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फैशन के हिंडोले पर प्रगतिशील खादी

रजनीकांत वशिष्ठ : लखनऊ : किसे पता रहा होगा कि एक डेढ़ हड्डी के इनसान महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों की होली जला कर जिस सिविल नाफरमानी की नींव रख रखी वो मैनचेस्टर की भीमकाय कपड़ा मिलों का जवाब तो होगा ही एक दिन चरखे की खादी भारत ही नहीं सारी दुनिया के फै

फैशन के हिंडोले पर प्रगतिशील खादी
फैशन के हिंडोले पर प्रगतिशील खादी
रजनीकांत वशिष्ठ : लखनऊ : किसे पता रहा होगा कि एक डेढ़ हड्डी के इनसान महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों की होली जला कर जिस सिविल नाफरमानी की नींव रख रखी वो मैनचेस्टर की भीमकाय कपड़ा मिलों का जवाब तो होगा ही एक दिन चरखे की खादी भारत ही नहीं सारी दुनिया के फैशन रैम्प के मंच पर इतराने लग जायेगी. वो दिन लद गये जब हाथ से कता, हाथ से बुना और हाथ से सिला खादी का मोटा झोटा कपड़ा कुर्ता धोती या कुर्ता पाजामा बन कर केवल नेताओं और गांव के अधेड़ या बुजुर्ग लोगों के तन पर सजता था. अब विदेशी और देशी ब्रांडेड और रेडीमेड कपड़ों की आंधी में खादी ने अपने पांव मजबूती से जमाने के लिये भारत के 30 परसेंट फैशनेबल युवाओं और स्कूली बच्चों के दिल में जगह बनाने का पक्का इरादा कर लिया है. उस पर महात्मा गांधी की ही जमीन से निकल कर आये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब से खादी के पोस्टर ब्वाय के रूप में अपने को आगे किया है और मन की बात में देशवासियों से एक रुमाल ही सही खादी का खरीदने की अपील की है तब से खादी के उत्पादों में चमक दिखायी पड़ने लगी है. मोदी जैसी शख्सियत अगर अपने पूर्ववर्तियों से हट कर केवल धारण करने के अलावा डंके की चोट पर खादी की वकालत कर रहे हैं तो उसके पीछे एक ऐसा पवित्र कारण है कि विरोधी भी इसकी आलोचना नहीं कर पा रहे हैं. वो पवित्र कारण खादी का महज जीवन के तीन निशानों-रोटी, कपड़ा और मकान में से एक होना ही नहीं है. ये व्यापार का ऐसा माडल है जो चीन और जापान की तरह व्यापक और समावेशी रोजगार का सृजन करने वाला भी है. गांव, कस्बों और शहरों के गरीब रुई से कताई करके कुछ कमाते हैं. इस सूत को बुनकरों के पास भेजा जाता है तो वे हथकरघों, पावरलूमों के जरिये कपड़ा बुन कर कुछ कमाते हैं. इस कपड़े से दर्जियों का रोजगार तैयार है. मतलब साफ है कि आज के कल युग में भारत के 130 करोड़ लोगों में से जितने ज्यादा से ज्यादा तन पर खादी सजेगी, उतना देशवासियों के हाथों को रोजगार मिलेगा. ये माडल यूरोप के उस माडल का जवाब है जहां फैक्ट्री के दरवाजे से कच्चा माल अंदर जाता है और भारी मशीनों और कम हाथों के सहारे दूसरे दरवाजे से तैयार उत्पाद बाहर आता है. अभी तक खादी ऐसा ब्रांड नहीं रहा जिसे आक्रामक तरीके से बाजार में उतारा गया हो. अपर मिडिल क्लास या अपर क्लास के स्टेटस को यह सूट नहीं करता था. खादी के कपड़े को बिक्री के लिये गांधी जयंती के सालाना सीजन की प्रतीक्षा करनी होती थी जिसमें विशेष छूट के सहारे दुकान किसी तरह चलती रही. यूं कहें कि खादी राज्याश्रय से बाहर निकल ही नहीं पायी. कई पीढ़ियों से चल रहे उन खादी संघों के जरिये इसका गुजारा चलता रहा जिनका अधिकतर ध्यान येन केन प्रकारेण ज्यादा बिक्री दिखा कर सरकारी आर्थिक सहायता को झपटने पर केन्द्रित रहा. भला हो योगी सरकार के पूर्व खादी ग्रामोद्योग मंत्री सत्यदेच पचौरी और प्रमुख सचिव नवनीत सहगल का जिन्होंने खादी संघों को मिलने वाली मदद को बिक्री के बजाय उत्पादन से जोड़ दिया. इसके साथ ही खादी संघों की पोल खुलने लगी जो एक ओर इधर उधर से खरीद कर खादी की भारी बिक्री दिखा कर लम्बी रकम घसीट रहे थे और दूसरी ओर कत्तिन और बुनकरों को बहुत कम पैसा देकर उन्हें दूसरे व्यवसायों की ओर धकेल रहे थे. गांधी के इस आंदोलन की आंख तब खुली जब एक विदेशी ने फैब इंडिया के ब्रांड नाम से खादी को उस शहरी अपर क्लास के बीच लोकप्रिय करना शुरू किया और मोटा मुनाफा काटना शुरू कर दिया. फिर खादी वीवर भी मैदान में आ गया. इसकी देखा देखी खादी एवं ग्रामोद्योग ने अपने दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई, कोलकाता, लखनउ, पटना और रांची जैसे बड़े शहरों में बने शोरूम को जब नया लुक देना शुरू किया तो उसके रेडीमेड कपड़ों और ग्रामोद्योग के हाथ से बने उत्पादों को जो अच्छा रिस्पांस मिला उसने राज्यों में खादी संघों का हौसला बढाया. नवनीत सहगल के ही प्रयासों से रायबरेली के फैशन डिजायनिंग इंस्टीट्यूट ने उत्तर प्रदेश के मल्लावां, गोरखपुर और मुरादाबाद के खादी संधों का दौरा करके खादी के लिये युवाओं और संपन्न वर्ग के बीच नया बाजार तलाशने की कोशिश की. इस आधार पर खादी के रेडीमेड मेन्स वियर और वीमैन्स वियर डिजायन किये और उनकी प्रदर्शनी लगायी. प्राथमिक अध्ययन के आधार पर रायबरेली निफ्ट में खादी संस्थाओं में कार्यरत टेलरों को प्रशिक्षण भी दिलाये. नवनीत सहगल बताते हैं कि खादी को बाजार से जोड़ना होगा मैटीरियल, डिजायनिंग पैकेजिंग, मार्केटिंग में कमी है. मार्केटिंग में सरकार मदद करेगी. ई कामर्स कंपनी एमेजन से प्रदेश की 50 खादी संस्थाओं को जोड़ा गया है. साल भर में प्रदर्शनियों की संख्या 10 से बढ़ा कर 20 कर दी गयी है. लखनउ, मुजफ्फरनगर में खादी प्लाजा बना कर बिजनेस मैन को खादी से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. निफ्ट रायबरेली से आग्रह किया है कि वो खादी संस्थाओं के लिये मेन्टोर का काम करे. खादी से माडर्न अच्छे कपड़े बनाये जा सकते हैं. सब्सिडी या रिबेट की आदत छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा रोजगार खादी से दिया जा सकता है. उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जहां रुटीन से सोलर चरखा लेकर आये. इस साल से संस्था के कार्यकर्ताओं को सोलर चरखा देंगे. प्रगतिशील संस्थाओं के लिये मार्केटिंग की वर्कशाप आयोजित करायी जायेगी. सरकार से आग्रह किया जायेगा कि बच्चों और पुलिस को खादी की यूनिफार्म बनवायी जाये. खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के वरिष्ठ प्रबंधक डिप्टी सीईओ एस के कक्कड़ बताते हैं कि लखनउ के मोहनलालगंज, सीतापुर के सिधौली, बहराइच के रिसिया, महसी और विशेश्वरगंज तथा मिर्जापुर के छानबे ब्लाकों के प्राइमरी स्कूलों में यूनिफार्म बनाने का पाइलट प्रोजेक्ट सरकार ने दिया है. इनकी डिजायन रायबरेली निफ्ट ने की है. इसमें 67 प्रतिशत धागा खादी का है और 33 प्रतिशत धागा पालिएस्टर का है। खादी बोर्ड के चीफ प्रोजेक्ट आफिसर महेन्द्र प्रताप सिंह बताते हैं कि अगर यह प्रोजेक्ट कामयाब रहा तो खादी बड़े पैमाने पर रोजगार का माध्यम बन जायेगी. रायबरेली निफ्ट के निदेशक डा. भरत साह ने बताया कि परिधान की ताकत डिजायन होती है। हमें युवा वर्ग पर ध्यान देना होगा ताकि वैल्यू एडिशन किया जा सके. 15 से 34 वर्ष आयुवर्ग के युवाओं की संख्या देश में 30 प्रतिशत है. एक्सेसरीज की भी डिमांड है इसलिये हम वस्त्रों के अलावा खादी के दूसरे उपयोग पर भी विचार कर सकते हैं. खादी संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं फर्रुखाबाद के मेवाराम कटियार और मुरादाबाद के अनिल सिंह ने आग्रह किया कि बोर्ड मार्केटिंग में सहयोग दे. बुनकर कम हुए हैं. संस्थाओं में बुनकरों को प्रशिक्षण दिलाने की व्यवस्था की जाये. खादी भवनों के विस्तार की जरूरत है. एक दो को छोड़ संस्थाओं में डिजायन की व्यवस्था नहीं है. कुछ ऐसा किया जाये कि गांव के लोगों को गांव में ही रोजगार मिले. रायबरेली निफ्ट के विशेषज्ञों रिमांशु, डा. विद्या और लाल सिंह ने सुझाव दिया कि खादी के वस्त्रों के साथ साथ ग्रामोद्योग पर ध्यान दिया जाये. गिफ्ट बैग, रनर, कोस्टर्स, करटेन्स, कुशंस, पिलो कवर्स, होम फर्निशिंग्स, आफिस एक्सेसरीज, नोट कार्ड्स, फाइल फोल्डर्स, पेन होल्डर्स, फोटो एलबम, यूटिलिटि बैग, डिस्प्लेज, स्टोर फिक्सर्स आदि के क्षेत्र में ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया जा सकता है. फैब इंडिया या खादी वीवर की तरह प्रदेश के 10 शहरों में फ्लेगशिप स्टोर्स बनाये जा सकते हैं जिससे खादी के ब्रांड को और पुख्ता किया जा सकता है. उत्तरप्रदेश खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के उपाध्यक्ष रामगोपाल अंजान कहते हैं कि हमारी अंत्योदय, गांधीवादी समाजवाद, दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की अवधारणा भी यही है. पहले लोगों ने संस्थाओं को दीमक की तरह चाटा पर अब ऐसा नहीं होने दूंगा. कंबल के कारखाने और कागज के कारखाने चालू होंगे. संस्थाओं को अभाव में नहीं रहने दूंगा. बेशक महात्मा गांधी ने 1918 में भारतीयों की भावनाओं से जोड़ कर खादी को एक आंदोलन बनाया था. पर आज के नये दौर में नयी सोच के साथ हम इसे ऐसे भारतीय सांस्कृतिक पहनावे के तौर पर विश्व स्तर पर लोकप्रिय बना सकते हैं जो शरीर के सबसे अनुकूल है. संभ्रांत वर्ग के बीच इसके विकास की असीम संभावनाएं बाजार में मौजूद हैं.

Published: 30-09-2019

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