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खादी को लगे पंख

रजनीकांत वशिष्ठ : लखनऊ : जीवन के बस तीन निशान रोटी कपड़ा और मकान। इसमें से कपड़े का जब सवाल आता है तो एक आंदोलन का जिक्र जरूर आता है और वो है खादी. गुरु गोपाल कृष्ण गोखले और शिष्य महात्मा गांधी ने जब खादी का चरखा चलाया तो किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक द

खादी को लगे पंख
खादी को लगे पंख
रजनीकांत वशिष्ठ : लखनऊ : जीवन के बस तीन निशान रोटी कपड़ा और मकान। इसमें से कपड़े का जब सवाल आता है तो एक आंदोलन का जिक्र जरूर आता है और वो है खादी. गुरु गोपाल कृष्ण गोखले और शिष्य महात्मा गांधी ने जब खादी का चरखा चलाया तो किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक दिन गरीब का तन ढकने का यह पहिया मैनचेस्टर की विशालकाय मशीनों के मुकाबले अमीरों की भी चाहत बन जायेगा. कपड़े के दो माडल पिछली सदी में सामने आये. एक कारखाने वाला माडल और दूसरा मानव संसाधन के प्रयोग का. जाहिर है कि ऐसे में जब ज्यादा से ज्यादा हाथों को रोजगार का सवाल मुंह बाये खड़ा हो तो दूसरा माडल ही लम्बी रेस में ज्यादा कारगर माना जायेगा. ब्रांडेड और रेडीमेड कपड़ों के आज के दौर में कोई सोच भी नहीं पाता होगा कि खादी का मोटा खुरदुरा और रफ कपड़ा चुनौती तो दे पायेगा इसकी तो बात ही मत करो, टिक भी पायेगा। पर गांधी के चरखे से निकला धागा आज न केवल आज़ादी के बाद से भारत के ग्रामीण और शहरी गरीब बुजुर्गों का तन ढक रहा है बल्कि नौजवानों के बदन पर भी सज कर फैशन शो के रैम्प पर इतराता नजर आ रहा है. यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से खादी की प्रतिष्ठा भारत ही नहीं दुनिया भर के देशों में ठसके से स्थापित हो रही है. खादी दरअसल व्यापार का ऐसा जापानी या चीनी माडल पेश कर रही है जहां किसान के खेतों से कपास निकले, किसान के ही घरों से कपास को चरखे पर चढ़ा कर सूत बने. ये सूत कस्बों के सहकारी हथकरघों से ताना बाना बन कर कपड़ा बने और फिर ये कपड़ा शहरों के दर्जियों को काम देकर वस्त्र का रूप ले. उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनउ में 6 से 9 दिसम्बर को आयोजित हुए खादी महोत्सव 2018 में खादी के इसी विशाल स्वरूप के दर्शन हुए. इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित मंथन में प्रदेश भर के खादी व्यवसाय से जुड़े लोगों ने खादी के विचार, प्रचार और प्रसार पर चिंतन किया. केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रदेश के मंत्री सत्यदेव पचौरी ने खादी के सिपाहियों को सरकार की ओर से हर संभव मदद का भरोसा दिलाया. साथ ही 6 दिसम्बर की शाम जब फैशन शो के रैम्प पर देशी और विदेशी कलाकारों ने लखनउ सहित कई डिजायनरों का कलेक्शन पेश किया तो हैरान कर दिया. खादी अब सादी और सफ़ेद नहीं रही, वो भी कई रंगों और डिजायनों में ढल कर बच्चों, महिलाओं से लेकर युवाओं तक के मल्टीनेशनल ब्रांडेड कपड़ों का रंग फीका करती नजर आयी. ये तो मानना ही पड़ेगा कि एक अधनंग फकीर गांधी ने भारत की जमीन से दुनिया को परिधान का ऐसा विकल्प खादी के रूप में दे दिया है जिसका लोहा आज विश्व के लोग मान रहे हैं कि यह त्वचा का मित्र है और ग्रामीण रोजगार का सृजक भी. शायद यही वजह है कि खादी की ग्रोथ जो चार साल पहले कभी 6.68 प्रतिशत हुआ करती थी वो आज औसतन 35 प्रतिशत है. चार सालों में खादी कमीशन से 18 लाख लोगों को रोजगार मिला है. यह ग्रोथ भारत में बसे 55 प्रतिशत किसान और उसके परिवार की आय में सहायक तो है. खादी कमीशन ने किसानों को ध्यान में रख कर ही खादी के विकास और प्रचार प्रसार के साथ मोदी के नये मिशन स्वीट क्रांति पर भी काम शुरू कर दिया है. खादी कमीशन के चेयरमैन विजय सक्सेना बताते हैं कि पिछले डेढ़ सालों में हमने ग्रामीण क्षेत्रों में 51 हजार बी बाक्स बांटे हैं जिनसे साढ़े 19 हजार किलो शहद का उत्पादन हुआ है. हमारा लक्ष्य 30 जनवरी तक एक लाख बी बाक्स वितरित करने का है. मोदी द्वारा 10 दिसम्बर 2016 को गुजरात के बनासकांठा में शुरू किये गये इस मिशन के फायदे किसानों को अनंत हैं. इससे शहद का उत्पादन तो हो ही रहा है. इससे मोम मिलता है जो शहद से मंहगा बिकता है. पोलेन मिलता है जो मोम से मंहगा है. रायल जेली मिलती है जो पोलेन से मंहगी है और डीवेलम भी मिलता है जिसकी बाज़ार में कीमत एक करोड़ रुपये किलो है. बी बाक्स लगाने वाले किसानों की पोलेन के कारण उपज में 30 से 35 प्रतिशत वृद्धि हुई है. बी बाक्स मिशन से उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, उत्तरप्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों में बहुत अच्छे नतीजे सामने आये हैं. पारंपरिक खेती के अलावा किसानों की आय बढ़ाने के लिये केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के मुरिंगा ड्रमस्टिक पेड़ लगाने के सुझाव के बारे में विजय सक्सेना बताते हैं कि मुरिंगा एक जादुई पेड़ है और इसे ग्रीन गोल्ड कहा गया है. इसका हर पार्ट कीमती है. इसकी फली हेल्थ के लिये अच्छी है और खून की कमी दूर करती है। इसके पत्ते दूध देने वाले जानवरों के लिये फायदे के हैं और 25 से 30 प्रतिशत दूध बढ़ा सकते हैं. इसकी जड़ कैंसर के इलाज में काम आ रही है. खादी कमीशन ने ऐसे 17 हजार पेड़ लगाने का लक्ष्य हाथ में लिया है. विजय सक्सेना बताते हैं कि कल तक केवल बुजुर्गों का लिबास कही जाने वाली खादी आज फैशन स्टेटमेंट तो है ही इसका विकास पर्यावरण से भी गहरे से जुड़ा है. दुनिया इस बात को समझ भी रही है कि पर्यावरण को बचाना है तो खादी को अपनाना है क्योंकि एक मीटर खादी का कपड़ा बनाने में जहां 3 लीटर पानी से काम चल जाता है वहां मशीन से दूसरा कपड़ा बनाने में 56 लीटर पानी की खपत होती है. दुनिया में आज पानी बचाना भी एक बड़ी मुहिम है. यूपी के मंत्री सत्यदेव पचौरी ने यूपी की खादी के मंहगे होने पर खेद जताया और कहा कि इसी वजह से यूपी की खादी अन्य राज्यों की खादी से पिछड़ रही है. असम, बंगाल, बिहार की खादी धड़ाधड़ बिक रही है. यूपी में खादी मंहगी क्यों है ? क्या लागत ज्यादा है ? उन्होंने कहा कि यूपी में अगर खादी का उत्पादन सोलर से हो, क्वालिटी अच्छी हो जाये, मार्केटिंग सुधरे तो यूपी की खादी की हालत सुधर सकती है. यूपी की खादी की मांग विदेशों में है. हमने अभी कई एमओयू साइन किये हैं. झारखंड पैटर्न पर हम खादी समितियों को हरसंभव मदद देने को तैयार हैं. सोलर कंसेप्ट को आगे बढ़ा रहे हैं. साथ ही मार्केटिंग में सेल्स मैन के व्यवहार और स्थिति को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है. हमने खादी की बिक्री पर कुल 15 प्रतिशत की छूट दी है. इसमें से 5 प्रतिशत ग्राहक को, 5 प्रतिशत का लाभ बुनकरों को और 5 प्रतिशत शोरूम और सेल्समैन के लिये रखा गया है. पचौरी कहते हैं कि खादी स्वदेश, स्वाबलम्बन और ग्राम स्वराज का आधार है. गांधी की देन खादी आज एक बड़ा वृक्ष बन चुकी है. अब हमें इसे सामूहिक रूप से सींचते रहना है. भ्रष्टाचार दूर करेंगे, इसके लिये शिकायती प्रकोष्ठ बनाया गया है. हमारा विजन है कि नौजवान को खादी से कैसे जोड़ें. श्री पचौरी ने यू पी में खादी के विकास के लिए प्रमुख सचिव नवनीत सहगल की विशेष सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने इसका सारा जिम्मा श्री सहगल को सौंप दिया है. यू पी के खादी ग्रामोद्योग के प्रमुख सचिव नवनीत सहगल ने खादी समितियों को आश्वासन दिया कि वो उनकी हर समस्या का समाधान करने के लिए तैयार हैं.

Published: 12-09-2018

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