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नेपाल में संसद भंग : विपक्ष को निर्णय पसंद नहीं

राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने नेपाल की संसद भंग करके नवम्बर में चुनाव कराने का चौंकाने वाला निर्णय यह कह कर लिया कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली या विपक्षी गठबंधन के नेता शेर बहादुर देउबा दोनों में से कोई डेडलाइन तक सरकार बनाने लायक समर्थन जुटाने की स्थिति में नहीं था इसलिए ये कदम उठाना पड़ा. पर विपक्षी गठबंधन एक बार फिर राष्ट्रपति के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा.

विपक्ष को निर्णय पसंद नहीं विपक्ष को निर्णय पसंद नहीं
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बसंत कनोजिया

काठमांडू , 24-05-2021


नेपाल में पांच महीने में दूसरी बार शनिवार 22 मई को प्रधानमंत्री ने हाउस आफ रिप्रेसेंटेटिव को भंग करके हिमालय की गोद में बसे भारत के पड़ोसी देश में अस्थिरता पर मोहर लगा दी है. राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने यह चौंकाने वाला निर्णय यह कह कर लिया कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली या विपक्षी गठबंधन के नेता शेर बहादुर देउबा दोनों में से कोई शुक्रवार की डेडलाइन तक सरकार बनाने लायक समर्थन जुटाने की स्थिति में नहीं था इसलिए ये कदम उठाना पड़ा. अब विपक्षी गठबंधन एक बार फिर राष्ट्रपति के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा.

संविधान के आर्टिकल 76 का हवाला देकर किये गए राष्ट्रपति के इस निर्णय के अनुसार संसद को भंग करके छह माह के अंदर चुनाव कराये जायेंगे. चुनाव का पहला चरण 12 नवम्बर को और दूसरा चरण 19 नवम्बर को संपन्न होगा. ओली कैबिनेट की सिफारिश पर किये गए निर्णय में राष्ट्रपति भंडारी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि जिन्होंने विपक्षी गठबंधन को वोट करके उनकी सरकार को अस्थिर किया वो तो उनके समर्थक हैं. राष्ट्रपति के इस निर्णय ने नेपाल को उसी तरह राजनीतिक संकट के भंवर में ढकेल दिया है जैसा दिसम्बर 2020 में ओली की सिफारिश पर संसद को भंग किये जाने के बाद हुआ था. इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

विपक्ष ने कहा है कि संसद में विश्वासमत खोने के बाद ओली के पास संसद को दुबारा भंग करने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं रह जाता है. नेपाल के पांच विपक्षी नेताओं ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि प्रधानमंत्री ने ऐसे समय में देश को गहरे संकट में फंसा दिया है जब नेपाली जनता महामारी की मार से कराह रही है. कायदे से ऐसी हालत में राष्ट्रपति को आर्टिकल 76 (5) के अनुसार 275 सांसदों में से अधिकांश के हस्ताक्षर हासिल करके नये राष्ट्रपति की नियुक्ति की जानी चाहिये थी ताकि वो निष्पक्ष चुनाव करा सकें. इसके बजाय राष्ट्रपति ने दुर्भावनापूर्ण तरीके से ओली से हाथ मिला कर लोकतंत्र और संविधान पर हमला किया है.

विपक्ष ने राष्ट्रपति के इस कदम को मनमाना, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कहा है. विपक्ष के इस संयुक्त वक्तव्य पर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा, कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड, कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) के नेता माधव कुमार नेपाल, जनता समाजबादी पार्टी नेपाल के उपेन्द्र यादव, और जनमोर्चा के दुर्गा पाउडेल और नेपाली कांग्रेस विपक्ष के प्रकाश शरण महत के हस्ताक्षर हैं. इन विपक्षी नेताओं ने इस कदम के विरोध में राजनीतिक और कानूनी लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है.

ओली ने दावा किया था कि कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल (यूएमएल) के 121 सदस्य हैं और उन्हें जनता समाजबादी पार्टी नेपाल के 32 सांसदों का समर्थन हासिल है इसलिये उन्हें प्रधानमंत्री पद पर दुबारा नियुक्त किया जाना चाहिये. पर राष्ट्रपति के कार्यालय से जारी वक्तव्य में कहा गया कि कम्युनिस्ट पार्टी आफ नेपाल (यूएमएल) के 26 और जनता समाजबादी पार्टी के 12 सांसदों ने ओली और देउबा दोनों को वोट किया था इसलिये ओली और देउबा दोनों में से कोई भी बहुमत साबित कर पाने में सक्षम नहीं है. इसके बावजूद ओली का कहना है कि नये चुनाव नेपाल की राजनीति में आयी अस्थिरता को दूर कर देंगे और महामारी के बावजूद चुनाव कराने में कोई परेशानी सामने नहीं आयेगी।


Published: 24-05-2021

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