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ठुमरी केंद्रित फ़िल्म 'पद्मकौमुदी' का प्रीमियर : गीतात्मक अनुभूति का सिनेमाई आख्यान

मार्ग फिल्म्स द्वारा आयोजित इस अवसर पर सिद्धेश्वरी देवी घराने की ठुमरी गायिका सुचरिता गुप्ता, फ़िल्म के निर्देशक गौतम चटर्जी और बुक हाउस के स्वामी रामानन्द तिवारी को फ़िल्म के प्रतीककचिन्ह से सम्मानित किया गया. आरम्भ में मार्ग फिल्म्स के निदेशक समीरन बनर्जी ने नगर के सभी रसिक संगीत दर्शकों का स्वागत किया.

गीतात्मक अनुभूति का सिनेमाई आख्यान
गीतात्मक अनुभूति का सिनेमाई आख्यान

ठुमरी साम्राज्ञी सिद्धेश्वरी देवी की प्रमुख शिष्या कौमुदी बेन पर बनी फिल्म 'पद्मकौमुदी' का भव्य प्रीमियर वाराणसी में हुआ. इसकी दो स्क्रीनिंग हुई. एक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में और एक पिलग्रिम्स बुक हाउस के विराट सभागार में. मार्ग फिल्म्स द्वारा आयोजित इस अवसर पर सिद्धेश्वरी देवी घराने की ठुमरी गायिका सुचरिता गुप्ता, फ़िल्म के निर्देशक गौतम चटर्जी और बुक हाउस के स्वामी रामानन्द तिवारी को फ़िल्म के प्रतीककचिन्ह से सम्मानित किया गया. आरम्भ में मार्ग फिल्म्स के निदेशक समीरन बनर्जी ने नगर के सभी रसिक संगीत दर्शकों का स्वागत किया.

81 मिनट की इस शास्त्रीय फ़िल्म में ठुमरी के बनारस घराने की तीन पीढ़ियों के सांगीतिक आख्यान का सिनेमाई चित्रण है जिसमे सिद्धेश्वरी देवी, उनकी शिष्या कौमुदी बेन और फिर उनकी शिष्या सुरुचि मोहता ने ठुमरी की कथा को गीतात्मक स्वरूप दिया है. फ़िल्म में अश्विनी भिडे और रोनू मजूमदार भी कथा को प्रभावी बनाते हैं. उत्तर प्रदेश में अल्पज्ञात कौमुदी बेन के बारे में विस्तार से बताए इन तीन कलाकारों (अश्विनी भिडे और सुरुचि मोहता) के संस्मरण फ़िल्म को सांगीतिक और संग्रहनिष्ठ महत्व सौंपते हैं.

अहमदनगर, मुंबई, बनारस और एलोरा की गुफाओं के लोकेशन संगीत की कौमुदी स्वरलिपियों को प्रतीक देते प्रतीत होते हैं. गौतम चटर्जी ने फ़िल्म में 1930 से 2020 तक की बनारसी ठुमरी की थाती को एकाग्र आयतन देने की कोशिश की है. सिद्धेश्वरी देवी की ठुमरी परंपरा को कौमुदी बेन के ज़रिए सुनना संगीत रसिकों के लिए एक दिलचस्प सांगीतिक अनुभव रहा. फ़िल्म में बनारस की ठुमरी की प्राचीन बंदिशें संग्रहीत हैं. सिद्धेश्वरी देवी की बेटी सविता देवी की पट शिष्या सुचरिता ने फ़िल्म प्रदर्शन के बाद बताया कि कैसे उनकी मुलाकात सविता देवी के घर हुई थी. उन्होंने कौमुदी बेन की गाई वो बंदिश भी सुनाई जिसे उन्होंने कौमुदी बेन से सुना था। कौमुदी बेन का जन्म बनारस में 1929 में हुआ था. वे 1950 तक बनारस में थीं. फिर मुम्बई जाकर बस गईं. उनके पति नीनूभाई मजुमदार ने सूरदास के पद 'सुंदर बदन सुख सदन स्याम को' को कंपोज़ किया था जो आज अश्विनी भिडे की आवाज़ में लोकप्रिय है. फ़िल्म में श्रोता इस पद का मुखड़ा नीनू भाई और अश्विनी भिडे की आवाज़ में और अंतरा सुरुचि मोहता के मधुर कंठ में सुनकर आह्लादित हुए. कार्यक्रम के दौरान फ़िल्म के पोस्टर और विशेष टिकेट भी जारी किए गए.


Published: 31-08-2022

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