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दूसरी हरित क्रांति को रोकना उचित होगा क्या

रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : पंजाब के किसानों के आंदोलन से देश को कई सबक सीख लेने का समय आ गया है. एक तो ये कि राजनीति जहां टी 20 क्रिकेट मैच की तरह छोटा खेला है वहां अर्थशास्त्र पांच दिवसीय मैच के माफिक पिच पर लम्बा टिकने का खेल है. वर्तमान में प

दूसरी हरित क्रांति को रोकना उचित होगा क्या दूसरी हरित क्रांति को रोकना उचित होगा क्या

रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : पंजाब के किसानों के आंदोलन से देश को कई सबक सीख लेने का समय आ गया है. एक तो ये कि राजनीति जहां टी 20 क्रिकेट मैच की तरह छोटा खेला है वहां अर्थशास्त्र पांच दिवसीय मैच के माफिक पिच पर लम्बा टिकने का खेल है. वर्तमान में पंजाब के किसान जहां टी 20 मैच खेल रहे हैं वहां सरकार फाइव डे गेम खेलने का प्रयास कर रही है. जाहिर ये मुकाबला दोनों के लिये बेवजह तो है ही दर्शक दीर्घा में बैठे लोगों के लिये उबाऊ और निरर्थक सा प्रतीत हो रहा है. इस आंदोलन का दूसरा सबक ये है कि लोकतंत्र में सुधार एक कष्टकारी प्रक्रिया है. इसीलिये एक रुपये किलो चावल देने का वायदा करने वाला राजनीतिक दल आसानी से सुधारवादी दृष्टिकोण रखने वाले दल को जमीन सुंघा देता है. इसलिये सुधारवादी राजनीतिक दल भी सियासी कामयाबी के लिये वास्तविक सुधार करने के बजाय सुधार के आइडिये को बेचने में अपनी सारी उर्जा खर्च करने को मजबूर हैं. देश के सुधारवादी राजनीतिक दल इसीलिये 1991 के बाद से 29 सालों में सुधार के बजाय सुधार का झुनझुना बजाना ज्यादा कारगर और सुविधाजनक मानते रहे हैं. यही वजह है कि इन बारीकियों से बेखबर आम आदमी बाजार और व्यापार का अंतर समझ पाने में सक्षम नहीं हो पाता और आमतौर से यह मान कर चलता है कि सुधारों से रईस और ज्यादा रईस और गरीब और गरीब होता है. जबकि इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि व्यवहार में ऐसा होता नहीं है. जनता से संवाद कायम करने वाले विश्व के श्रेष्ठ नेताओं में से एक माने जाने वाले भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी ऐसा लगता है कि इस भावना को हल्के में ले गये. शायद इसीलिये मोदी सरकार ने जून 2020 में संसद में तीन कृषि सुधार कानूनों को बहुमत के दबदबे से बुलडोज तो करा ले गये. पर इन कानूनों को संसद में पास कराने से पहले देशव्यापी समर्थन की परवाह नहीं की. मोदी सरकार ने न केवल संवैधानिक ताकत के अंहकार में इस मामले में विपक्ष को नजरंदाज किया बल्कि राज्यों और किसान संगठनों का भरोसा जीतने की भी जरूरत नहीं समझी. या जनमत जुटाया भी तो वो काफी नहीं था. इससे झूठी अफवाहें फैलाने वालों को भी अवसर मिल गया कि सरकार खेती किसानी कारपोरेट घरानों की गोद में डालने जा रही है, कि किसान की जमीन छिन जायेगी. कि न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रणाली यानी एमएसपी और राजसहायता से किसानों को हाथ धोना पड़ेगा. पर मोदी सरकार के पास अभी भी मौका है इस नुकसान की भरपाई करने का क्योंकि लोगों का भरोसा अभी भी मोदी में कायम है. प्रधानमंत्री ने अपने नवम्बर की मन की बात और वाराणसी में देव दीपावली पर भरसक ये प्रयास किया लोगों को समझाने का कि कृषि कानूनों से आम छोटे और मझोले किसानों को फायदा ही फायदा होना है. इस आंदोलन का तीसरा सबक है कि एक छोटा संगठित समूह धनबल के दम पर राष्ट्र के हितों का अपहरण कर सकता है और असंगठित बहुसंख्यक समूह असहाय सा मुंहबाये खड़ा टुकुर टुकुर ताकता रह सकता है. वास्तविकता ये है कि इस आंदोलन के पीछे आढ़तिये हैं, एपीएमसी मंडियों पर कब्जा जमाये बैठे ट्रेडर हैं जो सम्पन्न हैं. इन कानूनो के लागू होने से ऐसे ताकतवर बिचैलियों को हर साल मिलने वाली 1500 करोड़ रुपये की दलाली या यूं कहें कि कमीशन से हाथ धोना पड़ सकता है. या फिर पंजाब के वो कुलक या धनी किसान आंदोलन को हवा दे रहे हैं जिनकी संख्या नेशनल सैम्पुल सर्वे के अनुसार देश के कुल किसानों की 6 फीसदी है और वाहीअब तक एमएसपी प्रणाली की मलाई का सेवन करते आ रहे हैं. आढ़तिये और ये धनी जमींदार किसान दोनों को ताकतवर हैं. चुनावों में ये राजनीतिक दलों को चंदा ही नहीं देते खुद भी कुछ लोग राजनीति के अखाड़े में उतरे हुए हैं या फिर किसान संगठनों के मुखिया बने बैठे हैं. दरअसल ये तीन कृषि कानून किसानों को तीन तरह की आधारभूत आजादी देने वाले साबित हो सकते हैं. एक-किसान अपना कृषि उत्पाद कहीं भी किसी को बेच सकता है और वो अब अपना माल बेचने के लिये एपीएमसी मंडियों के गिरोह के चंगुल से आजाद होगा. दूसरी-अब अगर वो चाहे तो अपना माल स्टोर में रख सकता है क्योंकि आवश्यक वस्तु कानून की स्टाक लिमिट से उसे मुक्त कर दिया गया है. इससे कोल्ड स्टोरेज की सुविधा का नया द्वार उसके लिये खुल जायेगा. वो चाहे तो अपना माल सीधे कोल्ड स्टोरेज को भी बेच सकता है. तीसरी-किसान चाहे तो वायदा कारोबार अपना रिस्क व्यापारी को स्थानांतरित कर सकता है. साथ ही किसान को ये आजादी भी होगी कि वो अपनी ऊसर सा अप्रयोज्य भूमि मुनाफे में साझेदारी के आधार पर किसी कार्य के लिये किसी को पट्टे पर भी दे सकता है. वैसे भी नौकरी या व्यवसाय के लिये गांव छोड़ कर शहरों में चले गये लोग अरसे से अपनी कृषि योग्य भूमि आधबटाई पर देते चले आ रहे हैं. देखा जाये तो पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के कार्यकाल में अनाज संकट से निपटने के लिये बनायी गयी एग्रीकल्चर प्रोड्युस मार्केटिंग कमेटी की मंडियां अब न केवल अप्रासंगिक हो चली है बल्कि शोषक संस्था बन कर रह गयी हैं. ये किसानों को दबाव में लेकर उनका माल औने पौने दाम में खरीदने वाली गिरोहबंद संस्थाएं बन कर रह गयीं हैं. किसानों के सबसे बड़े नेता भी जीवन भर किसानों को मंडियों से आजाद कराने की बात कहते चले गए. कृषि कानूनों ने इन मंडियों के एकाधिकारवादी रवैये पर ही तो प्रहार किया है. इसका सबूत ये है कि जून में संसद में कानून पास होने के बाद जिस तरह से किसानों ने इन मंडियों के बाहर अपना माल बेचा है उससे मंडियों में होने वाला कारोबार घट कर 40 परसेंट रह गया है. देश के एक लाख से ऊपर किसानों ने जून से अब तक इन मंडियों के बहार नए कानूनों का लाभ उठा कर केन्द्रीय क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार एक लाख करोड़ से ऊपर रुपये से ऊपर कारोबार किया है. यही इन आढ़तियों और बिचैलियों की बौखलाहट का कारण है. अब जरूरत इस बात की है कि कृषि उत्पाद की स्थायी निर्यात नीति बनाई जाये. ये नहीं कि जब चाहा किसी कृषि उत्पाद के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जब चाहा हटा दिया. इसे एक शुभ संकेत कहा जायेगा कि सरकार और पंजाब के किसान संगठन बातचीत की टेबल पर आये. इन किसानों की एक मुख्य मांग एमएसपी को कानूनी रूप देने की थी पर किसानों को अब समझना चाहिये कि लकीर का फकीर बनने से क्या हासिल होगा. दरअसल वहां के किसानों का सारा फोकस गेंहू और चावल उगाने पर रहता है जबकि आज जनता की मांग प्रोटीन रिच दाल की है. इसी एमएसपी के चक्कर में पंजाब के किसान ज्यादा से ज्यादा चावल उगाते हैं जिसके लिये ज्यादा पानी चाहिये और पंजाब में दिनों दिन पानी की कमी होती जा रही है. पराली जलाने की समस्या से प्रदूषण अलग से लोगों को बीमार बना रहा है. किसान को आजादी मिलेगी तो वो खेती किसानी के पेशेवर तौर तरीके सीखेगा, उत्पादकता बढ़ा कर आय बढ़ाने का प्रयास करेगा. वैसे भी प्रति हेक्टर कृषि उत्पादन के मामले में भारत तीसरी दुनिया के देशों से भी बहुत पीछे है. चीन में भारत के मुकाबले आधी कृषि योग्य भूमि है पर उत्पादकता दोगुनी है. एक और बड़ी समस्या ये है कि भारत के 80 परसेंट किसानों के पास दो हेक्टेयर से भी कम जमीन है. वैज्ञानिक उपायों से छोटी जोत की उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है लेकिन उसमें पूंजी और तकनीक का समावेश करना होगा. सारी मुसीबत ये है कि छोटी जोत के किसान के पास इसके लिये पूंजी का अभाव है और सरकार के पास भी पैसों का कोई पेड़ नहीं लगा है. जाहिर है कि अगला सुधार ये होना चाहिये कि छोटी जोत वाले किसान अपनी जमीन को कृषि पेशेवरों को पट्टे पर दें और मुनाफे के आधार पर शेयर होल्डर बनें. वो चाहें तो अपनी जमीन के मालिक बने रह कर उसमें विशेषज्ञों की निगरानी में काम भी कर सकते हैं. देखा जाये तो देश में यह दूसरी हरित क्रांति हो सकती है. पर किसानों का यह डर बेबुनियाद है कि आने वाले समय में एमएसपी खत्म हो जायेगी। सरकार को किसानों को बस ये भरोसा दिलाना है कि फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत राशन की दुकानों में सप्लाई के लिये उसे चावल और गेंहू पर एमएसपी प्रणाली को हर हाल में जारी रखना है। कोविड 19 के संकट के दौरान खाद्य सुरक्षा प्रणाली ने चमत्कारिक काम किया है। कोई भी सरकार इस खाद्य सुरक्षा प्रणाली को खत्म नहीं कर सकती है। इसमें खतरा बस यही है कि कहीं खेती किसानों थैलीशाह कारपोरेट हाउसों की चेरी न बन जाये। इसका उत्तर किसानों की संगठित शक्ति में छिपा है. छोटे किसान अमूल की तरह कोआपरेटिव बना कर बड़े व्यापारियों के जाल से अपने को सुरक्षित रख सकते हैं. हालांकि कोआपरेटिव को सफल बनाना आसान नहीं है पर सफल सहकारी संस्थानों के उदाहरण भी सामने हैं. अफ़सोस तो इस बात का है जो कांग्रेस अपने २०१९ के चुनाव घोषणापत्र में ए पी एम सी की मंडियों को ख़तम करने की बात करती थी, उन्ही के कृषि मंत्री शरद पवार खेती में निजी हिस्सेदारी बढ़ने की बात किया करते थे वो आज किसान आन्दोलन को भड़काने का काम कर रहे हैं. किसानों के वोट की लहलहाती फसल की उम्मीद में अखिलेश यादव, के चंद्रशेखर राव, तेजस्वी यादव, ममता बनर्जी और उद्धव ठाकरे जैसे नेता भी जो हफ्ते भर से चुप बैठे थे अब अपना कन्धा किसानों को प्रस्तुत कर रहे हैं. आदर्श विश्व में वो दिन सबसे सुनहरा होगा जब किसान को उसकी उपज का लाभकारी मूल्य मिले और वो पानी, बिजली, खाद और एमएसपी जैसी किसी राजसहायता का मुंहताज न हो. पर हथेली पर सरसों तो नहीं जमाई जा सकती न.

Published: 12-07-2020

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