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यूपी में घूमने जाएं तो कहां जाएं

<p>&nbsp;रजनीकांत वशिष्ठ : जब तक उत्तराखंड यूपी का हिस्सा हुआ करता था तब तक कोई समस्या नहीं थी। यूपी वासी का जब भी कहीं घूमने का मन होता नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा, रानीखेत, चार धाम जैसे विकल्प उसके पास हुआ करते थे। ये ऐसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन थे जिन पर य

यूपी में घूमने जाएं तो कहां जाएं
यूपी में घूमने जाएं तो कहां जाएं

 रजनीकांत वशिष्ठ : जब तक उत्तराखंड यूपी का हिस्सा हुआ करता था तब तक कोई समस्या नहीं थी। यूपी वासी का जब भी कहीं घूमने का मन होता नैनीताल, मसूरी, अल्मोड़ा, रानीखेत, चार धाम जैसे विकल्प उसके पास हुआ करते थे। ये ऐसे टूरिस्ट डेस्टिनेशन थे जिन पर यूपी ही नहीं पूरे देश और विदेश के पर्यटक री-हजये रहते थे। या यूं कहें कि ये स्थल वैश्विक पर्यटन के नक्शे पर यूपी की नाक हुआ करते थे। यूपी के बाशिंदे जाते तो अब भी वहां हैं पर अब वो यूपी के नहीं रहे पराये  हो गये और उत्तराखंड के ब्रांड हैं।

 
सन 2000 मंे यूपी से उत्तराखंड के अलग हो जाने के बाद से ऐसा लगा कि देश के सबसे बड़े सूबे का पर्यटन श्रीहीन हो गया। उत्तरप्रदेश का रहने वाला अब कभी कभार छुट्टी में घूमने की बात सोचता है तो अपने प्रदेश के बारे में तो सोचता ही नहीं। जाड़ों में वो राजस्थान, केरल, गोवा, महाराष्ट्र, बंगाल जाने की सोचता है। तो गर्मियों मंे कर्नाटक के उटी, तमिलनाडु के कोडाईकनाल, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, सिक्किम, दार्जिलिंग की याद उसे आती है।
 
अब तो नार्थ ईस्ट के सेवन सिस्टर्स राज्यों ने भी छुट्टियां बिताने के शानदार स्थलों के रूप में देशी और विदेशी सैलानियों का मन मोहा है। और तो और इधर मध्यप्रदेश ने भी पचम-सजय़ी, पन्ना, ओरछा, दतिया, खजुराहो, उज्जैन, बांधवग-सजय़ की शानदार ब्रांडिंग करके पर्यटन के नये आयाम दिखा कर शानदार ब्रांडिंग कर ली है। यही नही ंसाल भर हाॅट, हाॅटर, हाॅटेस्ट मौसम वाले गुजरात में भी तब के मुख्यमंत्री और संप्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर अमिताभ बच्चन के-ंउचयएक बार पधारो तो म्हारे गुजरात में, वन लाइनर ने गुजरात को भी पर्यटन के विश्व मानचित्र पर लाकर खड़ा कर दिया है। 
 
पर यूपी पर्यटन के मामले में गरीब हो गया। इतना गरीब कि ले दे के एक आगरा का ताजमहल है। जिसे देशी विदेशी पर्यटक देखने आते हैं मगर वो भी बस फोटो अॅपार्चुनिटी के लिये। आये देखा निकल लिये। कोई एक रात भी आगरा ठहरना मुनासिब नहीं सम-हजयता। ठहर भी गया तो कहां लुट पिट जाये कोई ठिकाना नहीं। तीन दशक पहले नेपाल की तराई में एक और खालिस यूपी का ठिकाना दुधवा नेशनल पार्क हुआ करता था जहां कोई प्रकृति प्रेमी पर्यटक कुछ समय शांति के साथ गुजार सकता था। पर समय के साथ साथ उसका आकर्षण भी जाता रहा। न उसका पेशेवर तरीके से प्रचार प्रसार हुआ कि उसकी ख्याति टूर आॅपरेटरों के मन में रच बस जाये।
समाजवादी युवराज अखिलेश की पिछली सरकार ने पर्यटन का ड्रीम प्रोजेक्ट बता कर इटावा में एक लाॅयन सफारी बनाने का उपक्रम जरूर किया ताकि प्रदेश में प्रदेश के या बाहर के सैलानियों के लिये एक आकर्षण की रचना हो। सो उसकी छवि ये है कि बीहड़ों के इलाके में उजड्डों से अपनी जान बचे तब तो कोई जाके वहां शेर देखे। शेर बेचारे खुद अपनी जान वहां नहीं बचा पा रहे। इसके पहले मायावती ने अपने कार्यकाल में नेपाल की तराई में बौद्ध सर्किट का विकास करने और बागों के शहर लखनउ को नये लैंडमार्क देने का प्रयास किया था। ताकि देशी विदेशी सैलानियों का प्रवाह ब-सजय़े। पर पूर्वांचल के सिद्धार्थनगर में सैलानियों के लिये वैसा विश्वस्तरीय और विश्वसनीय -सजयांचा खड़ा करने में वो नाकामयाब रहीं जो उन्हें वहां दो चार दिन रुकने के लिये प्रेरित कर सके। रही बात राजधानी लखनउ की तो वो बस प्रदेश की राजधानी की तरह ही रही, सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र नहीं बन पायी।
 
हां उत्तरप्रदेश में तीन ऐसे नगर जरूर हैं जो दुनिया भर में फैले सनातन धर्मियों और बौद्धों की आस्था के केन्द्र हैं। ये हैं काशी, मथुरा और अयोध्या। इन तीनों जगहों पर साल के किसी न किसी हिस्से में पर्यटक देश दुनिया से अपनी श्रद्धा के साथ चले आते रहे हैं। काशी जहां का प्रतिनिधित्व खुद हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते हैं का आलम आज भी कमोवेश वही है जो पहले था। गंगा मैली की मैली है। गंगा को साफ करने के मोदी जी के संकल्प के बावजूद उनकी जल संसाधन मंत्री उमा भारती तीन सालों में गंगा को एक इंच साफ नहीं करवा पायीं। सैलानियों के लिये अच्छे होटल और हवाई अड्डा तो है पर सड़कों का जाम दम फुला देता है।
पर इसमें कोई शक नहीं कि मोदी जी ने बनारस की सड़कों को सुधारने और सिर के उपर फैले बिजली के तारों के जाल को जमीन के अंदर लाने के आधारभूत काम का सिलसिला शुरू कर दिया है। विश्व की इस सबसे पुरानी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक नगरी को मोदी ने जापान के आध्यात्मिक नगर क्योटो की तर्ज पर सुधारने का जो बीड़ा उठाया है उसे अंजाम तक पहुंचाने में कम से कम दस साल का समय लगेगा। अगर वो दस साल रह गये तो काशी एक विश्वस्तरीय आध्यात्मिक नगरी बन सकती है। काशी के संभ्रांत लोग कहने लगे हैं कि सुधार दिखने तो लगा है। काशी एक स्वच्छ और सहज आवागमन वाला शहर बन गया तो निश्चित ही आने वाले में समय में यूपी के लिये गर्व कर सकने लायक पर्यटक स्थल होगा।
 
अब बात करते हैं मथुरा की। यह भी काशी की तरह युवा जोड़ों के लिये हनीमूनर्स स्पाॅट नहीं है। काशी जहां भगवान शिव का डेरा है और बौद्ध धर्मावलंबियों की आस्था का केन्द्र है तो मथुरा में कृष्ण भक्ति की अविरल धारा बहती है। काशी की तरह ही मथुरा मंे भी यमुना में पदूषण रूपी कालिया नाग घुसा बैठा है। सन्यासिन जल मंत्री उमा भारती यमुना के जल को निर्मल बना पायेंगी ऐसा उनके तीन साल के कार्यकाल में तो कतई नहीं लगा। यहां भी सड़कों और गलियों में गंदगी ऐसी कि बृजरज में नंगे पांव चलने वाले श्रद्धालुओं के कष्टों का पारावार नहीं है। न ही यहां स्तरीय ठहरने के होटल हैं न ही वैश्विक आकर्षण के लिये हवाई अड्डा। जबकि यहां गोेकुल, गोवर्धन, नंदगांव, बरसाना, वृंदावन जैसे पावन धाम हैं जहां सैलानी आराम से एक सप्ताह भक्ति रस का आनंद उठा सकता है। पूरी दुनिया के लिये सनातन संस्कृति के दर्शन का पूरा इंतजाम यहां है। अगर -सजयांचागत अव्यवस्थाओं से मुक्ति पा ली जाये।
 
भगवान राम की लीला स्थली अयोध्या भी सनातनियों के लिये काशी और मथुरा की तरह पावन नगरी है। यहां की सरयू काशी की गंगा और मथुरा की यमुना से थोड़ा बेहतर दिखती है। पर यहां धार्मिक पर्यटन में श्रद्धालु को एक दिन से ज्यादा रोक पाने की काबिलियत नहीं है। टैंट में विराजमान रामलला, कनक भवन, राम दरबार, सीता रसोई, हनुमान ग-सजय़ी और राम की पौड़ी बस। इतने से स्पाॅट एक दिन में निपट जाते हैं। वैसे भरत कुंड, मखौड़ा, छोटी छावनी जैसे कम परिचित कोई तीन सौ स्थल अयोध्या में हैं जिन्हें विकसित किया जाये तो श्रद्धालु पर्यटकों को कई दिन लग जायें। पर देश विदेश से कोई यहां आकर रुकना चाहे तो न -सजयंग का होटल न घूमने फिरने की कोई जगह। हां योगी आदित्यनाथ जबसे मुख्यमंत्री बने हैं तबसे कुछ मरम्मत का काम जरूर शुरू हुआ है। 
 
 राम वन गमन मार्ग और अयोध्या से मिथिला मार्ग को सुधारने की दिशा में इरादे की कुछ -हजयलक दिखायी दी है। ये सब होगा तभी अयोध्या वैश्विक मानचित्र पर अपना सम्मानजनक स्थान कायम कर पायेगी। अयोध्या के साथ ही यूपी के पास प्रयाग भी है जहां गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर हर साल होने वाला माघ मेला और हर छह साल पर होने वाला संत समागम कुंभ भी ऐसा अवसर है 
 
प्रयाग से ही लगा एक और क्षेत्र उत्तरप्रदेश में ऐसा है जिसमंे पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। वो है चित्रकूट। बुंदेलखंड की विंध्य पर्वतमाला की गोद में बसा यह नगर राम वन गमन मार्ग का हिस्सा है। मंदाकिनी नदी के दोनों ओर बसे इस नगर की कथा भी विचित्र है। मंदाकिनी नदी भी अभी प्रदूषण की मार से उतना प्रभावित नहीं है जितनी गंगा या यमुना। पर यह उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की विभाजक रेखा भी है। मध्यप्रदेश में आने वाला चित्रकूट जहां सुंदर बन पड़ा है वहीं उत्तरप्रदेश में आने वाला चित्रकूट गंदा गांव सा लगता है। मध्यप्रदेश ने जहां चित्रकूट को सुंदर और स्वच्छ बना कर इसे पर्यटक स्थल का रूप देने का यत्न किया है। वहीं उत्तरप्रदेश की सरकारों ने अब तक इसकी उपेक्षा ही की है। बरसात और जाड़े में यह जगह इतनी मनोरम लगती है कि इसमें एक शानदार पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होने की पूरी क्षमता है। यहां के -सजयांचागत विकास पर ध्यान दिया जाये तो क्या कहने। योगी सरकार को इस ओर भी ध्यान देना चाहिये क्योंकि बुंदेलखंड पहले से ही आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा रहा है। पहले की सरकारों ने इस क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों को अंधाधंुध दुहने में तो दिलचस्पी दिखायी है पर क्षेत्र या क्षेत्र के लोगों का जीवन स्तर सुधारने पर जोर नहीं दिया। इसी वजह से यहां के लोग पृथक बंुदेलखंड राज्य के लिये अरसे आंदोलनरत हैं। अगर उत्तरप्रदेश या मध्यप्रदेश भरपूर खनिज सम्पदा से लैस इस क्षेत्र का विकास नहीं कर सकते तो बेहतर होगा इसे अलग राज्य का ही दर्जा मिल जाये। वरना देशी विदेशी पर्यटकों को यहां तक लाकर आर्थिक विकास की इबारत लिखनी ही चाहिये।

Published: 09-02-2017

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