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हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव पर्व
सिटीजन रिपोर्टर : नयी दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने ४ जून से एक सप्ताह तक देश भर में हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव का पर्व मानाने का निश्चय किया है. इसमें एक बौद्धिक तथा अन्य दिनों में छत्रपति शिवाजी और हिन्दू स्वराज्य के प्रति स्वाभिमान व आत्मवि
हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव पर्व
सिटीजन रिपोर्टर : नयी दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने ४ जून से एक सप्ताह तक देश भर में हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव का पर्व मानाने का निश्चय किया है. इसमें एक बौद्धिक तथा अन्य दिनों में छत्रपति शिवाजी और हिन्दू स्वराज्य के प्रति स्वाभिमान व आत्मविश्वास से प्रेरित राजाओं के जीवन की विभिन्न घटनाओं, उनके द्वारा किए गए कार्यों, उनके द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं आदि पर चर्चा हो सकती है. शिवाजी महाराज का समूचा व्यक्तित्व सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए आज भी मूर्तिमंत आदर्श है. शिवाजी महाराज के द्वारा सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए किए गए प्रयासों की यह राज्याभिषेक सफल परिणति है. इसलिये हम शिवाजी साम्राज्य दिवस न कह कर हिन्दू साम्राज्य दिवस कहते हैं. शिवाजी के चरित्र, नीति, कुशलता और उद्देश्य की पवित्रता की आज भी आवश्यकता है. जिस समय सारा हिन्दू समाज और राजा तथा नरेश आत्मविश्वासहीन अनुभव कर रहे थे- 'काशीजी की कला जाती, मथुरा मसीत होती शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सबकी' उस समय ऐसी परिस्थिति तथा वातावरण था. हिन्दू समाज का व्यक्ति सैनिक, सरदार या सेनापति बन सकता था परन्तु राजा नहीं बन सकता था. ऐसी विपरीत परिस्थिति में छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दुओं में आत्मविश्वास जगाया. हिन्दू भी राजा बन सकता है यह अपने जीवन से, पुरुषार्थ से करके दिखाया. संत समाज में भी शिवाजी महाराज का स्थान हिन्दू समाज के संरक्षक के नाते स्थापित हुआ. राजस्थान में भी अधिकांश राजपूत राजा दुर्गादास राठौड़ के नेतृत्व में हिन्दवी पताका को लेकर निकल पड़े और वहाँ से विधर्मी सत्ता को उखाड़ फेंका. बुन्देलखण्ड के महाराजा छत्रसाल, असम के राजा चक्रध्वज सिंह, कूचबिहार के राजा रुद्रसिंह जैसे अनेक राजाओं में हिन्दू स्वराज्य के प्रति स्वाभिमान व आत्मविश्वास की प्रेरणा शिवाजी महाराज ही थे. औरंगजेब की चाकरी पर लात मार कर कविवर भूषण हिन्दू गौरव के नाते शिवाजी महाराज की स्तुति करते हैं. शिवाजी के जन्म से पूर्व भारत में आठ प्रकार की सल्तनत चल रही थी. भारत के पूर्व- पश्चिम -उत्तर -दक्षिण कहीं भी हिंदू सुरक्षित नहीं था. सभी नदियों का जल दूषित हो गया था - मानव और गौ के रुधिर से. स्त्रियां कहीं भी सुरक्षित नहीं थी. अस्पृश्य कहे जाने वाले समाज को तब भी मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी. कोई हिंदू राजा नहीं था. ऐसा नहीं था कि कोई हिंदू साम्राज्य की स्थापना नहीं कर सकता था किन्तु अंतिम हिंदू राजा रामराय को सभी मुस्लिम शक्तियों ने मिलकर समाप्त कर दिया. परिणाम सभी सेनापति, प्रधानमंत्री जो कि हिंदू थे उनके मन में यह धारणा हो गई थी कि हिंदू नौकर हो सकता है, चाकर हो सकता है ,परंतु राजा नहीं हो सकता. हम अपनी शक्ति, क्षमता, गौरवशाली संस्कृति, श्रेष्ठ परंपराओं को और मां भारती को पूर्णता भूल चुके थे. माता जीजाबाई की तरुण अवस्था की घटना, उसके बाद उनका प्रतिज्ञा लेना कि ऐसे पुत्र को जन्म दूंगी, जो इस स्थिति को बदल देगा. माता जीजाबाई और पिता शाहजी भोंसले के यहां एक युग प्रवर्तक बालक ने 19 फरवरी 1630 ई. (शके संवत 1551 फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की तृतीया) को शिवनेरी दुर्ग में जन्म लिया जिसका नाम रखा गया शिवा. अपनी माता के संकल्प के अनुसार 6 जून 1674 ईस्वी (ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी) को उन्होंने हिंदू पद पादशाही की स्थापना की. जीवन भर हिंदू गौरव, स्वाभिमान और हिंदू स्वराज के लिए जीने वाली यह महान आत्मा 3 अप्रैल 1680 को परम तत्व में विलीन हो गई. बाल संस्कार निर्माण व लालन-पालन उनका ऐसा हुआ कि रामायण, महाभारत, गीता आदि ग्रंथों में से भीम -अर्जुन, राम- कृष्ण, राजा दिलीप आदि महापुरुषों की गाथा सुनाई गई जिससे यथोचित गुणों और संस्कार का निर्माण हो सके. इसके आलावा कसाई द्वारा गाए को खींच कर ले जाते समय कसाई के दोनों हाथों को काटना. माता जीजाबाई द्वारा खिलौनों के स्थान पर तलवार, भाला आदि शस्त्र देना. हिंदू संस्कार स्वाभिमान, निडरता, श्रद्धा, अपने पूर्वजों, देवों, देवियों के प्रति भावों का निर्माण. परिणामस्वरूप शिवाजी का स्त्री के प्रति सम्मान, कल्याण के सूबेदार की पुत्रवधु को ससम्मान लौटाना, रांझे के पाटिल को सजा देना ऐसे उदहारण थे जिन्होंने शिवाजी के जीवन को दिशा दी. अनेक प्रसंगों में मां भवानी ने स्वप्न में आकर यह कहा कि" तुम आगे बढ़ो" ,उदाहरण -अफजल खान वध, शाइस्ता खान पर आक्रमण , पन्हालगढ़ से विशालगढ़ जाना आदि. मंदिरों का निर्माण आदि और औरंगजेब द्वारा काशी के मंदिर को तुड़वाने की जानकारी प्राप्त होने पर उसको कड़ा पत्र लिखना. शिवाजी की स्वराज्य की कार्यशैली और लक्ष्य स्वयं प्रेरित राज्य रचना -उनके जाने के बाद भी स्वराज्य बढ़ता गया. अटक से कटक तक हो गया ,व्यवस्था खड़ी करने में स्वराज्य और राष्ट्रहित सर्वोपरि. भाई भतीजावाद से दूर उन्होंने व्यक्तियों की नियुक्ति करने में उनको गुणों का आधार रखा. नियुक्तियां व्यक्तिगत जानकारी या अनुशंसा के आधार पर नहीं होती थी. इसीलिए सभी किलो में से एक भी किलेदार उनका रिश्तेदार नहीं था. व्यक्ति की योग्यताओं का पूर्ण उपयोग समुचित स्थान पर करते थे. उदाहरण नटो में से जीवा माहाला को ढूंढना, बाजी प्रभु देशपांडे जो विरोधी सेना का सेनापति था उसको भी अपना बनाना. पिछड़े-अनपढ़ -उपेक्षित लगने वाले मावल बालकों में स्वराज्य निष्ठा जगाई. शिवाजी का मित्रों पर और मित्रों का शिवाजी पर पूर्ण विश्वास, समर्पण और समन्वय. नेताजी पालकर, त्र्यंबकर भास्कर, तानाजी मालुसरे इत्यादि. कुतुबशाही से मिलने शिवाजी स्वयं गए. व्यंग्य का बाण चलाते हुए उसने कहा कि आपके पास हाथी नहीं है, हमारे पास देखो कितने खूंखार हाथी हैं शिवाजी ने येसा जी को आगे कर दिया. येसाजी ने तलवार के एक ही वार से हाथी को धराशाई कर दिया. स्वराज्य के साथियों और अपने मित्रों की संभाल और विश्वास के अनेकों उदाहरण मिलते हैं. योजना में दूर दृष्टि साफ झलकती थी. अनेकों युद्ध इसके प्रमाण हैं. शाइस्ता खां पर आक्रमण. राजा जय सिंह से भेंट आदि. गद्दारों को कभी क्षमा नहीं करते थे. नौ परिवहन व सड़कों के महत्व को समझना. इसीलिए उन्होंने जलमार्ग के लिए पदम दुर्ग ,विजय दुर्ग ,सिंधुदुर्ग आदि का निर्माण किया. स्वराज्य की सोच - सभी हिंदू राज्य स्वावलंबी बने अधीनस्थ नहीं, इसलिए किसी भी राज्य को अधीनस्थ नहीं करते थे. सती प्रथा के विरोधी थे. सती होने से अपनी माता और तानाजी मालुसरे की धर्मपत्नी को रोका. उनकी सेना, उनके नायकों, उनके साथियों, उनके मित्रों, उनकी टोलियों में समरसता की झलक साफ दिखाई देती थी. सभी समाज के लोगों का उसमें भाग रहता था. उदाहरण के लिए पुरंदर के किले के संघर्ष में मुरारबाजी के साथ तथाकथित पिछड़ी कही जाने वाली जातियों ने ही संघर्ष किया. शिवाजी और अर्थशास्त्र-भ्रष्टाचार पर नियंत्रण -नित्य प्रति का हिसाब दैनंदिनी में होना चाहिए ऐसा आग्रह. आपदाओं के कारण होने वाली हानि की भरपाई धन नहीं वस्तु के रूप में होती थी, जैसे -बैल के बदले बैल, अन्न के बदले अन्न आदि. छोटी से छोटी रकम का हिसाब भी पूछना और उसका ध्यान रखना. बड़े अधिकारियों की अनियमितता पर कठोर दंड उदाहरण- अपाजी देश कुलकर्णी को दायित्व मुक्त करना व भारी जुर्माना वसूला. स्वयं की मुद्रा का निर्माण किया. बाहर से मेंआने वाली वस्तुओं पर टैक्स लगाना पुर्तगाली व्यापारियों का नमक के सस्ता होने पर, उस पर इस प्रकार का टैक्स लगाना कि वह स्वदेश में निर्मित नमक से महंगा हो जाए और देश के व्यापारी और उपभोक्ता के हितों का संरक्षण हो सके. अपने कारीगरों को श्रेष्ठ व सस्ता सामान बनाने का समय-समय पर प्रशिक्षण देना. स्वदेशी उत्पादन व तकनीक को विकसित किया. उदाहरण -अरबी घोड़ों को अपनी घुड़साल में ही ब्रीडिंग करवाई एक समय उनकी घुड़साल में 50000 अरबी घोड़े थे. इसी प्रकार पेपर प्रिंटिंग मशीन की तकनीक प्राप्त करने के लिए फ्रांस से पूर्ण प्रयास किया. विदेशी व्यापारियों को कभी भी पक्का स्थान नहीं बनाने देना चाहिए और बंदरगाहों से दूर स्थान देना चाहिए. उनको व्यापार की आड़ में धर्मांतरण या राजनीति करने का मौका नहीं देना चाहिए. एक समान कर प्रणाली. आय की गणना में राज्य कर्मचारियों के अतिरिक्त गांव के लोग भी होते थे जिससे पारदर्शिता व विश्वास का माहौल बनता था. शिवाजी और न्याय-रान्झे के पाटिल को सजा. खंडूजी खोपड़ा का अफजल खान का साथ देना. कान्होजी जेधे का उसके बचाव के लिए आग्रह करना. एक हाथ, एक पाव काटना. सखोजी गायकवाड के सावित्री देवी पर कुदृष्टि डालने पर उनकी आंखें निकालना. पंच परमेश्वर निर्माण -गांव का निर्णय गांव के लोगों के द्वारा सभी के समक्ष, घटना की पूर्ण जानकारी के आधार पर, यथाशीघ्र न्याय मिलता था. इससे सबका विश्वास बनता था. शिवाजी की शासन व्यवस्था-स्वावलंबन, न्याय व्यवस्था, सुरक्षा, वाणिज्य व्यापार, बाहरी व्यापारियों के साथ के प्रति उनकी नीति, स्वदेशी तकनीकी, स्वदेशी भाषा- शिक्षा, जल, पर्यावरण, सामरिक दृष्टिकोण, भ्रष्टाचार रहित शासन व्यवस्था, वस्तु विनिमय प्रणाली, स्वयं प्रेरित राज्य रचना, उनका मंत्रिमंडल(अष्टप्रधान ), विकेंद्रित शासन, एक समान कर प्रणाली. 36 वर्ष के शासनकाल मे मात्र 6 वर्ष युद्ध में लगाए और शेष समय-शासन व्यवस्था को स्थापित और सुदृढ़ करने में. शिवाजी भाषा व संस्कृति-व्यवहार में संस्कृतनिष्ठ मराठी शब्दों का चयन, मुद्रा पर भी संस्कृत भाषा का उपयोग. उदाहरण -आदिल, काजी शब्दों की जगह न्यायाधीश व पंडित का उपयोग. दुर्गों के नाम भी बदले रायरी रायगढ़, तोरडा का विश्राम घाट. इब्राहिम ने अपनी पुस्तक ' the great mughal'में लिखा है, कि शिवाजी ने हिंदू पॉलिटिकल ट्रेडिशन को जीवित करने का प्रयास किया. गोआ के चार पादरियों को धर्मांतरण करने पर उनका शिरोछेद किया और वहां के वायसराय को भी सजा दी. शिवाजी की युद्ध नीति- गतिशीलता, गोरिल्ला युद्ध प्रणाली, युद्ध केवल लड़ने के लिए नहीं जीतने के लिए लड़े जाते हैं, उचित समय की प्रतीक्षा धैर्य और संयम, विश्वास और श्रद्धा को आधार बनाकर नई व्यूह रचना, उत्तम गुप्तचर व्यवस्था द्वारा संपूर्ण जानकारी, उत्तम घोड़े और शस्त्र का उपयोग. शिवाजी और शत्रु द्वारा प्रशंसा-इटालियन तोपची निकोलाई मनुची ने कहा -" जब शिवाजी राजा जयसिंह की छावनी में 5 दिन थे तब मैं उनके निर्भय व्यवहार को देखकर आश्चर्यचकित था. उसने कहा की ऐसी परिस्थिति में जब उस पर कभी भी प्राणघातक हमला हो सकता था तब भी वह तोपों के विषय में जानकारी ले रहा था". राजपूत सरदार महासिंह शेखावत का कहना था शिवाजी विलक्षण बुद्धिमान है, थोड़ा पर सटीक बोलता है. शिवाजी की मृत्यु का समाचार सुनकर औरंगजेब ने कहा"वह एक महान सेनापति तथा सच्चरित्र था मैं 19 वर्षों तक युद्ध में उसे कोई भी हानि नहीं पहुंचा सका". (बलराज मधोक की पुस्तक में से). पुर्तगाली वायसराय काल द सेंट विंहसेंट ने शिवाजी की तुलना सिकंदर और सीजर से की. उसने कहा कि मैंने भारत आने से पहले यूरोप में ही शिवाजी की कीर्ति सुन ली थी. ग्रांट डफ लिखता है "शिवाजी द्वारा जीती हुई भूमि और संपत्ति का मुगलों पर विशेष प्रभाव नहीं हुआ, किंतु उन्होंने महाराष्ट्र के लोगों में (स्वराज्य की) जो प्रेरणा जगाई ,वह मुगलों पर भारी पड़ी." पुर्तगाली लेखक कास्मा द गार्द लंबे समय तक मडगांव में रहा. उसने सन 1695 में पुर्तगाली भाषा में शिवाजी का चरित्र लिखा जो बाद में लिस्बन में प्रकाशित हुआ. इसमें वह लिखता है -"शिवाजी केवल काम करने में ही तेज नहीं था, बल्कि उसका शरीर कसा हुआ था. चेहरा आकर्षक तथा व्यक्तित्व प्रभावी था. विशेष रूप से उसके काले नयन इतने भेदक थे कि जब वह देखता था तो लगता था मानो आंखों से चिंगारियां निकल रही हों. उसकी आंखे उसकी बौद्धिक ऊंचाइयों का प्रमाण देती थी. भारतीय संविधान और छत्रपति शिवाजी महाराज-किसी भी देश का संविधान उस देश के मौलिक चिंतन का दस्तावेज होता है. उसी के आधार पर देश का शासन-प्रशासन एवं जन जीवन संचालित होता है. भारत को संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न एवं लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाए रखने के लिए भारत का संविधान हमारा मार्गदर्शक ग्रंथ है. हमारे संविधान में कुल 22 भाग हैं. हर भाग में कुछ चित्र हैं, वह चित्र उस भाग के बारे में हमें कुछ ना कुछ बताते हैं. जैसे संविधान के भाग 15 में चित्रकार नंदलाल बोस ने दो चित्र दिए हैं, एक छत्रपति शिवाजी महाराज का व दूसरा गुरु गोविंद सिंह का. यह चित्र हमें बताते हैं की छत्रपति शिवाजी महाराज एवं गुरु गोविंद सिंह किस प्रकार से भारतीय राजनीति व समाज के लिए सर्वथा प्रासंगिक हैं. संविधान के इस भाग का विषय "निर्वाचन"है. जिस प्रकार भारत के जनमानस में यह बात प्रतिष्ठित है कि राजा कैसा हो तो राजा भगवान श्री राम जैसा हो उसी प्रकार हम सोचे प्रश्न करें कि हमारा नेता कैसा हो और निर्वाचित नेता कैसा हो, तो हमें संविधान से दिशा मिलती है कि नेता छत्रपति शिवाजी महाराज और और गुरु गोविंद सिंह जैसा होना चाहिए. आज वर्तमान पीढ़ी को कुछ समय रुक कर गहराई से विचार करना चाहिए कि निर्वाचित नेता के रूप में संविधान सभा ने यही दो महापुरुषों के चित्र की ओर संकेत क्यों किया है ? इन दोनों महापुरुषों में ऐसा विशेष कौन सा गुण उनको दिखा जो वह भविष्य के लोकतांत्रिक भारत के नेतृत्व में वह गुण होना आवश्यक मानते थे. गुरु गोविंद सिंह के जीवन में त्याग और छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में पराक्रम विशेष है. बौद्धिक में शिवाजी की ध्येय निष्ठा, अनवरत कार्य और हिंदवी स्वराज्य की स्थापना. हिंदवी स्वराज्य सुराज बन गया और जन-जन का सपना बन गया इसलिए उनके जाने के बाद भी यह सतत चलता रहा. हिन्दूसाम्राज्य दिनोत्सव क्यों ? छत्रपति शिवाजी महाराज की विजय केवल शिवाजी महाराज की विजय नही अपितु समूचे हिन्दू राष्ट्र की विजय थी. इसके परिणामस्वरूप सारे देश में हिन्दू स्वाभिमान जागा. "स्वदेश व स्वधर्म की रक्षा हेतु ही मराठे निरंतर विजयी होते हुए, दिल्ली की देहरी से भी आगे उनके विजयी अश्वों ने सिंधु सरिता की पवन जलधारा का भी रसास्वादन किया. दक्षिण में वे विजयी मराठे सागर की उत्ताल तरंगों तक अपने विजयी तुरंग ले जाने में सफल हो गए, जिनका एक मात्र लक्ष्य हिमालय की हिम मंडित शैल मालाओं से धुर दक्षिण में महासागर की उत्ताल तरंगों तक हिंदू साम्राज्य तथा हिंदू-पद-पादशाही की स्थापना करना था." यह छत्रपति शिवाजी महाराज के कारण ही संभव हो पाया. संदर्भ पुस्तकें-१. हिंदू विजय युग प्रवर्तक-हो.वे. शेषाद्री, २. शिवाजी और सुराज- अनिल माधव दवे, ३. शिवाजी की महानता -माधव सदाशिव गोलवलकर, ४. शक्तिपुत्र शिवाजी -भारती साहित्य सदन, ५. राजा शिवछत्रपती -बाबासाहेब पुरंदरे , ६.हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव-मोहन भागवत.
Published:
06-03-2020
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