी ऐसा ही हुआ था।
 
गांधी वंश और यादव वंश के चिराग अब साथ चल कर प्रदेश और देश का ठेका मोदी से छीनना चाहते हैं। दो युवाओं की यह दोस्ती मोदी के निजाम और काम करने के तौर तरीकों की मुखालफत करने निकल पड़ी है। अखिलेश अच्छा लड़का है यह राहुल गांधी कह ही चुके हैं।
 
हुआ वही जिसका अंदेशा चाचा शिवपाल भरी सभा में जाहिर कर चुके थे कि भतीजा दूसरी पार्टी के साथ मिल कर सरकार बनाने की तैयारी कर चुका है। प्रदेश के तमाम सारे लोग ऐसे मिले जो ये कहते कि अखिलेश तो ठीक है और वो उसे वोट भी कर सकते हैं। पर चाचा यानी शिवपाल और अंकल अमर सिंह की चाल -सजयाल ठीक नहीं है। वो इसलिये कि अखिलेश ने विकास के कुछ काम तो किये हैं चाहे मेट्रो हो या आगरा एक्सप्रेसवे। अखिलेश की इमेज बिल्डिंग का काम प्रोफेशनल तरीके से ऐसे हुआ कि वो विकास पुरुष हैं और उनके साथ चिपके मुलायम या शिवपाल भक्त उनके रास्ते में रुकावट है। अब वो रुकावट दूर हो चुकी है और अखिलेश नये समाजवादियों के मुखिया हैं।
 
यहां तक तो ठीक है जैसा परिवार के बुजुर्ग ने चाहा वैसा हुआ पर अब पतवार नयी पी-सजय़ी के हाथों में है। अखिलेश को ंअब जनता को यह भरोसा दिलाना होगा कि अब तक भले ही वो ठीक से काम नहीं कर पाये। पर एक मौका और मिला तो वो सूरत बदल देंगे। सपा के ताजा घोषणापत्र से तो उन्होंने ये जाहिर कर ही दिया है कि तमिलनाडु के रास्ते पर चल कर वो एक शंहशाह की तरह जनता को तोहफों से मालामाल कर देंगे। वो सब तो ठीक है पर अखिलेश के सामने जनता के सवाल भी है। कि क्यों उनके शासन में कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठते रहे। क्यों अधिकांश विभागांें में सरकारी भर्तियों में एक जाति विशेष का ही बोलबाला रहा। भर्ती छोड़ों क्योें नियुक्तियों मंे भी एक जाति विशेष हावी रही। महज राजधानी में ही मेट्रो या फिर आगरा एक्सप्रेसवे में पैसा
 
-हजयोंकने से हुआ विकास क्या सौंदर्यमूलक विकास नही कहा जायेगा। यही
 
पैसा गांवों या कस्बों में जाता तो क्या बेहतर समावेशी विकास नहीं
 
होता।
 
खैर चुनाव काम से कम प्रबंधन से ज्यादा जीता जाता है। इन तीन महीनों
 
में जिस तरह सपा में उम्मीदवारों की सूची पर सूची जारी हुई हैं। उससे
 
हर जिले या चुनाव क्षेत्रों में भ्रम की स्थिति पैदा नहीं होगी। साथ
 
ही यह कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव की पूरी राजनीति कांग्रेस विरोध
 
या उसे छकाने पर आधारित रही है। पर अखिलेश ने तात्कालिक लाभ के लिये
 
बड़ी राजनीतिक पार्टी से जो हाथ मिलाया है उसका फायदा सपा को होगा
 
या कांग्रेस को इसका फैसला जनता करेगी। राजनीतिक पंडितों का कयास तो
 
ये है कि कांग्रेस सालों के सूखे से उबर जायेगी पर सपा -हजयेल जायेगी।
 
पूर्वांचल के अंसारी बंधुओं या अतीक अहमद को सपा ने ये कहकर अपने से
 
अलग किया है कि अखिलेश राजनीति में अपराधीकरण के खिलाफ है। पर एक बार
 
अफजाल अंसारी ने ही कहा था कि प्रदेश का नब्बे परसेंट मंत्री और
 
विधायक अखिलेश के साथ है पर नब्बे परसेंट मुसलमान मुलायम के साथ
 
है। अब अगर यह मुसलमान मतदाता अखिलेश से छिटक गया तों उनकी सत्ता
 
में वापसी एक सपना ही रह जायेगी। बहरहाल अब समय भी कम है और अखिलेश
 
को इन सारी आशंकाओं को खारिज करना होगा।

Published: 25-01-2017

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