कुछ साल पहले तक बच्चों का खिलौना रहा ड्रोन देश में नयी डिजिटल क्रांति का सूत्रधार बन जायेगा और रोजगार का नया दरवाजा खोल देगा ये किसे पता था. बिना पायलट के इस हवाई जहाज, जिसे जमीन से नियंत्रित किया जाये, ने जो मिनिमम गवर्नेंस और ईज ऑफ़ लिविंग के क्षेत्र में सुधार की आस जगा दी है वो आधारहीन नहीं है.
राजधानी दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित हुए दो दिवसीय ‘भारत ड्रोन महोत्सव’ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने डिजिटल क्रांति की ऐसी तस्वीर पेश की है जिस से प्रभावित होकर उन्हें यह कहना पड़ा कि आने वाले समय में मेरा सपना है कि हर हाथ में स्मार्ट फोन, हर खेत में ड्रोन और हर घर में हो समृद्धि. यही वजह है कि मोदी सरकार ने इस नए पनपते सेक्टर को बीज, खाद, पानी देने का निश्चय कर लिया है. इसे देखते हुए ये कहना अतिशयोक्ति न होगी आने वाले समय में कंप्यूटर, लैपटॉप, टेबलेट, मोबाइल की तरह ड्रोन भी आम जनजीवन का हिस्सा बन जायेगा.
यूँ तो दुनिया के ताकतवर देशों ने इस हवाई रोबोट का प्रयोग पहले पहल जासूसी और सामरिक उपयोग के उपकरणों को लाने ले जाने के लिए किया था. इसलिए इसके उपयोग को लेकर आशंकाएं थीं कि ड्रोन हमारी सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है. पर धीरे धीरे जब इसके शांतिपूर्ण कार्यों में प्रयोग की संभावनाएं सामने आयीं तो इसे लेकर नए उत्साह का माहौल बनना शुरू हो गया. पहले हमारे देश में ड्रोन का केवल आयात ही होता था. पर अब भारत में ही ढाई सौ से ऊपर कम्पनियाँ ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में कदम रख चुकी हैं. उस पर मोदी सरकार ने ड्रोन के आयात पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा कर स्वदेशी कंपनियों को संजीवनी परदान कर दी है.
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में एक वैज्ञानिक से बातचीत के हवाले से एक ऐसी व्यावहारिक बात कही कि ड्रोन से देश में दालों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है. दालों की फसल किसान की लम्बाई से ऊपर निकल जाती है. ऐसे में उन पर दवा छिड़कने में किसान हिचकता है कि कहीं उसकी सेहत को नुक्सान न हो और इसलिए दालों की फसल उगाने का झंझट ही मोल नहीं लेता. पर यही काम अगर ड्रोन के माध्यम से किया जाये तो सेहत का धर्मसंकट समाप्त हो जायेगा. यही नहीं ड्रोन को इतना स्मार्ट बना दिया जायेगा कि वो केवल बीमार पौधों को पहचान कर उन्हीं पर दवा छिडके. यही तरीका फलों की बागवानी में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. छोटे और मझोले किसानों के लिए यह युक्ति वरदान साबित हो सकती है.
देश में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन की पैमाइश भी कागज, कलम, खसरा, खतौनी सब लेखपाल, पटवारी और प्रशासनिक अमले का हवाले सदियों से है. सेंटर फॉर देवेलोपिंग इंटेलिजेंट सिस्टम्स आई आई टी कानपुर के साथ मिल कर आरव अन्मेंड सिस्टम्स द्वारा तैयार ड्रोन अब तक देश के ५५ लाख एकड़ क्षेत्र की मैपिंग कर चूका है. देहातों में ज्यादातर झगडे जमीन को लेकर ही होते हैं जो अक्सर पीढ़ियों तक चलते हैं और कभी कभी खूनी रंग भी अख्तियार कर लेते हैं. ड्रोन अगर हमारी जमीन की सटीक नाप जोख कर लेता है तो यह देश में एक क्रन्तिकारी बदलाव का वाहक बन सकता है. मोदी सरकार की एक योजना गांवों में आवास का दस्तावेज घरौनी देने की भी है. उस दिशा में भी ड्रोन की नाप जोख सटीक लेखा जुटाने में मददगार साबित हो सकती है. भारत सरकार स्वामित्व योजना के हिस्से के रूप में भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप देने, खदानों तथा राजमार्ग निर्माण में ड्रोन सर्वेक्षण के उपयोग को अनिवार्य करने और कृषि में बदलाव के लिए ड्रोन शक्ति व किसान ड्रोन पहल को बढ़ावा देने के क्रम में ड्रोन के व्यापक उपयोग के माध्यम से इस तकनीक का प्रारंभिक उपयोग शुरू भी कर चुकी है.
गैर सैन्य विकास कार्यों में ड्रोन क्या कमाल दिखा सकता है इसकी एक पूरी सूची सामने है. कृषि क्षेत्र में फसलों की निगरानी, प्रबंधन और नुक्सान के आंकलन में तो इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होने जा ही रही है. ऊर्जा के क्षेत्र में साईट मोनिटरिंग, ट्रांसमिशन लाइन का रोड माप भी ड्रोन कर सकता है. ढांचागत विकास के लिए ३ डी वीडियो मैपिंग, लैंड ऑडिट, टाउन प्लानिंग में सहयोग का काम इस से लिया जा सकता है. थर्मल इमेजिंग से खनन के क्षेत्र में नयी संभावनाओं का पाता लगाया जा सकता है. मीडिया और एंटरटेनमेंट के अखाड़े में वीडियोग्राफी, फोटोग्राफी और सिनेमेटोग्राफी में भी ड्रोन नए रंग भर सकता है. फसल बीमा के क्षेत्र में ये बखूबी सही नुक्सान का आकलन कर सकता है बल्कि झूठे दावों की पोल खोल सकता है.
इन सब से ऊपर प्राकृतिक आपदाओं के समय तो ड्रोन वरदान साबित हो सकता है. २०१३ की केदारनाथ में आयी आपदा की सिहरन आज तक बाकी है. आपदा से हुए नुक्सान के आंकड़े जुटाने और स्थिति पर निगरानी रखने में ड्रोन का सहारा बेहद कारगर होगा. आज उत्तराखंड का ड्रोन एप्लीकेशन एंड रिसर्च सेंटर ने देश में एक ऐसे अनूठे नभ नेत्र का आविष्कार किया है जो एक मोबाइल ग्राउंड कण्ट्रोल स्टेशन है. आवश्यकता आविष्कार की जननी है. तो ऐसे स्टेशन की जरूरत पिच्छले साल आयी चमोली आपदा के समय महसूस हुई जब ड्रोन को लांच करने और देता को तेजी से प्रोसेस करने में समस्याएँ सामने आयीं. इस नभ नेत्र की विशेषता यह होगी कि इन्टरनेट न होने की स्थिति में ये उपग्रह के माध्यम से भी काम कर सकता है और इसे आपदा प्रभावित क्षेत्रों में ले जाया जा सकता है.
हेल्थ सेक्टर में जाम से कराहते शहरों और दुर्गम इलाकों में ड्रोन दवाइयाँ, उपकरण तो पहुंचा ही सकता है जरूरत पड़ने पर एम्बुलेंस का भी काम कर सकता है. ड्रोन उन जगहों पर भी जा सकता है जहाँ हेलीकाप्टर नहीं जा सकता है. शहरी आवागमन में भी आई आई टी मद्रास के स्टार्ट अप द ई प्लेन कम्पनी ने ड्रोन आधारित इलेक्ट्रिक फ्लाइंग टैक्सी बनायी है. तवो सीटर यह टैक्सी २०० किलोग्राम भार २०० किलोमीटर तक ले जा सकती है. महानगरों में भीषण जाम से मुक्ति पाने लिए क्या पाता आने वाले समय में लोगों हाईवे, रेलवे, एयर वे का एक और शानदार विकल्प मिल जाये.
इस हवाई चिड़िया ने कारोबार और रोजगार के क्षेत्र में भी अपने पंख फैला दिए हैं. भारत सरकार ने ड्रोन के कलपुर्जे आयात करने की अनुमति दी है. घरेलु निर्माण को बढ़ावा देने के लिए शोध और विकास, रक्षा और सुरक्षा के अलावा ड्रोन के आयात पर रोक लगाई हुई है. अभी बेशक देश में ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में भारत की इकाइयों का टर्न ओवर केवल ८० करोड़ रुपये ही है पर अगले तीन साल इस में यह कारोबार सौ गुणा बढ़ सकता है. इसमें निवेश का आंकड़ा ५ हज़ार करोड़ को पर कर सकता है. इस सेक्टर में सीधे तौर पर १० हज़ार रोजगार के अवसर सामने हैं और जसमे १० लाख रोजगार के अवसर सृजित हो सकते हैं. मोटा अनुमान है कि हार्डवेयर, सॉफ्टवेर और सर्विसेज सेक्टर में ड्रोन का कारोबार ३ लाख करोड़ रुपयों तक पहुँच सकता है.
इस में कोई शक नहीं कि ड्रोन तकनीक अभी अपने शैशव काल में है लेकिन यह भी सच है कि संभावनाएं अनंत हैं. व्यापारी और उपभोक्ता दोनों के लिए कुल जमा ये एक फायदे का ही सौदा है. सार्वजनिक और निजी भागीदारी इस आधुनिकतम उद्योग में जान फूंक सकती है. भविष्य में ड्रोन के कल पुर्जों के निर्माण जिसमे बैटरी, मोटर, इलेक्ट्रो ऑप्टिक्स और सेंसर शामिल हैं को बढ़ावा देकर भारत को इस क्षेत्र में दुनिया को प्रतिस्पर्धा देने लायक बनाया जा सकता है.