वैश्विक सभ्यता के आदर्श नायक राम
रजनीकांत वशिष्ठ : नयी दिल्ली : हर सभ्यता को सदैव एक ऐसे आदर्श नायक की चाहत रही है जो सर्वगुण संपन्न हो और मानवीय चेतना को उत्साहित और प्रफुल्लित करता हो. इसके लिए अब तक हुए आदर्शों में दो मूल तत्व प्रधान रहे हैं. एक - वो मानवीय हो और उसने सृजन के उस मूलभूत तत्व असहनीय पीड़ा का सक्षात्कार किया हो जिस से उस समाज के हर व्यक्ति को दो चार होना पड़ा हो. दो - उसने कष्टकारी काल को गरिमा और साहस के साथ सहा हो और एक अलौकिक दैवीय आभा का स्वामी हो. ऐसा आदर्श हीरो किसी भी सभ्यता की आशा, आकांक्षाओं को शिखर पर ले जाने और जनजीवन को आनंदित करने का आधार रहा है. उदाहरण के लिए पश्चिमी सभ्यता के आदर्श हीरो जीसस क्राइस्ट रहे जो एक आम आदमी की तरह जीने के लिए धरती पर आये. परन्तु अपने जैसे इंसानों के लिए उन्होंने अपने शरीर पर अत्याचार सहा और जान दे दी. खुद पर हमला करने वालों को क्षमा किया और सुन्दरता के साथ धरती से प्रयाण करके मसीहा बन गए. पश्चिमी सभ्यता के उत्थान में जीसस की कथा ने प्रेरणा का काम किया. आज पश्चिम के समज में जो विचलन, विघटन और पतन दिखाई पड़ रहा है उसका कारण आदर्श पुरुष जीसस की अवहेलना ही है. ईसाई समाज में जीसस और चर्च को रूढ़िवादी कह कर खिल्ली उड़ाने वाले लिबरल लोगों ने आज यह स्थिति पैदा कर दी है कि पश्चिम की युवा पीढ़ी एक नए स्वतंत्र नैतिक सापेक्षतावाद के धुंध की और चल पड़ी है. वर्तमान में भारत अपनी वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के कारण आज वैश्विक सभ्यता है. सौभाग्य से हमारी सभ्यता के पास एक ऐसा आदर्श हीरो है जो वैश्विक सभ्यता को नेतृत्व प्रदान करने की पूरी योग्यता रखता है. रामायण एक ऐसी कथा है जिसमें विश्व के हर कोने में बसे नागरिक को अपना और अपने आसपास के जीवन के दर्शन हो सकते हैं और रामायण में वर्णित नायक राम वैश्विक हीरो के सर्वथा उपयुक्त पात्र दिखाई देते हैं. आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो अयोध्या यानी ऐसा स्वर्ग जहाँ युद्ध न हो. उस के राजा राम परम आत्मा हैं और सीता उनकी आत्मा है. पर मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में धरती पर आये राम को भी अपनी आत्मा सीता के साथ वन में चौदह बरस तक भटकना पड़ा. उनके साथ लक्ष्मण रूपी बुद्धि भी कष्ट सह रही है. तो उनके सामने अनैतिक इच्छाओं के रथ पर सवार दस इन्द्रियां रावण के रूप में उन्हें त्रास देने के लिए सन्नद्ध है. वो भौतिक सुख के स्वर्ण मृग से आत्मा रूपी सीता को लुभाता है और सीता यानी आत्मा बुद्धि द्वारा खींची गयी लक्ष्मणरेखा को लांघ कर माया के जाल में फंस भी जाती है. परिणाम आत्मा को लंका रूपी नरक का बंदी बन कष्ट पड़ता है. बौद्धिक सीमा रेखा की अवहेलना से कष्ट में कराहती आत्मा को इच्छा के शिकंजे से वापस पाने की पवित्र यात्रा में परमात्मा यानी राम जब लक्ष्य निर्धारित करते हैं तो उस वानरी मस्तिष्क को अपना प्रमुख अस्त्र बनाते हैं जो पूरी तरह समर्पित है और जिसमे सभी अवरोधों से पार पाने की असीम क्षमता है. इस शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं हनुमान. समस्त भौतिक सुख के चरम पर आसीन है लंका पर उस नारकीय परिवेश के राजा रावण का एक भाई कुम्भकर्ण हैं जो अन्धकार और आलस्य का प्रतीक है और अनिच्छा से ही सही बुरी कामनाओं की सहायता करता है. तो दूसरा भाई सत्व का प्रतीक विभीषण है जिसने समस्त इच्छाओं का त्याग कर दिया है और परम आत्मा से साक्षात्कार के लिए उद्यत है. पूर्ण रूप से समर्पित मस्तिष्क वाले हनुमान जब लंका दहन करते हैं तो वो समस्त कामनाओं और वासनाओं का दहन कर रहे होते हैं. इसके बाद तो अंतिम युद्ध महज एक औपचारिकता भर है. जब लंका विजय के बाद सीता के साथ राम अयोध्या का राज सँभालते हैं तो यही आत्मा का परमात्मा से मिलन है. सभ्यता के आदर्श नायक से यही अपेक्षा है कि उसके अधीन नारी सुरक्षित हो जो राम ने कर दिखाया. राम विपरीत परिस्थितियों का सामना साहस से करते हैं, दूसरो की सहायता के लिये सदैव तत्पर हैं, दायित्व का निर्वहन पूरी गंभीरता के साथ करते हैं और टकराव से बचने का यथासंभव प्रयास करते हैं लेकिन आवश्यकता पड़े तो कभी पीछे नहीं हटते. आज के चकाचौंध भरे दिग्भ्रमित समाज में बताईये ऐसे राम से अच्छा वैश्विक आदर्श नायक आपको कहां मिलेगा.