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शिखर की ओर भाजपा

रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : बिहार विधानसभा और देश भर के कई राज्यों में हुए 58 उपचुनावों में से 41 पर विजय के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपने राजनीतिक प्रसार का बाकायदा शंख फूंक दिया है. इन परिणामों ने न केवल भाजपा के राज में अर्थतंत्र में चिंताजनक

शिखर की ओर भाजपा
शिखर की ओर भाजपा
रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : बिहार विधानसभा और देश भर के कई राज्यों में हुए 58 उपचुनावों में से 41 पर विजय के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अपने राजनीतिक प्रसार का बाकायदा शंख फूंक दिया है. इन परिणामों ने न केवल भाजपा के राज में अर्थतंत्र में चिंताजनक गिरावट की सारी शंकाओं को निर्मूल सिद्ध कर दिया है बल्कि इस आधार पर उसे कटघरे में खड़ा करने के विपक्ष के सारे प्रयासों पर पानी फेर दिया है. देश भर में भाजपा के अश्वमेध यज्ञ के अश्व को अगर रोकना है तो विपक्ष को विजय प्राप्त करने के लिएअब अपने तूणीर में नये तीरों की खेप भरने के लिये कड़ा परिश्रम करना होगा। स्वतंत्रता के बाद से देश को नेतृत्व देती आयी पर फिलहाल मृतप्राय और दिशाहीन कांग्रेस के लिये आज यह एक कड़वा सच और आत्म मंथन का अवसर है. जिसने न केवल बिहार में अपने सहयोगी राजनीतिक दल की दमदार दस्तक को पराजय के गर्त में धकेल दिया बल्कि मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और मणिपुर में भाजपा से जबर्दस्त मुंहकी खायी है जहां वो आमतौर से सीधे मुकाबले में रहती आयी है. ऊपर से इन सभी राज्यों में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के मोहभंग और पाला बदल ने न केवल उसके शीर्ष नेतृत्व की पीड़ा को और असहनीय बना दिया है. और वो पीड़ा ये है कि क्या अब चुनाव जिताने की जो क्षमता कभी गांधी नामधारियों में हुआ करती थी उसका जादू उतर रहा है. वो भी तब जब बिहार में लम्बे समय तक सत्ता में रहने वाली भाजपा और जनता दल यूनाइटेड की जोड़ी के खिलाफ सत्ता विरोधी मानस उबाल पर था और वो विपक्षी महागठबंधन की कामयाबी के लिए संजीवनी सरीखा था. ये माना कि कांग्रेस आज पीढ़ीगत परिवर्तन के काल से गुजर रही है. पर उसके लिये बेशक यह बहुत कष्टदायक होना चाहिए कि उसके पाले पनासे नेता उसे छोड़ कर भाजपा के लिये सशक्त राजनीतिक पूंजी बनते जा रहे हैं. यह सिलसिला आन्ध्र में जगन मोहन रेड्डी, असम में हेमंत विस्वशर्मा से शुरू हुआ था और जहाँ तहां जारी है. पर ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश है जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से भाजपा में जाकर अपनी योग्यता सिद्ध कर दी है. किसी भी राजनीतिक दल में नये नेतृत्व को मांझने, उभारने में लम्बा समय और श्रम लगता है. अब वहां स्थिति ये है कि सिंधिया जैसे युवा नेता के नुकसान की भरपाई के लिये सत्तर पार कमलनाथ और दिग्विजय सिंह कांग्रेस को पता नहीं वहां कब तक राजनीति के बियाबान में भटकायेंगे. फिलहाल तो 2018 में ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस को मिली ताज़ा ताज़ा और चमकदार कामयाबी काफूर हो चुकी है. गुजरात में कांग्रेस ने पिछली बार पैंतीस साल पहले 1985 में विधानसभा चुनाव जीता था. वहां कांग्रेस के नयी पीढ़ी के नेताओं के उभार के बाद भी उसके पास भाजपा की सत्ता को चुनौती दे सकने लायक चेहरा दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा. जो विधायक वहां कांग्रेसी हैं भी वो आसानी से भाजपा के रणनीतिकारों के शिकार के लिये आसानी से उपलब्ध हो जा रहे हैं. शायद ताजा सफलताओं में सबसे चमकदार उत्तरप्रदेश की कही जा सकती है जहां 2022 में आम चुनावा होने हैं. वहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने न केवल अपनी सभी छह सीटों को बरकरार रखा बल्कि बिहार की 18 विधानसभाओं में प्रचार करके सफलता का 61 परसेंट स्ट्राइक रेट हासिल करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बाद दूसरे सबसे बड़े स्टार कम्पेनर बन कर उभरे हैं. कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल एस के गढ़ में कामयाबी का धावा बोल कर बुजुर्गवार मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा ने अपनी ही पार्टी के अंदर उनके खिलाफ आवाज उठाने वालों के सामने यह सिद्ध कर दिया है कि अभी उनकी जगह भाजपा को किसी युवा मुख्यमंत्री को बिठाने की जरूरत ही क्या है. तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति से सीट छीन कर भाजपा ने तेलुगू देसम और कांग्रेस को कमजोर करके उभरने वाले मुख्यमंत्री के चन्द्रशेखर राव के सामने एक सशक्त विपक्ष पेश कर दिया है. इन परिस्थितियों में जब भाजपा उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूरब तक अपने पांव सफलता के साथ पसार रही हो उसे अब अपना ध्यान राजनीति से कुशल अर्थनीति की ओर केन्द्रित करना चाहिये ताकि देश में सकारात्मक प्रतिस्पर्धा का विकास से प्रगति और रोजगार के नये द्वार खुलें। चीन की चुनौती सर पर है और आर्थिक सुधार समय की आवश्यकता है। बेशक इसके साथ ही अपने नए अध्यक्ष जे पी नड्डा के नेतृत्व में बिहार के बाद भाजपा के सामने बंगाल के किले पर कब्जे और असम में अपने कब्जे को कायम रखने की चुनौती सामने है. पर आम जनता की नब्ज पर सही पकड़ और उसकी सेहत के कारगर नुस्खे भाजपा यूँ ही पेश करती रही जैसे अब तक करती आयी है तो उसका विजय रथ रोकने में विपक्ष को लोहे के चने चबाने होंगे. और भाजपा के गलियारों में नारा गूंजता रहेगा-मोदी है तो मुमकिन है.

Published: 16-11-2020

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