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गुजरात चुनाव में मोदी की साख दांव पर

रजनीकांत वशिष्ठ, गुजरात में वैसे साल भर तीन ही मौसम होते हैं कम गरम, गरम और ज्यादा गरम. दिवाली के बाद का मौसम कम गरम माना जाता है पर इस बार चुनावी हलचल गुजरातियों के लिए इस सुहाने मौसम को भी तपन से सराबोर कर देगी. दरअसल दिसम्बर में होने वाले गुजरात व

गुजरात चुनाव में मोदी की साख दांव पर
गुजरात चुनाव में मोदी की साख दांव पर
रजनीकांत वशिष्ठ, गुजरात में वैसे साल भर तीन ही मौसम होते हैं कम गरम, गरम और ज्यादा गरम. दिवाली के बाद का मौसम कम गरम माना जाता है पर इस बार चुनावी हलचल गुजरातियों के लिए इस सुहाने मौसम को भी तपन से सराबोर कर देगी. दरअसल दिसम्बर में होने वाले गुजरात विधानसभा के चुनाव में जहां भाजपा को अपना एक मजबूत किला बचाना है वहां कांग्रेस अपने 22 साल के वनवास को ख़तम करने के लिए बेचैन दिख रही है. गुजरात भाजपा का अहम किला इसलिए है क्योंकि 2001 के बाद से इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राजनीतिक प्रयोगशाला माना जाता रहा है और उसी में तपे तपाये नरेन्द्र मोदी यहीं पर साढ़े बारह साल राज करके प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं. जाहिर है गुजरात में भाजपा की जय या पराजय उनकी प्रतिष्ठा पर असर जरूर डालेगी. मोदी खुद जब तक गुजरात के सी एम रहे तब तक तो गुजरात से भाजपा को कोई बेदखल नहीं कर पाया न वाघेला, तोगड़िया, संजय जोशी जैसे अपने न कांग्रेस जैसे पराये. पर आज वहां चेहरा मोदी नहीं रूपानी हैं और नए सरदर्द बहुतेरे हैं. शायद यही वजह है कि पिछले तीस दिनों में मोदी गुजरात के तीन दौरे कर चुके हैं अब चौथे की तैयारी है. बुलेट ट्रेन से लेकर मीठे पानी की सौगात हो या फिर मच्छीमारों की चिंता या अपनी जन्मभूमि को नमन. मोदी उसी तरह गुजरात को मथ रहे हैं जैसा उन्होंने यू पी चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्र बनारस में किया था. ऐसा लगता है कि राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की जीत के मामले में अमित शाह की रणनीति फ्लॉप होने के बाद से मोदी ज्यादा चौकन्ने हैं. इसीलिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के खांटी गुजराती होने के बावजूद ओम माथुर के बजाय अपने विश्वासपात्र अरुण जेटली को चुनावी मोर्चे पर तैनात करके कमान खुद संभाल ली है और संघ ने भी सहयोग की पूरी ताकत मोदी को उपलब्ध करा दी है. मोदी की पेशानी पर बल डालने वाले कारणों में एक नोटबंदी और जी एस टी से नाराजगी बताई जा रही है. शायद इसीलिए गुजराती व्यंजन खाकरा समेत कुछ सामानों पर जी एस टी में छूट देकर तत्काल दिवाली गिफ्ट दे दिया गया. इसके बाद अपने गुजरात दौरे मोदी ने कहा भी कि संशोधन के बाद अब तो दिवाली से पहले दिवाली मन गयी न. वैसे भी गुजरात को अरसे से व्यापारी समुदाय का स्वर्ग कहा जाता है. दूसरा कारण गुजरात के संपन्न और आबादी के लिहाज से सशक्त पटेल समाज का असंतुष्ट होना है. जिसे एक युवा नेता हार्दिक पटेल ने तबियत से धधकाया. उस पर मोदी के बाद कमान सँभालने वाली आनंदी बेन पटेल को मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने ने आग में घी डालने का काम कर दिया. पटेलों की यह नाराजगी भाजपा को भी अन्दर ही अन्दर झुलसा रही है. इसके बावजूद कि मुख्यमंत्री विजय रूपानी को सहयोग के लिए पटेल बिरादरी से ही एक उपमुख्यमंत्री दिया गया है ये आग कितनी थमी इसका पता चुनाव के बाद ही लग पायेगा. उधर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के खेमे में राहुल गांधी के पटेल बहुल इलाकों में सफल दौरे से ख़ुशी और उत्साह का माहौल दिखाई पड़ रहा है. उसमे अपने दम पर अहमदाबाद में पांच लाख की भीड़ जुटा लेने वाले युवा पटेल हार्दिक की शिरकत ने राज्य के कांग्रेसियों में जान फूंक दी है. कांग्रेस की सोच है कि ऐसे समय में जब राहुल गांधी पार्टी के हाईकमान होने को हैं मोदी के घर गुजरात को फ़तेह कर लिया जाए तो राहुल हीरो तो बन ही जायेंगे 2019 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में मौसम भी बन जायेगा. ये माहौल भांप कर ही राहुल और उनकी टीम ने गुजरात में पूरी ताकत झोंक दी है. वो भी अब तक गुजरात के दो दौरे कर चुके हैं और गुजरात में उनकी बढती लोकप्रियता ने ही मोदी को नए सिरे से अपने पत्ते चलने को बाध्य कर दिया है. ठीक इसी समय भाजपा के चोटी के नेताओं यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी की अपनी ही सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना ने कांग्रेस के अभियान को संजीवनी प्रदान कर दी है. सरकार अब चाहे सफाई दे या संशोधन की कसरत करे कांग्रेस को चुनाव भर का मसाला तो मिल ही गया है कि हम तो पहले ही कह रहे थे नोट बंदी और जी एस टी से नुकसान होगा. अब भाजपा के चुनावी चाणक्य कहे जा रहे राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह पर अकूत दौलत कमाने के नए आरोपों ने भाजपा के भ्रष्टाचार के मुद्दे को फीका करके कांग्रेस के तूणीर को एक और हथियार दे दिया है. बेशक गुजरात चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होना है. पर अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी एक प्लेयर होगी जो मोदी के समय से ही वहां अपनी जड़ें ज़माने की कोशिशों में लगी है. वो चुनाव में कांग्रेस और भाजपा से कितना हिस्सा छीन पायेगी यह तो भविष्य के गर्भ में है. पर वो एक वोट कटवा पार्टी जरूर साबित हो सकती है और अगर ऐसा हुआ तो दोनों का ही जहाँ तहां नुकसान कर सकने की हैसियत में जरूर होगी. इस चुनाव में एक और अहम् फैक्टर पूर्व मुख्यमंत्री शंकर सिंह वाघेला का गुट होगा यह तय है. भाजपा की ही कोख से निकले नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक हमसफ़र और बाद में धुरविरोधी वाघेला यूँ तो बीते सालों में वहां कांग्रेस की स्थापना में जुटे हुए थे. पर अब कांग्रेस का दमन छोड कर आजाद हो चुके हैं. कहा जा रहा था कि वो आप को सहारा दे सकते हैं. परन्तु आप ने जिस तरह पार्टी से बहार के लोगों को लीडरशिप नहीं देने की नीति बना रखी है उसे देखते हुए नहीं लगता कि चतुर वाघेला इस शर्त पर आप को कंधा देंगे. बहरहाल चुनावी समीकरण जो भी हों वहां मोदी की उपस्थिति को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है और इसलिए कहा जा सकता है कि गुजरात चुनाव में भाजपा पूरी तरह मोदी के करिश्मे के भरोसे पर निर्भर होगी. जाहिर है वहां मोदी की साख दांव पर है.

Published: 10-10-2017

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