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क्लीन, ग्रीन, केमिकल फ्री फ़ूड

रजनीकांत वशिष्ठ : तीस चालीस बरस पहले खेती किसानी में केवल गोबर की खाद और कम्पोस्ट खाद का ही जिक्र हुआ करता था. देखते ही देखते यूरिया, डीएपी और फास्फेट खादों का नाम सुनने लगे और इनके जरिये हरित क्रान्ति की बात भी सुनी. पर अब इधर कुछ सालों से सुन रहे

क्लीन, ग्रीन, केमिकल फ्री फ़ूड
क्लीन, ग्रीन, केमिकल फ्री फ़ूड
रजनीकांत वशिष्ठ : तीस चालीस बरस पहले खेती किसानी में केवल गोबर की खाद और कम्पोस्ट खाद का ही जिक्र हुआ करता था. देखते ही देखते यूरिया, डीएपी और फास्फेट खादों का नाम सुनने लगे और इनके जरिये हरित क्रान्ति की बात भी सुनी. पर अब इधर कुछ सालों से सुन रहे थे कि इन रासायनिक खादों, कीटनाशकों और खरपतवारनाशकों ने खेतों को तो बंजर बनाना शुरू कर ही दिया था, फसलों के जरिये ये रसायन इंसानों के शरीर में प्रवेश कर के नुकसान पहुँचाने लगे. इक्कीसवीं सदी के शुरू होते ही देश के,सुधि किसानों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों और नीति नियंताओं का ध्यान इस ओर जाने लगा कि बढती आबादी का पेट भरने के लिए अधिक अन्न उपजाने की जरूरत तो है पर उससे भी ज्यादा जरूरी ये है कि वो अन्न पौष्टिक हो. अर्थात खेती की उर्वरता बढ़ाने के लिए रसायनों का अंधाधुंध प्रयोग ठीक नहीं है. इसी विचार को आगे बढाने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में 2017, नवम्बर के दूसरे सप्ताह में अशोका होटल और ग्रेटर नोयडा में हुए दो आयोजनों ने सारी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचने की कोशिश की. मुद्दा ये था कि अब सबको खेती में रसायनों पर निर्भरता छोड़ सदियों पुराने परंपरागत तरीकों की ओर लौटना चाहिए. इस दिशा में एक छोटे से राज्य सिक्किम ने पहल की है और वो देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहाँ सौ फीसदी खेती जैविक यानी परंपरागत तरीके से हो रही है. सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग ने वर्ष 2003 में कृषि के क्षेत्र में इस सकारात्मक क्रांति की नींव रखने के लिए बाकायदा एक विधेयक पारित किया जिसका नतीजा ये हुआ कि आज वहां के किसान क्लीन, ग्रीन, केमिकल फ्री फसल उगा रहे हैं और उनके उत्पादों को देश और दुनिया भर में मान्यता भी मिलने लगी है. सिक्किम स्टेट कोआपरेटिव सप्लाई एंड मार्केटिंग फेडरेशन (सिमफेड) ने अशोका होटल में नोटबंदी की सालगिरह के दिन जब अपने प्राकृतिक और ऑर्गेनिक फ़ूड की विस्तृत श्रंखला का शुभारम्भ किया तो इसे एक क्रांतिकारी शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है. दस साल से जैविक खेती के क्षेत्र में काम कर रहे सिमफेड ने अकेले सिक्किम में ही ये अलख नहीं जगाई बल्कि देश के 10 राज्यों की 35000 हेक्टर कृषि भूमि पर 40000 से भी अधिक किसानों के साथ काम किया है. किसानों को उनकी फसल का सर्वोत्तम मूल्य दिलाने के लिए सिमफेड ने बिचौलियों को समाप्त करने और प्रसंस्करण की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए अनेक प्रभावी व उपयोगी कदम उठाये हैं. सिमफेड के कंसलटेंट चिन्मय मोहंती बताते हैं कि सिक्किम ने अपनी इस विशेषज्ञता का विस्तार सबसे पहले उड़ीसा राज्य से किया फिर मध्य प्रदेश से होते हुए 10 राज्यों तक पहुंच चुके हैं. अब सिमफेड ने अपने रिटेल काउंटर भी खोले हैं जहां गुणवत्ता वाले बेहद सुरक्षित और पौष्टिक खाद्य पदार्थ उपलबध कराये जा रहे हैं. सिमफेड के जैविक उत्पादों की श्रृंखला में बिना पॉलिश किया चावल, अनाज, कार्बनिक आटा, मसाले (साबुत और पाउडर) शामिल हैं. सिक्किम के विशिष्ट उत्पादों में बक गेंहूँ का आटा, चेरी काली मिर्च, बड़ी इलायची और हिमालय पर्वतमाला के दो शक्तिशाली मसाले अदरक तथा हल्दी शामिल हैं. अन्य विशेष उत्पाद जो जल्दी ही उपलब्द्ध होंगे वे आंध्र और उड़ीसा के काजू, असम की किंग मिर्च, आन्ध्र के आम, पूर्वोत्तर का अनानास, असम का जोआ व ब्लैक राइस, छत्तीसगढ़ का कोदो और नींबू, गुजरात का आलू और असम की मंदारिन नारंगी. सिक्किम के कृषि मंत्री ने जानकारी दी कि मुख्यमंत्री पवन चामलिंग के इस विज़न की सराहना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जनवरी 2016 के अपने सिक्किम दौरे में की थी और सलाह दी थी कि सिक्किम ने जो राह दिखाई है उसका लाभ पूर्वोत्तर राज्यों में ले जाकर एक उत्पादक हब बनाया जा सकता है. सिमफेड के एम् डी रॉजर आर राय ने बताया कि हम उपभोक्ताओं और किसानों दोनों के हित लाभ के लिए कार्य करते हैं. हमारी कोशिश रहती है कि किसानों को सर्वोत्तम बीज, खाद एवं उपकरण जैसी कृषि सुविधाएं मिलें तथा उन्हें अपनी उपज का सर्वोत्तम मूल्य मिले. साथ ही हमारा हर उत्पाद सरकार द्वारा निर्धारित गुणवत्ता सम्बन्धी मानकों पर खरा उतरे ताकि आम जनता को खरा माल मिले. भारत के कृषि सचिव एस के पटनायक ने माना कि सिक्किम ने दूसरे राज्यों को जो रास्ता दिखाया है वो अब एक जनांदोलन का रूप लेता जा रहा है. इफ्को जो रासायनिक खाद बनाने वाली कंपनी है वो अब खुद इन जैविक खाद्य उत्पादों को बेचने में मदद कर रही है इससे बड़ी बात क्या होगी. शेष भारत भी इसी रास्ते पर चलेगा ऐसी उम्मीद है. शहरों में आबादी बढ़ रही है और शहरी क्षेत्रों में बड़ा बदलाव आ सकता है. उपभोक्ता भी हेल्दी फ़ूड के प्रति जागरूक है. उपभोक्ता को हेल्दी फ़ूड मिले और किसान को लाभकारी दाम मिले यही सरकार की नीति है. इसके अगले दिन ग्रेटर नोयडा में जैविक विश्व सम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमे 110 देशों के डेढ़ हज़ार प्रतिनिधियों और 2000 भारतीय प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. देश के कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बताया कि जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार कई कदम उठा रही है. लोगों को पोषण युक्त आहार जैविक खेती से आसानी से संभव है और खेती की मिटटी का स्वास्थ्य भी इससे टिकाऊ रहेगा. इसलिये जैविक खेती आज राष्ट्रीय और वैश्विक आवश्यकता बन गयी है. भारत दुनिया में जैविक खेती करने वाले प्राचीनतम देशों में से है. देश के अधिकांश हिस्सों में अभी भी जैविक खेती की जा रही है. मौजूदा समय में जैविक खेती के दायरे में साढ़े 22 लाख हेक्टर जमीन को लाया गया है जिससे साढ़े तीन लाख से ऊपर किसान जुड़े हैं. इस आन्दोलन को और आगे बढ़ाना है और अगर ऐसा हुआ तो भारत पौष्टिक खाद्यान्न के मामले में दुनिया को नयी रह दिखा सकता है.

Published: 11-10-2017

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