सिखों के दूसरे गुरु साहिब श्री गुरू अंगद देव जी महाराज का प्रकाश पर्व ऐतिहासिक गुरूद्वारा नाका हिंडोला में गत 1 मई को मनाया गया. सायंकालीन कार्यक्रम के प्रारंभ में रहिरास साहिब जी का पाठ व भाई राजिन्दर सिंह जी के शबद कीर्तन, गायन एवं नाम सिमरन ने संगत को निहाल कर दिया. उसके बाद ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने श्री गुरू अंगद देव जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गुरू अंगद देव जी का जीवन बहुत रहस्यमयी था इनका पहले नाम भाई लाहिणा था.
वे देवी के पुजारी थे और एक सिख से श्री गुरू नानक देव जी की वाणी सुनकर गुरू जी के दर्शन की अभिलाषा से करतारपुर आकर उन्होंने गुरू जी के दर्शन किये और दर्शन के बाद दिन रात सेवा सिमरन में लगे रहना ही उनके जीवन का मुख्य ध्येय हो गया. श्री गुरू नानक देव जी ने कई बार परीक्षा ली पर वे हर बार परीक्षा में सफल होते रहे. इनकी नम्रता एवं सेवा सिमरन को देखते हुए श्री गुरूनानक देव जी ने भाई लाहिणा जी को गुरू गद्दी सौंप दी और तब भाई लाहिणा से वे गुरू अंगद देव कहलाये.
गुरु अंगद देव जी के 62 शबद श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं. गुरूमुखी लिपि की एक वर्णमाला तथा बच्चों की शिक्षा हेतु उन्होंने विद्यालय व साहित्य केन्द्रों की स्थापना भी की. नवयुवकों के लिए उन्होंने मल्ल-अखाड़ा की प्रथा शुरू की. गुरू जी के जीवन से हमको यह प्रेरणा मिलती है कि सेवा व सिमरन करने से ही मानव का कल्याण होता है. इस अवसर पर भाई नवनीत सिंह जी हजूरी रागी गुरुद्वारा कैंट, लखनऊ वालों ने शबद इह जग सचै की है कोठड़ी सचे का विच वास गायन कर उपस्थित संगत को मंत्रमुग्ध कर दिया. कार्यक्रम समाप्ति पर आरती, गायन व श्री गुरू ग्रंथ साहिब पर फूलों की वर्षा हुई. इस अवसर पर दशमेश सेवा सोसाइटी के सदस्यों द्वारा गुरू का लंगर श्रद्धालुओं में वितरित किया गया.