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नेताओं का दम कब घुटता है, जनता जानती है

<p>&nbsp;राजेश श्रीवास्तव</p> <div>अभी सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी मंे दो दिन पहले आने वाले कांग्रेस के नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने सपा में शामिल होते वक्त पत्रकारों से कहा कि उनका कांग्रेस में लंबे समय से दम घुट रहा था, इसीलिए उन्होंने सपा की सदस्यता ले

नेताओं का दम कब घुटता है, जनता जानती है
नेताओं का दम कब घुटता है, जनता जानती है

 राजेश श्रीवास्तव

अभी सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी मंे दो दिन पहले आने वाले कांग्रेस के नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने सपा में शामिल होते वक्त पत्रकारों से कहा कि उनका कांग्रेस में लंबे समय से दम घुट रहा था, इसीलिए उन्होंने सपा की सदस्यता ले ली। बेनी इकलौते ऐसे नेता नहीं हैं जब उन्होंने यह बयान दिया। इसके पहले भी कई नेताओं ने इस तरह के बयान जारी किए। जब-जब कोई नेता अपनेे राजनीतिक दल से पाला बदलता है तो इसी तरह का बयान देता है। बेनी से पहले भी कई बड़े सूरमाओं ने पाला बदला तो यही टिप्पणी की। भाजपा से गये कल्याण सिंह ने जब अपनी पार्टी छोड़कर दोबारा भाजपा की शरण ली तो यही कहा कि बाहरी राजनीति में दम घुटने लगा था, इसीलिए घर वापसी कर रहा हूं। यही बयान कमोवेश उमा भारती का भी था। नरेश अग्रवाल ने अब तक तीन-चार बार पाला बदला। हर बार यही बयान दिया कि अमुक पार्टी में मेरा दम घुट रहा था। मैं वहां कोई काम नहीं कर रहा था। लेकिन जनता बहुत समझदार है। वह बखूबी जानती है कि उनके नेताजी का दम किस वजह से घुट रहा है और वह समय-समय पर इसके दम घुटने का इलाज भी करती है।
बेनी प्रसाद वर्मा के साथ आए किरण पाल की क्या सियासी मजबूरी थी कि उन्हांेने पाला बदला यह किसी से छिपा नहीं है। सर्वव्यापी है। नेताओं की यह सियासी पैतरेबाजी से अब देश की जनता बखूबी वाकिफ हो चुकी है। नेताओं के रटे-रटाये बयान अब जनता को बखूबी याद हो गये हैं। अब तो जनता इतना समझती है कि किस पार्टी से जाने वाले नेता क्या बयान देंगे, यह भी उसे मालुम रहता है। समाजवादी पार्टी से जब भी कोई नेता बाहर जाता है तो वह परिवार वाद की वजह से अपनी पार्टी छोड़ने की वजह बताता है। तो बसपा छोड़ने वाला तानाशाही रवैये से तंग होकर पार्टी छोड़ता है। भाजपा छोड़ने वाला अपने का सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने वाला बताता है तो कांग्रेस छोड़ने वाला बताता है कि उसके पास करने के लिए कुछ नहीं है, वहां उसका दम घुट रहा है। क्या यह उस पार्टी में जाने के समय नेता को भान नहीं होता है, नेता इतना मासूम भी नहीं होता है। बेनी जब सपा छोड़कर गये थ्ो तो भी उन्होंने गंभीर आरोप लगाया था। अब जब कांग्रेस छोड़कर आये हैं तो भी आरोप लगा रहे हैं। सब जनता को ही समझाने मंे अपनी ताकत खर्च करते हैं। हाल-फिलहाल साइकिल की सवारी को तैयार एक दिग्गज नेता भी आजकल नेताजी और मुख्यमंत्री की मिजाजपुर्सी में लगे हैं और बताते हैं कि वह पार्टी में रहंे या न रहें नेताजी के दिल में रहते हैं। नेताओं को समझना होगा कि जनता निरी मूर्ख नहीं है, वह समझती है। समझना अब नेताओं को होगा कि वह दल-बदल से बचें। क्योंकि सियासी गणित जितना वह समझते हैं उससे कहीं ज्यादा सूबे और देश की जनता। इसीलिए अधिकतर पाला बदलने वाले नेताओं को सियासत मंे बहुत ऊंचाई आज तक हासिल नहीं हुई। हम तो यही कह सकते हैं दम आपका घुटे तो घुटता रहे, ये पब्लिक है, यह सब जानती है।

Published: 15-05-2016

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