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नेपाल में राजशाही का वनवास : समाप्ति की ओर

नेपाल में चौदह बरस के वनवास के बाद क्या राजा की वापसी और हिंदू राष्ट्र की बहाली की हवाएं फिर बहने लगी है ? काठमांडू में हिंदू राष्ट्र की बहाली को लेकर हाल में प्रदर्शनों का सिलसिला और चीन समर्थक घोर वामपंथी दीवार में दरार तो कुछ ऐसा ही संकेत करती नजर आ रही है.

समाप्ति की ओर समाप्ति की ओर
Author
बसंत कनोजिया

काठमांडू , 26-06-2021


 नेपाल में चौदह बरस के वनवास के बाद क्या राजा की वापसी और हिंदू राष्ट्र की बहाली की हवाएं फिर बहने लगी है ? काठमांडू में हिंदू राष्ट्र की बहाली को लेकर हाल में प्रदर्शनों का सिलसिला और चीन समर्थक घोर वामपंथी दीवार में दरार तो कुछ ऐसा ही संकेत करती नजर आ रही है.

नेपाल की राजनीति में साल भर से जारी उथल पुथल और प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की तलवार की धार पर टिकी सरकार महीना भर पहले राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के संवैधानिक कवच के सहारे अभी तक अपने पद पर तो कायम है. मगर इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने गये ओली विरोधी खेमे को परसों सर्वोच्च न्यायाधीश ने राहत देकर ओली सरकार को एक झटका दे दिया है. राष्ट्रपति ने बीती 24 मई को संसद में अपना बहुमत सिद्ध न कर पाने के कारण ओली सरकार को भंग तो कर दिया था लेकिन चूंकि सात दिन के निर्धारित समय में विरोधी पक्ष भी अपना बहुमत सिद्ध नहीं कर पाया था. इसलिये इसी साल नवंबर में चुनाव होने तक पांच मंत्रियों के साथ ओली को कामचलाऊ प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था.

परंतु ओली ने चालाकी के साथ विपक्षी दलों में तोड़फोड़ करके जिन 20 और सांसदों को मंत्रिपद की लालीपाप देकर अपने कार्यकाल को अभय प्रदान करने का प्रयास किया था उसे सर्वोच्च न्यायालय ने यह कह कर खारिज कर दिया कि ओली को चुनाव कराने के लिये कामचलाऊ प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था इसलिये वो मंत्रिपद की रेवड़ियाँ बांट कर सांसदों को अपने पाले में लाने की जुगत नहीं भिड़ा सकते. यह एक तरह की रिश्वत होगी और संविधान की मूल भावना के विपरीत होगा. यह निर्णय ओली सरकार के लिये बड़ा झटका माना जा रहा है और संसद को भंग किये जाने की वैधानिकता पर बहस अभी जारी है.

संसद का अंतिम निर्णय जो भी हो उसकी प्रतीक्षा रहेगी. परंतु नेपाल की राजनीति में संवत 2064 में यानी आज से 14 बरस पहले राजशाही को समाप्त करने के लिये जो संविधान बना और उसके आधार पर हिंदू राष्ट्र को कम्युनिस्ट किला बनाने का प्रयास चीन की सरपरस्ती में किया गया था अब उससे नेपाली जनता तंग नजर आने लगी है. उससे भी बड़ी बात ये हुई है कि जो सी पी एन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर के नेता पुष्पकमल दहल प्रचंड कभी के पी शर्मा ओली के साथ कंधे से कंधा मिला कर उन्हें सत्ता की बागडोर थमाने वाले सारथी रहे थे वही अब जनता के बीच यह कह रहे हैं कि ऐसे शासन से तो राजशाही ही अच्छी थी. उन्होंने ओली पर सर्वोच्च न्यायालय को धमकाने का आरोप भी लगाया है. इस पर राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता राजेन्द्र लिंगदेन ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि चलो अच्छा है पुष्पकमल दहल को राजा की प्रासंगिकता का आत्मबोध तो हुआ. आज की तारीख में नेपाल के 275 सदस्यीय सदन में ओली की पार्टी 121 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी तो है मगर अब प्रचंड के नेतृत्व में दो दर्जन से ज्यादा सदस्य इससे टूट कर बाहर आ चुके हैं.

सच तो ये है कि आज नेपाल की राजशाही समर्थक कमल थापा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जिसका वजूद अभी कमजोर है पर उसके साथ ओली मंत्रिमंडल में मंत्री रहे भारत की ग्वालियर रियासत के महाराजा सिंधिया के दामाद पशुपति शमशेर राणा का आना एक बड़ी घटना माना जा रहा है. उनके अलावा नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड, कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के नेता माधव कुमार नेपाल, जनता समाजबादी पार्टी नेपाल के उपेन्द्र यादव, जनमोर्चा के दुर्गा पाउडेल और नेपाली कांग्रेस के प्रकाश शरण महत प्रधानमंत्री ओली के विरुद्ध मोर्चा खोले हुए हैं. समाजबादी पार्टी से अलग होकर ओेली के मंत्रिपद के जाल में फंसने वाले महंत ठाकुर को बाबूराम भट्टराई और उपेन्द्र यादव ने पार्टी से निकाल कर पैदल कर दिया है और अब वो न घर के न घाट के रह गये हैं।

नेपाली जनमानस को भांपते हुए अब पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र वीर विक्रम शाह भी सक्रिय हुए हैं और समय समय पर जनता के बीच कह रहे हैं कि नेपाल को इस संकट से वही उबार सकते हैं. कम्युनिस्ट चीन के झांसे और प्रलोभन में आने के कारण न केवल नेपाल इस गति को प्राप्त हुआ है बल्कि उसने सदियों पुराने अपने भरोसेमंद पड़ोसी भारत का भरोसा गंवाया है. नेपाल की सभ्यता और संस्कृति भारत से न केवल एकरस है बल्कि भारत के केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के शब्दों में भारत और नेपाल के संबंध रोटी और बेटी के संबंध हैं. गोरखपुर की गोरक्षनाथ पीठ नेपालियों के लिये पूज्यनीय रही है तो काठमांडु का पशुपतिनाथ मंदिर करोड़ों भारतीयों की आस्था का पावन केन्द्र रहा है.

इस बदलती हवा के बावजूद आशंकाओं के बादल अब भी नेपाल की राजनीति में मंडरा रहे हैं। सुनने में आया है कि राजनीति के नटवरलाल कहे जाने वाले और सत्ता के लिए साम दाम दंड भेद के पुजारी कामचलाऊ प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली चारों तरफ से अपने को घिरा पाकर आपातकाल का ऐलान भी कर सकते हैं. पर ये भी सच है कि जनता जब मन बना लेती है तो ऐसे प्रयास सदैव घराशायी ही हुए हैं.


Published: 26-06-2021

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