पुतिन की इस भारत-यात्रा की निंदा ना तो अमेरिका ने की है, और ना ही चीन ने। हाँ, रुसी विदेश मंत्री सर्गेइ लावरोव ने ये कहा कि अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम ख़रीदे। अमेरिका के इस प्रतिबंध को भारत ने नहीं माना और इतना ही नहीं उसने इस यात्रा के दौरान रूस के साथ एक सामरिक समझौता भी किया है, जिसके तहत भारत और रूस मिलकर छः लाख से भी ज्यादा एके-203 राइफलें बनाएंगे। एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम की कीमत 5.4 बिलियन डॉलर है और अगले कुछ हफ़्तों में ही ये भारतीय वायुसेना को सुसज्जित करना शुरू कर देंगे। राइफलों के निर्माण पर भारत 5100 करोड़ रुपये खर्च करेगा।
रुसी विदेश मंत्री लावरोव और रक्षा मंत्री सर्गेइशोइगु ने भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री जयशंकर से भी लम्बा संवाद किया। लावरोव ने दो मुद्दे उठाये। एक अफ़ग़ानिस्तान का और दूसरा अमेरिकी 'क्वाड' का भी। अफ़ग़ानिस्तान के सवाल पर मोदी और पुतिन ने अपनी नीतियों और रवैयों में काफी समानता पायी। दोनों रुसी नेताओं ने तालिबान शासन को सर्वसमावेशी बनाने का समर्थन किया, आतंकवाद के खात्मे की मांग की और अफ़ग़ान जनता की मदद की जरूरत पर जोर दिया। अफ़ग़ानिस्तान के मामले में भारत की नीति काफी संकोच ग्रस्त रही है।
इस भारत-यात्रा दौरान दोनों देशों के बीच 28 समझौते हुए हैं। भारत और रूस के बीच प्रतिरक्षा समझौते और सौदे तो पिछले कई दशकों से होते रहे हैं। शीत युद्ध के दौर में पाकिस्तान को अमेरिका और चीनी अस्त्र-शस्त्र तथा सहायता दान में मिलती रहती थी जबकि भारत तो रूस का सबसे बड़ा सामरिक खरीददार रहा है। अब भी सामरिक खरीद में विविधता आजाने के बावजूद भारत के लगभग 60% अस्त्र-शस्त्र रुसी मूल के ही हैं। अब भारत और रूस, दोनों ने इच्छा प्रकट की है कि वे ऊर्जा, नदी-नहर निर्माण, खाद, स्टील, कोयला-उत्पादक, जहाज-निर्माण आदि क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग करेंगे।
2020 में भारत-रूस व्यापार 9.31 बिलियन डॉलर रहा। जबकि चीन-रूस व्यापार उससे 10 गुना से ज्यादा है। जनवरी 2021 से जून 2021 तक यह 5.23 बिलियन डॉलर रहा। भारत-चीन व्यापार भी कई गुना ज्यादा हैं। यह ठीक है कि रूस अपने हथियार बेचने को इतना व्यग्र है कि अत्यंत व्यस्तता के बावजूद पुतिन सिर्फ 6 घंटे के लिए ही भारत दौड़े चले आये लेकिन मोदी और पुतिन को चाहिए था कि आपसी व्यापार बढ़ाने के लिए विशेष प्रयास करते।