राजेश श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार इस समय अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में हैं। मिशन-2०17 के लिए उसके पास महज सात-आठ माह का समय श्ोष है तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समेत अन्य रणनीतिकारों के सामने सरकार की इमेज सुधारने की चुनौती खड़ी हुई है। लेकिन चार साल की छवि को आठ माह में सुधार पाना भी टेढ़ी खीर साबित होती दिख रही है। ऐसा नहीं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पहले इसकी कोशिश नहीं की लेकिन जब-जब वे इस दिशा मंे कदम-दो कदम चले उन्हें इसका समर्थन नहीं मिला। इसका एक जीता-जागता उदाहरण हाल-फिलहाल सच साबित होता दिख रहा है। बीते चार माह पहले जब उन्होंने सीतापुर बिसवां के अपने दबंग विधायक रामपाल को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था तब उन्होंने पार्टी पर इतने दाग नहीं लगाए थ्ो, जिन्हें धुल पाना आसान नहीं था। लेकिन पार्टी के तमाम पुरोधाओं के सामने उन्हें नतमस्तक होना पड़ा और रामपाल पार्टी में वापस आ गये। वैसे भी समाजवादी पार्टी हमेशा से ही एक कदम आगे और दो कदम पीछे का ख्ोल ख्ोलती चली आ रही है।
रामपाल की वापसी ने उनके हौसले बुलंद किये और उन्होंने अधिकारियों और पुलिस पर हाथ भी छोड़ा। यही नहीं, सत्ता का सुरूर उन पर ऐसा चढ़ा कि उन्होंने हाईकोर्ट द्बारा सीज की गयी इमारत मंे आईटीसी का गोदाम भी बना डाला। इस कारनामे ने रामपाल को तो जेल भ्ोजा ही लेकिन पार्टी की भी भद पिटवायी। शनिवार को ही एक और खबर ने उनकी इमेज सुधारने की ओर कदम बढ़ाया है। सरकार गठन के बाद से ही राज्यपाल राम नाईक के साथ आजम के रिश्ते बेहद तल्ख हंै। इस बाबत राज्यपाल ने कई बार मुख्यमंत्री से अनुरोध किया, बयान जारी किया, पत्र लिखा लेकिन मुख्यमंत्री ने कभी भी अपने धाकड़ मंत्री आजम खां से बात करने की जरूरत नहीं समझी। लेकिन शनिवार को राज्यपाल की सलाह पर अमल करते हुए अखिलेश यादव ने आजम से राज्यपाल से रिश्तों के बाबत बात करने का ऐलान किया है। अगर पहले आजम से इस संबंध में बात होती तो सरकार को बहुत सारे फैसलों में राजभवन से मुंह की न खानी पड़ती। दरअसल सरकार की छवि को सुधारने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को कई कठोर फैसले लेने होंगे तब शायद आठ महीनों में भरपायी हो सके। लेकिन ऐसा संभव होना अभी दूर की कौड़ी लगती है। क्योंकि समाजवादी इकलौती ऐसी पार्टी है जिसे दूसरे दलों या विरोधियों से खतरा नहीं है। वह अपने ही विधायकों, माननीयों और कार्यकर्ताओं केे कारनामों से बदनाम है। कई माननीयों के हिस्से में जमीन कब्जे, खनन, गुंडा, वसूली जैसे आरोप चस्पा हैं। कई राज्य मंत्रियों ने सरकार के वोट बैंक को बढ़ाने के बजाय सरकार की छवि पर ही दाग लगाया है। कभी टोल टैक्स पर हंगामा काटा तो कभी पिस्टल लहरायी। अखिलेश यादव की सरकार के हिस्से में विकास के रास्ते पर चले गये कई अध्याय भी लिख्ो गये हैं लेकिन इन अध्यायों पर पार्टी पदाधिकारियों और मंत्रियों के कारनामों ने काली स्याही भी डाली है। जिनसे निपटने के बाद ही सरकार की छवि सुधरती दिख सकती है।