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जो रचेगा :  सो बचेगा

किताबें तो जब लिखीं जाएंगी तब लिखी जाएंगी अभी तो बात फेसबुक की। मान लीजिए आज फेसबुक बंद हो जाये तो हमारा सारा लेखन खत्म हो जाएगा। दुनिया का कितना कूड़ा कम हो जाएगा। कुछ दिन हुड़केंगे, फिर शुरू हो जाएंगे।

 सो बचेगा
 सो बचेगा
गए दिन फेसबुक और इंस्टाग्राम थोड़ी देर के लिए गड़बड़ा गए। गड़बड़ी के दौरान और बहाल होने के बाद हजारों लोगों ने इस बात पर अपने हिसाब से लिखा। चुटकुले बने, लेख लिखे गए। और न जाने क्या-क्या।
 
कल पता चला कि इस घटना से मेटा के शेयर गिर गए। 100 मिलियन डॉलर की चपत लगी फेसबुक को। इत्ती रकम का हिसाब किताब और तुलना भी करना बेफालतू का काम। मिलियन, विलियन डॉलर की जब बात आती है तो -'हमसे सम्बद्ध नहीं' कहकर बगलिया देते हैं। 
 
फेसबुक ने कल ही अपने मैसेंजर पर कुछ नया फीचर शुरू किया। चैट सेव करने के लिए पासवर्ड(कोड) बनाओ या फिर एक ही डिवाइस पर सेव करने का विकल्प चुनो। और भी कुछ था। 
 
तकनीकी लफड़े पता नहीं क्या लेकिन मुझे लगता है कि फेसबुक के पास चैट सेव करने के लिए जगह की कमी हो रही होगी। तभी यह फीचर शुरू हुआ। जगह की कमी हर जगह हो रही है। आने वाले समय समय में डाटा से जुड़ी कम्पनियों की बड़ी चुनौती अपने डाटा को बचाने की होगी। किसी तकनीकी गड़बड़ी से किसी का डाटा लीक हो जाएगा, किसी का खो जाएगा, किसी के यहां डाटा डकैती हो जाएगी। 
 
कभी राजे-महाराजे दूसरे देशों पर हमले करते थे जमीन पर कब्जा करने के लिये। आने वाले समय में डाटा पर कब्जे के लिए आक्रमण होंगे। ज्यादा डाटा कब्जे में रखने वाले 'डाटा सम्राट' कहलायेंगे। 
 
फेसबुक पर अपन पिछले लगभग 15 साल से हैं। तमाम  लिखाई यहीं हुई। इसके पहले ब्लॉग पर लिखाई हुई  छह साल। इसी सब  को इकट्ठा करके किताबें बनी। अभी भी कई किताबों का मसाला जमा है यहां। जब मन आएगा किताब बना लेंगे। कवर पेज लगा देंगे। लोग बधाई देंगे। कुछ लोग खरीद भी लेंगे। उनमें से भी कुछ लोग पढ़ भी लेंगे। कुछ लोग उनके बारे में लिखेंगे भी। 
 
किताबें तो जब लिखीं जाएंगी तब लिखी जाएंगी अभी तो बात फेसबुक की। मान लीजिए आज फेसबुक बंद हो जाये तो हमारा सारा लेखन खत्म हो जाएगा। दुनिया का कितना कूड़ा कम हो जाएगा। कुछ दिन हुड़केंगे, फिर शुरू हो जाएंगे।
 
तमाम लोगों को लगता होगा कि आज फेसबुक बंद हो गया तो क्या होगा। मुझे लगता है कुछ नहीं होगा। फेसबुक बंद हो जायेगा तो कोई नया माध्यम आएगा। लोग उसमें डूबेंगे। फेसबुक में आने वाले विज्ञापन कहीं  और खिसक जाएंगे। 
 
फेसबुक के हाल आजकल अखबार जैसे ही हो गए हैं। अखबार में आजकल विज्ञापन प्रधान हो गए हैं। शुरुआत से अंत तक विज्ञापन ही विज्ञापन। जगह बची तो खबर छिड़क दी गयी।
 
विज्ञापनों की भरमार के चलते ही आमलोगों की पोस्ट,  जो प्रायोजित नहीं हैं, कम।दिखती हैं। भुगतान देकर छपने वाली खबरें विज्ञापन वीआईपी सीट पर आगे आते हैं। सामान्य पोस्ट पीछे की सीट पर। इन सामाजिक मीडियाओं की सेटिंग ऐसी कर दी गयी होगी कि ऐसी पोस्टें ऊपर रहें जिनसे उनको फायदा हो। इसी कड़ी में और भी तमाम इंतजाम किए गए होंगे। 
 
इसलिए जिन लोगों को लगता है कि उनकी पोस्ट कम लोगों तक पहुंच रही है उनको यह भी समझना चाहिए कि कोई भी सुविधा मुफ्त नहीं रहती बहुत दिन तक। हर चीज की कीमत चुकानी पड़ती है। बड़े गणित के बहुत छोटे अंश हैं हम लोग। 
 
ज्यादा हलकान न हों, मस्त रहें। लिखते रहें, रचते रहें। जो रचेगा ,सो बचेगा। माध्यम तो बदलते रहते हैं।
 
मेरी पसंद
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चाहता तो बच सकता था 
मगर कैसे बच सकता था 
जो बचेगा 
कैसे रचेगा 
 
पहले मैं झुलसा 
फिर धधका 
चिटखने लगा 
कराह सकता था 
मगर कैसे कराह सकता था 
जो कराहेगा 
कैसे निबाहेगा 
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न यह शहादत थी 
न यह उत्सर्ग था 
न यह आत्मपीड़न था 
न यह सज़ा थी 
तब 
क्या था यह 
किसी के मत्थे मढ़ सकता था 
मगर कैसे मढ़ सकता था 
जो मढ़ेगा कैसे गढ़ेगा।
 
-श्रीकांत वर्मा

Published: 07-03-2024

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